फिजी द्वीपसमूह प्रशांत महासागर में स्थित है। उसके पश्चिम में न्युहैब्रीडीज है। भूमध्यरेखा के दक्षिण में देशांतर के 15 अंक से ले कर 22 अंक तक और पश्चिम में अक्षांश की 175 डिग्री से ले कर 177 डिग्री तक फैला हुआ है। इसमें सब मिला कर 254 द्वीप हैं। इनमें से लगभग 80 टापुओं में आदमी रहते हैं। फिजी द्वीपसमूह का क्षेत्रफल 7435 वर्गमील है। सन 1911 की जनगणना के अनुसार फिजी की जनसंख्या 1,39,541 है। इन द्वीपों में दो द्वीप सबसे बड़े हैं। एक तो वीती लेवू (Viti Levu) और दूसरा वनुआ लेवू (Vanua Levu)। इनके अतिरिक्त कंदावू और तवयूनी नामक टापू भी बड़े-बड़े हैं। इनकी भूमि बड़ी उपजाऊ है और विशेषत: पूर्व की ओर यह द्वीप बहुत कुछ हरा-भरा दीख पड़ता है। यहाँ पर कितने ही पहाड़ हैं, जिनकी चोटी हजारों फिट ऊँची हैं। समुद्र के किनारे-किनारे नारियल के बहुत पेड़ होते हैं। यहाँ रतालू, शकरकंद और नारंगी बहुत पायी जाती है। यहाँ पर पहले बहुत कम जानवर थे। फिर पीछे से बहुत-से जानवर भेजे गए। गाय, बैल, घोड़ा, बकरी, जंगली सूअर इत्यादि थोड़े बहुत पाए जाते हैं। कबूतर, तोता, बतख इत्यादि चिड़ियाँ भी जो गर्म मुल्कों में प्राय: हुआ करती हैं, देखने में आती हैं। सन 1866 ई० में यहाँ पर न्यूजीलैंड और आस्ट्रेलिया से बहुत-से यूरोपियन आ-आ कर बसने लगे। सन 1874 ई० में यह द्वीपसमूह ब्रिटिश सरकार के हाथ में आ गया और ब्रिटिश राज्य का उपनिवेश भी कहा जाने लगा। फिजी की राजधानी सुवा है, जो कि विती लेवू के दक्षिण पर स्थित है। फिजी के विषय में विस्तारपूर्वक आगे चल कर लिखेंगे।
भिन्न-भिन्न स्टेटों में बाँट दिए गए
फिजी में एक नुकलाओ नामक एक टापू है। यहाँ पर भी एक डिपो है। हम लोग, जो कि कुली के नाम से पुकारे जाते हैं, यहीं उतारे जाते हैं। ज्योंही हमारा जहाज वहाँ पहुँचा त्योंही पुलिस ने आ कर उसे घेर लिया, जिससे कि हम वहाँ से भाग न जाएँ। हम लोगों से वहाँ गुलामों से भी बुरा बर्ताव किया गया। लोग कहा करते हैं कि दासत्व-प्रथा संसार के सब सभ्य देशों से उठ गयी है। यह बात ऊपर से तो ठीक मालूम होती है परंतु वास्तव में नितांत भ्रममूलक है। क्या आप इस कुली-प्रथा को दासत्व-प्रथा से कम समझते हैं? इसी न्यायशील ब्रिटिश सरकार के राज्य में यह प्रथा जारी रहे यह कितने खेद की बात है। क्या अब बर्क, ब्राडला जैसे निष्पक्ष अंग्रेज इंग्लैंड में नहीं रहे।
थोड़ी देर के बाद डाक्टर आया और उसने हम सबकी परीक्षा की। सब लोगों के कपड़े हौज में एक साथ डाल कर गर्म किए गए। कोठीवालों को पहले से ही एजेंट जनरल ने आज्ञा दे दी थी कि आ कर अपने-अपने कुली नुकलाओ डिपो से ले जाओ। कोठीवालों ने प्रत्येक मनुष्य का व्यय दो सौ दस रुपये इमीग्रेशन विभाग में पहले से जमा करा दिया था। एजेंट जनरल की आज्ञानुसार वे लोग नुकलाओ डिपो में पहुँचे। वहाँ पर छोटे कुली एजेंट ने हम सब को भिन्न-भिन्न स्टेटों में जाने के लिए विभक्त कर दिया। फिर उस एजेंट ने हम सबको बुलाया और प्रत्येक से कहा, "तुम आज से पाँच वर्ष तक के लिए अमुक साहब के नौकर हुए" मैंने कहा 'मैं नौकरी नहीं करता। मैं बिका नहीं हूँ। मेरे बाप या भाई ने किसी से कुछ ले कर मुझे बेच नही दिया है। मैंने भी किसी से कुछ नहीं लिया। जब मैंने तीन-पाँच की तो दो गोरे सिपाहियों ने धक्के दे कर मुझे नाव पर चढ़ा दिया। इस प्रकार सब लोग भिन्न-भिन्न स्टेटों में बाँट दिए गए।
