मेरी औक़ात का ऐ दोस्त शगूफ़ा न बना कृष्ण बनता है तो बन, मुझको सुदामा न बना
ये हवाएँ कभी पत्थर भी उठा लेती हैं अपना शीशे का मकाँ इतना भी अच्छा न बना
देख ! टूटे हुए तारे से मुहब्बत मत कर और गिरती हुई दीवार को अपना न बना
कोई पक्षी मेरे आँगन में न उतरे दिनभर मेरे भगवान ! मुझे इतना अकेला न बना
अपने ज़ख़्मों की नुमाइश तुझे करनी है तो कर इल्तिजा है कि मेरे दुख का तमाशा न बना
- ज्ञानप्रकाश विवेक
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