अरे भीरु, कुछ तेरे ऊपर, नहीं भुवन का भार इस नैया का और खिवैया, वही करेगा पार । आया है तूफ़ान अगर तो भला तुझे क्या आर चिन्ता का क्या काम चैन से देख तरंग-विहार । गहन रात आई, आने दे, होने दे अंधियार-- इस नैया का और खिवैया वही करेगा पार ।
पश्चिम में तू देख रहा है मेघावृत आकाश अरे पूर्व में देख न उज्ज्वल ताराओं का हास । साथी ये रे, हैं सब "तेरे", इसी लिए, अनजान समझ रहा क्या पायेंगे ये तेरे ही बल त्राण । वह प्रचण्ड अंधड़ आयेगा, काँपेगा दिल, मच जायेगा भीषण हाहाकार-- इस नैया का और खिवैया यही करेगा पार ।
- रवीन्द्रनाथ टैगोर
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