अनसुनी करके तेरी बात न दे जो कोई तेरा साथ तो तुही कसकर अपनी कमर अकेला बढ़ चल आगे रे-- अरे ओ पथिक अभागे रे ।
देखकर तुझे मिलन की बेर सभी जो लें अपने मुख फेर न दो बातें भी कोई क रे सभय हो तेरे आगे रे-- अरे ओ पथिक अभागे रे ।
तो अकेला ही तू जी खोल सुरीले मन मुरली के बोल अकेला गा, अकेला सुन । अरे ओ पथिक अभागे रे अकेला ही चल आगे रे ।
जायँ जो तुझे अकेला छोड़ न देखें मुड़कर तेरी ओर बोझ ले अपना जब बढ़ चले गहन पथ में तू आगे रे-- अरे ओ पथिक अभागे रे ।
तो तुही पथ के कण्टक क्रूर अकेला कर भय-संशय दूर पैर के छालों से कर चूर । अरे ओ पथिक अभागे रे अकेला ही चल आगे रे ।
और सुन तेरी करुण पुकार अंधेरी पावस-निशि में द्वार न खोलें ही न दिखावें दीप न कोई भी जो जागे रे- अरे ओ पथिक अभागे रे ।
तो तुही वज्रानल में हाल जलाकर अपना उर-कंकाल अकेला जलता रह चिर काल । अरे ओ पथिक अभागे रे अकेला बढ़ चल आगे रे ।
- रवीन्द्रनाथ टैगोर
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