हिंदुस्तान की भाषा हिंदी है और उसका दृश्यरूप या उसकी लिपि सर्वगुणकारी नागरी ही है। - गोपाललाल खत्री।
जहाज का वृतांत (कथा-कहानी)    Print  
Author:तोताराम सनाढ्य | फीजी
 

फिर हम लोगों के नाम पुकारे गए और हम सब जहाज पर चढ़ाये गए। उस समय पाँच सौ भारतीय अपनी मातृभूमि को छोड़ कैदियों और गुलामों की तरह फिजी को जा रहे थे। यह किसे ज्ञात था कि वहाँ पहुच कर हमें असंख्य कष्ट सहने पड़ेगें! कितने ही आदमी अपनी माता, पिता, भाई, बहन इत्यादि के प्रेम में अश्रुओं की धारा बहा रहे थे। उन दुखों की कथा सुनने वाला वहाँ कोई नहीं था। जो लोग खसखस की टट्टियों में रहते हैं और जिन्होंने कि 'Eat drink and be merry' खाओ और मौज उड़ाओ, यही अपने जीवन का उद्देश्य समझ रखा है, वे उन बेचारे पाँच सौ भारतवासियों के हाल क्या जान सकते हैं। उनकी दुर्दशा पर तो वे ही ध्यान दे सकते हैं जिन्होंने कि 'परोपकाराय सतां ही जीवनम्' यही अपना आदर्श मंत्र बना लिया हो।

हम लोगों में से प्रत्येक को डेढ़ फुट चौड़ी और छह फुट लंबी जगह दी गयी। इतनी जगह एक मनुष्य के लिए कहाँ तक पर्याप्त हो सकती है, यह आप स्वंय विचार सकते हैं। कई लोगों ने शिकायत की कि इतने स्थान में हम नहीं रह सकते, तो गोरे डाक्टर ने ललकार कर कहा "साला टुम को रहना होगा"। जब हम लोग बैठ चुके तो हर एक को चार-चार बिस्कुट और आधी-आधी छटांक चीनी दी गयी। इन बिस्कुटों कों गोरे लोग डाग बिस्कुट कहते हैं और ये कुत्तों को खिलाये जाते हैं। हा परमात्मन्! हम भारतवासी क्या कुत्तों के समान हैं? बिस्कुटों के विषय में क्या पूछना है। इतने ज्यादा नरम थे कि घूसों से टूटे और पानी में भिगो कर खाए गए। लगभग चार बजे जहाज छोड़ दिया गया। अब मातृभूमि के लिए हमारा अंतिम नमस्कार था। 6 बजे सूर्य भगवान अस्त हुए। रात को 8 बजे हम लोग सो गए। प्रात:काल पहरेवाले ने हम लोगों को उठा दिया। देखते क्या है कि समुद्र में हिलोरें लेता हुआ हमारा जलयान चला जा रहा है। चारों तरफ नीले आकाश के अतिरिक्त कुछ नहीं दीख पड़ता था। उस समय हम लोगों के हृदय में अनेक भाव उत्पन्न हो रहे थे। जिस प्रकार कि कोई स्वतंत्र पक्षी पिंजरे में बंद कर दिया जाता है, उसी प्रकार हम लोग बंद कर दिए गए थे।

सवेरा होते ही उस जहाज के एक अफसर ने हम लोगों में से कुछ लोगों को रसोई बनाने के लिए और कुछ को पहरा देने के लिए चुना, और कुछ लोगों को 'टोपस' का काम करने के लिए नियुक्त किया। लोगों से कहा गया कि टोपस का काम कौन-कौन करेगा। हमारे भोले भाई नहीं जानते थे कि 'टोपस' क्या बला है। अतएव कितने ही लोगों ने टोपस का काम करनेवालों की सूची में अपना नाम लिखा लिया। जब जहाज के अफसर ने टोपसवालों से कहा "तुम लोग अपना काम करो" टोपसवालों ने कहा "क्या काम करें?" तब आज्ञा दी गयी कि "तुम लोग टट्टियों को साफ करो। कितने ही लोगों ने आपत्ति की। लेकिन वे पीटे गए और जबरदस्ती उनसे मैला उठवाया गया। सारे जहाज में त्राहि-त्राहि का शब्द गूँजने लगा। क्या हमारा शिक्षित जनसमुदाय इन दुखी भाइयों की पुकार पर ध्यान देगा? हमारे भाई जबरन जहाज पर मैला उठायें और हम चुपचाप बैठे रहें, क्या हमारे लिए यह लज्जा की बात नहीं है?

पीने के लिए दिन में दो बार एक-एक बोतल पानी मिलता है। फिर नहीं मिलता चाहे प्यासे मरो। खाने के विषय में भी यही बात है। वहीं मछली पकती थी और वहीं भात बनता था। Sea-sickness (समुद्री बीमारी) से भी बहुत आदमी पीड़ित हो गए। कई तो बेचारे कै करके इस संसार से सदा के लिए विदा हो गए। वे लोग समुद्र में फेंक दिए गए।

इस प्रकार तीन महीने बारह दिन में हमारा जहाज सिंगापुर, बोर्नियो इत्यादि के किनारे होता हुआ फिजी पहुँचा। यहाँ कुछ फिजी के विषय में लिखा जाता है।

Back
 
 
Post Comment
 
  Captcha
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें