काव्य

जब ह्रदय अहं की भावना का परित्याग करके विशुद्ध अनुभूति मात्र रह जाता है, तब वह मुक्त हृदय हो जाता है। हृदय की इस मुक्ति की साधना के लिए मनुष्य की वाणी जो शब्द विधान करती आई है उसे काव्य कहते हैं। कविता मनुष्य को स्वार्थ सम्बन्धों के संकुचित घेरे से ऊपर उठाती है और शेष सृष्टि से रागात्मक संबंध जोड़ने में सहायक होती है। काव्य की अनेक परिभाषाएं दी गई हैं। ये परिभाषाएं आधुनिक हिंदी काव्य के लिए भी सही सिद्ध होती हैं। काव्य सिद्ध चित्त को अलौकिक आनंदानुभूति कराता है तो हृदय के तार झंकृत हो उठते हैं। काव्य में सत्यं शिवं सुंदरम् की भावना भी निहित होती है। जिस काव्य में यह सब कुछ पाया जाता है वह उत्तम काव्य माना जाता है।

इस श्रेणी के अंतर्गत

जब दर्द बढ़ा तो बुलबुल ने | गीत

- गोपाल सिंह नेपाली | Gopal Singh Nepali

जब दर्द बढ़ा तो बुलबुल ने, सरगम का घूँघट खोल दिया 
दो बोल सुने ये फूलों ने मौसम का घूँघट खोल दिया 
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श्याम सुंदर पर दोहे

- बिहारी

मेरी भवबाधा हरो, राधा नागरि सोय। 
जा तन की झाँई परे, स्याम हरित दुति होय॥ 
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चिड़िया | कविता

- शरद जोशी | Sharad Joshi

'च' ने चिड़िया पर कविता लिखी। 
उसे देख 'छ' और 'ज' ने चिड़िया पर कविता लिखी। 
तब त, थ, द, ध, न, ने 
फिर प, फ, ब, भ और म, ने 
'य' ने, 'र' ने, 'ल' ने 
इस तरह युवा कविता की बारहखड़ी के सारे सदस्यों ने 
चिड़िया पर कविता लिखी। 
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डॉ भावना कुँअर के हाइकु

- भावना कुँअर | ऑस्ट्रेलिया

अकेला बीज
धरती से मिलके 
फूटा खिलके।
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हाइकु 

- अभिषेक

रास्ते में बचे
झुलस गये पिता
घर में आ के
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कार सरकार | हास्य

- शैल चतुर्वेदी | Shail Chaturwedi

नए-नए मंत्री ने 
अपने ड्राइवर से कहा— 
‘आज कार हम चलाएँगे।’ 
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काका हाथरस्सी का हास्य काव्य

- काका हाथरसी | Kaka Hathrasi

अनुशासनहीनता और भ्रष्टाचार
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विरह का गीत

- कवि चोंच

तुम्हारी याद में खुद को बिसारे बैठे हैं। 
तुम्हारी मेज पर टॅगरी पसारे बैठे हैं।
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अच्छा है पर कभी-कभी | हास्य

- हुल्लड़ मुरादाबादी

बहरों को फ़रियाद सुनाना, अच्छा है पर कभी-कभी 
अंधों को दर्पण दिखलाना, अच्छा है पर कभी-कभी 
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सांईं की कुण्डलिया

- सांईं

सांईं बेटा बाप के बिगरे भयो अकाज। 
हरिनाकस्यप कंस को गयउ दुहुन को राज॥ 
गयउ दुहुन को राज बाप बेटा में बिगरी। 
दुश्मन दावागीर हँसे महिमण्डल नगरी॥ 
कह गिरधर कविराय युगन याही चलि आई। 
पिता पुत्र के बैर नफ़ा कहु कौने पाईं॥
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बड़प्पन   

- क्षेत्रपाल शर्मा

उनके बड़प्पन को मैं हमेशा कोसता रहा,
पता ही न लगा कि वे कितने बड़े थे,
ऊपर से, या नीचे से,
आगे से या पीछे से,
पेट तो उनका महा भक्षणी,
सिर उनका सड़ा हुआ था,
वे पूरे सरोवर को गंदा किए हुए,
एक कालिया नाग।
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विदा होता है वह

- विदा होता है वह | कविता

मेरी हथेली पर छोड़ कर
अपने गर्म होंठों के अहसास
मेरे साथ खुद को भी बहलाता है
तब विदा होता है वह
मैं अन्यमनस्क सी
देखती हूँ अपनी हथेली
वक्त के रुकने की दुआ करती सी
वक्त और तेज़ी से भागने लगता है
और फिर
धीरे से मेरा हाथ मेरी गोद में रखकर,
हौले से पीठ थपथपाता है
फिर विदा होता है वह।
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अनुपमा श्रीवास्तव 'अनुश्री' की दो कविताएं

- अनुपमा श्रीवास्तव 'अनुश्री'

मेह मधुराग
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कह मुकरियाँ

- स्मिता श्रीवास्तव

बगिया में है एकछत्र राज
इत्र की दुनिया का सरताज
गुलदस्ते में अलग रुआब
क्या सखि साजन न सखि गुलाब
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अंबर दीप जलाता है

- डॉ कुमारी स्मिता

दिन भर चलते-चलते थककर
सूरज जब छुप जाता है 
रात की काली चादर पर 
अंबर दीप जलाता है। 
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अपने घर में बना मेहमान...

- डॉ. कुँवर वीरेन्द्र विक्रम सिंह गौतम

अपने घर में बना मेहमान जो बाशिन्दा है, 
मुक्त आकाश का वो परकटा परिन्दा है।
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लोगों का मशवरा है कि…

- ज़फ़रुद्दीन ज़फ़र 

लोगों का मशवरा है कि मैं घर खरीद लूं,
उन्हें मालूम नहीं पहले मुक़द्दर खरीद लूं।
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आज कहना है हमारा

- रमादेवी 

आज कहना है हमारा उन अमीरों के लिए। 
हाथ लोहे के बने क्या दिल टटोला आपने॥ 
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ज़िंदगी तुझ को जिया है | ग़ज़ल

- सुदर्शन फ़ाकिर

ज़िंदगी तुझ को जिया है कोई अफ़्सोस नहीं 
ज़हर ख़ुद मैं ने पिया है कोई अफ़्सोस नहीं 
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दीवारों-दर थे... | ग़ज़ल

- देवी नागरानी

दीवारों-दर थे, छत थी वो अच्छा मकान था 
दो-चार तीलियों पर कितना गुमान था 
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जब यार देखा नैन भर

- अमीर ख़ुसरो

जब यार देखा नैन भर, दिल की गई चिंता उतर, 
ऐसा नहीं कोई अजब राखे उसे समझाय कर। 
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याद तुम्हारी आई

- रमानाथ अवस्थी | गीत

सो न सका कल याद तुम्हारी आई सारी रात 
और पास ही बजी कहीं शहनाई सारी रात 
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सच के लिए लड़ो मत साथी | गीत

- कुमार विश्वास

सच के लिए लड़ो मत साथी, 
भारी पड़ता है! 
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