नागरी प्रचार देश उन्नति का द्वार है। - गोपाललाल खत्री।
बाल-साहित्य
बाल साहित्य के अन्तर्गत वह शिक्षाप्रद साहित्य आता है जिसका लेखन बच्चों के मानसिक स्तर को ध्यान में रखकर किया गया हो। बाल साहित्य में रोचक शिक्षाप्रद बाल-कहानियाँ, बाल गीत व कविताएँ प्रमुख हैं। हिन्दी साहित्य में बाल साहित्य की परम्परा बहुत समृद्ध है। पंचतंत्र की कथाएँ बाल साहित्य का एक महत्वपूर्ण स्रोत हैं। हिंदी बाल-साहित्य लेखन की परंपरा अत्यंत प्राचीन है। पंचतंत्र, हितोपदेश, अमर-कथाएँ व अकबर बीरबल के क़िस्से बच्चों के साहित्य में सम्मिलित हैं। पंचतंत्र की कहानियों में पशु-पक्षियों को माध्यम बनाकर बच्चों को बड़ी शिक्षाप्रद प्रेरणा दी गई है। बाल साहित्य के अंतर्गत बाल कथाएँ, बाल कहानियां व बाल कविता सम्मिलित की गई हैं।

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वंदना | बाल कविता - डा. राणा प्रताप सिंह गन्नौरी 'राणा'

मैं अबोध सा बालक तेरा,
ईश्वर! तू है पालक मेरा ।

         हाथ जोड़ मैं करूँ वंदना,
         मुझको तेरी कृपा कामना ।

मैं हितचिंतन करूँ सभी का,
बुरा न चाहूँ कभी किसी का ।

         कभी न संकट से भय मानूँ,
         सरल कठिनताओं को जानूँ ।

प्रतिपल अच्छे काम करूँ मैं,
देश का ऊँचा नाम करूँ मैं ।

         दुखी जनों के दुःख हरूँ मैं,
         यथा शक्ति सब को सुख दूँ मैं ।

गुरु जन का सम्मान करूँ मैं,
नम्र, विनीत, सुशील बनूँ मैं ।
 
        मंगलमय हर कर्म हो मेरा,
        मानवता ही धर्म हो मेरा ।

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डर भी पर लगता तो है न | बाल कविता - दिविक रमेश

चटख मसाले और अचार
कितना मुझको इनसे प्यार!
नहीं कराओ इनकी याद
देखो देखो टपकी लार।
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नदी क्यों रोती है? - अकबर बीरबल के किस्से

वर्षा ऋतु का समय था। यमुना नदी अपने उफान पर थी। बादशाह अकबर बीरबल के साथ बुर्जी पर चढ़ यमुना की सुंदरता निहार रहे थे। 
 
चारों ओर सन्नाटा था। ज़ोर से बहती यमुना नदी की धारा से उभरती ध्वनि को सुनकर बादशाह को कुछ ऐसा आभास हुआ जैसे यह नदी के रोने का स्वर हो। वे बीरबल से बोले--“क्या तुम्हें भी लगता है कि नदी रो रही है?" 
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सिंह और सियार | पंचतंत्र की कहानी - विष्णु शर्मा

पंचतंत्र की कहानी

बहुत पहले हिमालय की कन्दराओं में एक बलिष्ठ शेर रहा करता था। एक दिन वह शिकार के पश्चात अपनी गुफा को लौट रहा था। रास्ते में उसे एक मरियल-सा सियार मिला जिसने उसे दण्डवत् प्रणाम किया। फिर बोला , “महाराज! मैं आपका सेवक बनना चाहता हूँ। कुपया मुझे अपनी शरण में ले लें। मैं आपकी सेवा करुँगा और आपके द्वारा छोड़े गये शिकार से अपना गुजर-बसर कर लूंगा।" शेर ने उसकी बात मान उसे अपनी शरण में रख लिया।
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अक्कड़-बक्कड़ | बालगीत - सूर्य कुमार पांडेय

अक्कड़-बक्कड़ बंबे बोल
सारी दुनिया होती गोल, 
बोल हुए मीठे जिनके 
उनकी है कीमत अनमोल ।
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इन्नू बाबू - सुशान्ता कुमारी सिनहा

देखो इन्नू बाबू आये
आँखों में काजल फैलाये
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मुहावरे | बाल कविता - श्रीनाथ सिंह 

माथ पर मत हाथ रक्खो हर घड़ी। 
है अजब औंधी तुम्हारी खोपड़ी॥ 
खींचते हो बाल की भी खाल क्यों? 
और करते आँख हो यों लाल क्यों? 
कान मेरी बात को देते अगर। 
आँख नीची कर विदा लेते अगर॥ 
तो न सिर पर आज पर्वत टूटता। 
इस बुराई का न भंडा फूटता॥
नाक में दम आप अपने कर लिया। 
अब सदा को हाथ उससे धो लिया॥ 
है रहा देखो कलेजा कांप सा। 
लोट सीने पर गया है सांप सा॥ 
आंख किससे जा अचानक लड़ गई?
ढोल यह कैसी गले में पड़ गई! 
मूँछ क्या अब सर्वदा को मुड़ गई? 
हाथ में आई भी चिड़िया उड़ गई॥ 
अब फलाते गाल हो किसके लिये? 
पीठ पीछे ध्यान हैं किसने दिये? 
पेट ही में बात यह रहते धरे।
पैर होगा पीटने से क्या हरे? 
है समय कस कर कमर तैयार हो। 
मुँह न बाओ इस तरह लाचार हो॥
सूखती है जान तो थे किसलिये। 
सांप के मुँह में बड़ा अँगुली दिये!
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नभ में उड़ने की है मन में - आनन्द विश्वास (Anand Vishvas)

नभ में उड़ने की है मन में,
उड़कर पहुँचूँ नील गगन में।
काश, हमारे दो पर होते,
हम बादल से ऊपर होते।
तारों के संग यारी होती,
चन्दा के संग सोते होते।
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