हिंदी भाषा को भारतीय जनता तथा संपूर्ण मानवता के लिये बहुत बड़ा उत्तरदायित्व सँभालना है। - सुनीतिकुमार चाटुर्ज्या।
कोई फिर कैसे.... | ग़ज़ल (काव्य)    Print this  
Author:कुँअर बेचैन

कोई फिर कैसे किसी शख़्स की पहचान करे
सूरतें सारी नकाबों में सफ़र करती हैं

अच्छे इंसान ही घाटे में रहे हैं अक्सर
वो हैं चीजें जो मुनाफ़ों मे सफर करती हैं

क्या पता बीच मे छलके कि लबो तक पहुँचे
ये शराबें जो गिलासो में सफ़र करती हैं

जो किसी के भी चुभी हो तो हमे बतलाएँ
खुशबुएँ रोज ही काँटो मे सफ़र करती हैं

सिर्फ़ मेरा ही नही सबका यही कहना है
मंजिलें अच्छे इरादों मे सफ़र करती हैं

वो किसी एक की होकर के रहें नामुमकिन
सारी नदियाँ दो किनारों में सफ़र करती हैं

रोशनी दे के जमाने को, चला जाऊँगा
बातियाँ जैसे चराग़ों में सफ़र करती हैं

उसको बस मोम कहो ढल जो गया साँचों में
हस्तियाँ कब किन्हीं साँचों में सफ़र करती हैं

- कुअँर बेचैन

 

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