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शुभ शान्तिमय शोभा जहाँ भव-बन्धनों को खोलती,हिल-मिल मृगों से खेल करती सिंहनी थी डोलती!स्वर्गीय भावों से भरे ऋषि होम करते थे जहाँ,उन ऋषिगणों से ही हमारा था हुआ उद्भव यहाँ ।। १८ ।।
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भारत-भारती से साभार
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