भर दीजे गर हो सके, जीवन अंदर रंग। वरना तो बेकार है, होली का हुड़दंग॥
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सबको कर काहे रहे, तुम होली में तंग। घोट-घोट के पी रहे, देखो कैसे भंग ॥
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मिलकर सब करने लगे, होली पर हुड़दंग। कोई फगुआ गा रहा, कोई घोटे भंग॥
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अभी तलक छोड़ी नहीं, दिल से उसने जंग। यूं होली को आ गया, मुख पर मलने रंग ॥
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अपना गुस्सा छोड़िए, आओ खेलें संग । देखो अंबर में उड़े, हैं होली के रंग ॥
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बिन तेरे लगता हमें, जीवन ये बेरंग। चाहे पिचकारी चले, चाहे उड़ते रंग ॥
- रोहित कुमार 'हैप्पी' |