आज तो चिंटू के दादाजी ने मध्यप्रदेश की जो चुनावी कहानी चिंटू को सुनाई वह आप भी सुनकर हैरान रह जाएंगे। हुआ यूं --
इधर मध्यप्रदेश में लोकसभा का उपचुनाव था और उसी दिन दीपिका की शादी थी। दीपिका एक जागरूक नागरिक थी लेकिन शादी के समय मतदान करने की भला कौन सोचता है?
घर में विवाह की रस्में चल रहीं थीं।
"दीपिका ज़रा जल्दी करो। बसवाला आ चुका है। सब तैयार हैं मंडप में जाने को देर नहीं होनी चाहिए। रतलाम पहुँचना है और इलेक्शन का दिन है। रास्ते में भी चहल-पहल होगी।"
"जी, माँ चलिए।" दीपिका और उसकी सहेलियां उठकर बाहर बस की ओर चल दी थी।
"जल्दी करो भई।" दीपिका की माँ बस के दरवाजे पर खड़ी थी।
"इतनी टेंशन मत लो, आंटीजी। बस दुल्हन के बिना थोड़े चले जाएगी।" दीपिका की सहेली ने मज़ाक किया।
"चलो, चलो।" दीपिका के पिताजी भी सबको बस की ओर बुला रहे थे।
"सब बैठ गए?" ड्राइवर ने पूछा।
"ड्राइवर साहब, बहपुर से लेकर चलिएगा।" दीपिका ने ड्राइवर को कहा।
"बहपुर?" ड्राइवर बुदबुदाया।
"रतलाम का तो सीधा रास्ता है, न? फिर?" दीपिका के पापा ने प्रश्न किया।
"हाँ, पापा लेकिन हमें वोट भी तो देनी है, न!"
"क्या?" बस में बैठे बहुत से मेहमान एक-दूसरे का मुंह ताकने लगे।
"अरे, आज भी....."
"प्लीज पापा, हमें वोटिंग करने पोलिंग-बूथ जाना हैं।
"दीपिका ठीक कह रही है। मतदान भी तो जरूरी है।" एक-साथ कई स्वर उभरे।
"जैसी तुम्हारी मरजी। मैं क्या कहूं!" पापा ने मुस्कुराते हुए दीपिका की ओर देखा।
"ड्राइवर साहब, आप बहपुर बूथ से थोड़ी दूरी पर ही पार्क कर लीजिएगा। आज भीड़ भी होगी। हम बस वोटिंग करते ही आ जाएंगे और फिर सीधे रतलाम। बीच में आपको कहीं रोकने को नहीं कहेंगे।
"जैसा आप कहें।" ड्राइवर ने अब से पहले ऐसी दुल्हन कभी नहीं देखी थी।
"हम जाएंगे बहपुर फिर जाएंगे रतलाम हो..हो...आ..हा...!!"
बस में दीपिका की मित्र-मण्डली मस्ती के मूड में थी।
अब 'बस' बहपुर की ओर निकल चुकी थी।
दुल्हन के रूप में सजी दीपिका व उसके साथी जब बूथ पर पहुंचे तो कतार में लगे बहुत से नागरिकों ने उनकी कहानी को समझते हुए, उन्हें आगे निकल कर पहले वोट देने को कह दिया। दुल्हन और उसके साथी अब वोट दे रहे थे। - रोहित कुमार 'हैप्पी'
इस चुनावी कहानी का वीडियो देखिए। |