मेरा शीश नवा दो अपनी चरण-धूल के तल में। देव! डुबा दो अहंकार सब मेरे आँसू-जल में।
अपने को गौरव देने को अपमानित करता अपने को, घेर स्वयं को घूम-घूम कर मरता हूं पल-पल में।
देव! डुबा दो अहंकार सब मेरे आँसू-जल में। अपने कामों में न करूं मैं आत्म-प्रचार प्रभो; अपनी ही इच्छा मेरे जीवन में पूर्ण करो।
मुझको अपनी चरम शांति दो प्राणों में वह परम कांति हो आप खड़े हो मुझे ओट दें हृदय-कमल के दल में। देव! डुबा दो अहंकार सब मेरे आँसू-जल में।
-रवीन्द्रनाथ टैगोर साभार - गीतांजलि, भारती भाषा प्रकाशन (1979 संस्करण), दिल्ली अनुवादक - हंसकुमार तिवारी |