झील, समुंदर, दरिया, झरने उसके हैं मेरे तश्नालब पर पहरे उसके हैं
हमने दिन भी अँधियारे में काट लिये बिजली, सूरज, चाँद-सितारे उसके हैं
चलना मेरी ज़िद में शामिल है वर्ना उसकी मर्ज़ी, सारे रस्ते उसके हैं
जिसके आगे हम उसकी कठपुतली हैं माया के वे सारे पर्दे उसके हैं
मुड़ कर पीछे शायद ही अब वो देखे हम पागल ही आगे-पीछे उसके हैं
- कृष्ण सुकुमार
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