स्टेट का हाल- स्टेट में रहने के लिए कोठरियाँ मिलती हैं। प्रत्येक कोठरी 12 फुट लंबी 8 फुट चौड़ी होती है। यदि किसी पुरुष के साथ उसकी विवाहिता स्त्री हो तो उसे यह कोठरी दी जाती है और नहीं तो तीन पुरुषों या तीन स्त्रियों को यह कोठरी रहने को मिलती है। दिखाने के लिए तो यह नियम बनाया गया है "Employers of Indian labourers must provide at their own expense suitable dwellings for immigrants, The style and dimension of these buildings are fixed by regulations." यानी 'जो लोग भारतवासी मजदूरों को नौकर रखेंगे, उन्हें अपने खर्च से उन मजदूरों को रहने के लिए अच्छे निवास-स्थान देने होंगे। इन मकानों की बनावट, लम्बाई, ऊँचाई, चौड़ाई इत्यादि नियमों से स्थिर की जाएगी।' पाठकों यही तीन आदमियों के रहने, उठने, बैठने, सोने, खाना बनाने इत्यादि के लिए 12 फुट लंबी 8 फुट चौड़ी उचित निवास-स्थान है। परमात्मा ऐसे अच्छे मकान में किसी को न रखे। जिन तीन आदमियों को यह कोठरी मिलती है उनमें चाहे कोई हिंदू हो या मुसलमान, अथवा चमार-कोली कोई क्यों न हो। यदि कोई ब्राह्मण देवता किसी चमार-कोली इत्यादि के संग आ पड़े तो फिर उनके कष्टों का क्या पूछना है। और प्रायः ऐसा हुआ करता है कि ब्राह्मण लोगों को चमारों के साथ रहना पड़ता है।
पहले छह महीने के कष्ट -पहले छह महीने तक स्टेट से रसद मिलती है और इसके लिए 2 शिलिंग 4 पेंस प्रति सप्ताह के हिसाब से काट लिए जाते हैं। प्रतिदिन 10 छटाँक आटा, 2 छटाँक अरहर की दाल और आधी छटाँक घी के हिसाब से सप्ताह भर की रसद एक दिन मिल जाती है। हम लोगों के वास्ते जो कि भारी-भारी फावड़े ले कर दस घंटे रोज कठिन परिश्रम करते थे, भला ढ़ाई पाव आटा एक दिन के लिए कैसे पर्याप्त हो सकता है। हम लोग 4 दिन में सप्ताह भर की रसद खा कर बाकी दिन एकादशी व्रत रहते थे, अथवा कहीं किसी पुराने भारतवासी से उधार आटा-दाल मिल गया तो उसी से अपना पेट भर लेते थे। काबुली पठानों पर अत्याचार
एक बार एक आरकाटी ने 60 काबुली पठानों को बहका कर फिजी में भेज दिया। इन लोगों से डिपोवालों ने कहा था कि तुम्हें पलटन में बड़ी-बड़ी नौकरियाँ मिलेंगी। ये लोग खूब मोटे ताजे थे और पलटन में नौकरी पाने की इच्छा से फिजी जाने को राजी हुए थे। परंतु जब वे फिजी पहुँचे तो उन्हें वहाँ कुली का काम करना पड़ा। रसद भी उन्हें उतनी ही दी गयी जितनी औरों को मिलती है, यानी ढाई पाव आटा और आध पाव दाल के हिसाब से सात दिन का सामान एक दिन में दे दिया गया। वे लोग एक सप्ताह की रसद को चार दिन में खा कर बैठ गए। फिर जब उनसे काम करन को बोला गया तो वे बोले "खाना लाओ, तो काम करें।" इस पर पुलिस को खबर दी गयी। फिर क्या था कांस्टेबल और इंस्पेक्टर आ धमके। स्टेट के गोरे ने कहा 'देखिए साहब ये 60 बदमाश कुली हमें मार डालने और लूट लेने की धमकी देते थे। तब काबुलियों ने कहा "हम लोग सिर्फ खाना माँगते हैं, बिना खाए काम न करेंगे, और हमने कुछ नहीं कहा।" पुलिस लौट गयी, काबुली काम पर न गए। फिर उस गोरे कोठीवाले ने काबुलियों से काम पर जाने के लिए कहा। काबुलियों ने फिर भी वही जबाव दिया। गोरा फिर पुलिस को बुला लाया। अबकी बार पुलिस ने उन निहत्थे काबुलियों पर गोली चला कर धमकाया। काबुलियों ने कहा हम तो वैसे ही भूखों मरे जाते हैं, और आप हम पर गोली चलाते हैं। इस पर पुलिस फिर लौट गयी। घायल काबुली अस्पताल भेजे गए।
तदनंतर उन काबुलियों से कहा गया चलो नुकलाओ डिपो में तुम लोगों के रहने खाने-पीने, रहने और नौकरी का ठीक प्रबंध कर दिया जाएगा। इस बात पर वे सहमत हो गए और सब के सब नुकलाओ डिपो में लाए गए। उन्हें खाना बनाने के लिए चावल इत्यादि दे दिए गए और वे अपना भोजन तैयार करने लगे। इधर इमीग्रेशन विभाग के गोरे अफसरों ने 500 फिजी के आदिम निवासी जंगल में छिपा दिए थे। ज्योहीं काबुली लोग मुँह में कौर देना चाहते थे, त्योंही एक सीटी बजायी गयी। देखते-देखते 500 आदिवासी उन निःशस्त्र कबुलियों पर आ टूटे और उन्हें पकड़-पकड़ कर समुद्र के किनारे ले गए। काबुली लोग जबरदस्ती डोंगियों पर बैठा दिए गए और भिन्न-भिन्न कोठियों में विभक्त कर दिए गए।
यह थी इमीग्रेशन विभाग की न्यायप्रियता और बहादुरी। इस पर कितने ही निष्पक्ष समाचार-पत्रों ने खूब खरी-खरी सुनायी थीं; पर कौन ध्यान देता है। |