प्राण पंछी उड़ जाए जब, यहीं धरा रह जाए सब यही सिकंदर मिला धूल में और बुद्ध को निर्वाण मिला। प्राण पंछी उड़ जाए जब, यहीं धरा रह जाए सब।।
खुद को बहुत सयाना समझे सब को ठगता फिरता है इतनी भी क्या अक्ल नहीं हर जीवित इक दिन मरता है प्राण पंछी उड़ जाए जब, यहीं धरा रह जाए सब।।
ये संगी-साथी प्यारे सब जीवन में साथी हैं तेरे प्राण पखेरू उड़ते जब सफर अकेले होता तब प्राण पंछी उड़ जाए जब, यहीं धरा रह जाए सब।।
बस काम किया आराम किया विद्या पायी और नाम किया डर लगा मौत का जब तुझको तब जा ईश्वर का नाम लिया। प्राण पंछी उड़ जाए जब, यहीं धरा रह जाए सब।।
तू बना 'लेवता' ले-ले कर न हुआ 'देवता' कुछ देकर अब नाव भंवर में अटक गई तू पार लगा खुद खे इसको। प्राण पंछी उड़ जाए जब, यहीं धरा रह जाए सब।।
-रोहित कुमार 'हैप्पी' न्यूज़ीलैंड |