हिंदी भाषा को भारतीय जनता तथा संपूर्ण मानवता के लिये बहुत बड़ा उत्तरदायित्व सँभालना है। - सुनीतिकुमार चाटुर्ज्या।
बहुत वासनाओं पर मन से | गीतांजलि (काव्य)    Print  
Author:रबीन्द्रनाथ टैगोर | Rabindranath Tagore
 

बहुत वासनाओं पर मन से हाय, रहा मर,
तुमने बचा लिया मुझको उनसे वंचित कर ।
संचित यह करुणा कठोर मेरा जीवन भर।

अनमाँगे जो मुझे दिया है
जोत गगन तन प्राण हिया है
दिन-दिन मुझे बनाते हो उस
महादान के लिए योग्यतर
अति-इच्छा के संकट से
मुझको उबार कर।

कभी भूल हो जाती चलता किंतु भी तो
तुम्हें बनाकर लक्ष्य उसी की एक लीक धर;
निठुर! सामने से जाते हो तुम जो हट पर।

है मालूम दया ही यह तो,
अपनाने को ठुकराते हो,
अपने मिलन योग्य कर लोगे
इस जीवन को बना पूर्णतर
इस आधी इच्छा के
संकट से उबार कर।

-रवीन्द्रनाथ टैगोर

साभार - गीतांजलि, भारती भाषा प्रकाशन (1979 संस्करण), दिल्ली
अनुवादक - हंसकुमार तिवारी

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