कहानियां

इस श्रेणी के अंतर्गत

जीवन-संध्या

- लीलावती मुंशी

दिन का पिछला पहर झुक रहा था। सूर्य की उग्र किरणों की गर्मी नरम पड़ने लगी थी, रास्ता चलने वालों की छायाएँ लंबी होती जा रही थीं।
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अंगूर

- कमल कुमार शर्मा

भाभी की तबीयत खराब है। रमेश आधा सेर अंगूर लाया है। भाभी की लड़की शीला सामने बैठी है, कोई चार बरस की होगी। अंगूर देखते ही लपकी और खाने शुरू करें दिए। रमेश ने झड़पकर कहा--"अरे, सब तू ही खा जाएगी या उनके लिए भी कुछ छोड़ेगी?  भाभी, तुम भी देख रही हो, यह नहीं कि हटा लो। "
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ऊँचाइयाँ

- हंसा दीप

ऊँचाइयाँ--डॉ हंसादीप की कहानी

डॉ. आशी अस्थाना का भाषण चल रहा है। वे एक सुलझी हुई नेता हैं। नेता और नारी दोनों की भूमिका ने उनके व्यक्तित्व को ऊँचाइयों तक पहुँचाने में मदद की है। कभी वे अपनी कुर्सी के लिए भाषण देती हैं, कभी नारी की अस्मिता के लिए। उनके विचारों के सख़्त धरातल पर कभी राजनीति हावी होती है, तो कभी समाजनीति। एक ओर सत्ता की डोर को थामे उनके भीतर शासन करने का गर्व छलकता है, दूसरी ओर एक स्त्री होने की क्षमताओं को वजन देते उनके अंदर की नारी शक्ति हिलोरें मारने लगती है। दो मोर्चे एक साथ खोल रखे हैं उन्होंने, एक तो अपने सत्ताधारी दल की अधिकृत प्रवक्ता होने का और दूसरा नारी के ख़िलाफ़ हो रहे अत्याचारों के ख़िलाफ आवाज़ उठाने का।
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इंग्लिश रोज़

- अरुणा सब्बरवाल

इंग्लिश रोज़

वह आज भी खड़ी है... वक्त जैसे थम गया है... दस साल कैसे बीत जाते हैं... इतने वर्ष.... वही गाँव...वही नगर...वही लोग... यहाँ तक कि फूल और पत्तियां तक नहीं बदले। टूलिप्स सफेद डेज़ी लाल और पीला गुलाब वापिस उसकी तरफ ठीक वैसे ही देखते हैं जैसे उसकी निगाह को पहचानते हों।
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हँसो, जल्दी हँसो

- कल्पना मनोरमा

एहसास की स्याही से कहानी लिखे तो ठीक, वरना कथ्य को चेज़ करते रहना टाइफाइड के लक्षणों जैसा लगने लगता है। कभी-कभी प्रकाशित आकांक्षाएँ मन जाग्रत करने में चूक जाती हैं और धुँधले निष्कर्ष सहायक सिद्ध हो जाते हैं। शनिवार ऑफिस से लौटकर, जल्दी सोने और सुबह देर से उठने का मन था। बिस्तर पर पहुँचने तक ख़याल साथ रहा। जब ऑंखें मूँदीं तो नींद हवा हो गयी। विचारों की पोटली खुलकर, मन के आँगन में बिखर गयी। मैं उठकर कमरे में घूमने लगी।
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मौसी

- भुवनेश्वर

मानव-जीवन के विकास में एक स्थल ऐसा आता है, जब वह परिवर्तन पर भी विजय पा लेता है। जब हमारे जीवन का उत्थान या पतन, न हमारे लिए कुछ विशेषता रखता है, न दूसरों के लिए कुछ कुतूहल। जब हम केवल जीवित के लिए ही जीवित रहते हैं और वह मौत आती है; पर नहीं आती।
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