साहित्य की उन्नति के लिए सभाओं और पुस्तकालयों की अत्यंत आवश्यकता है। - महामहो. पं. सकलनारायण शर्मा।
व्यंग्य
हिंदी व्यंग्य. Hindi Satire.

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हिन्दी की होली तो हो ली - गोपालप्रसाद व्यास | Gopal Prasad Vyas

(इस लेख का मज़मून मैंने होली के ऊपर इसलिए चुना कि 'होली' हिन्दी का नहीं, अंग्रेजी का शब्द है। लेकिन खेद है कि हिंदुस्तानियों ने इसकी पवित्रता को नष्ट करके एकदम गलीज़ कर दिया है। हिन्दी की होली तो हो ली, अब तो समूचे भारत में अंग्रेजी की होली ही हरेक चौराहे पर लहक रही है।)
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व्यंग्य समय - दिलीप कुमार

मैं व्यंग्य समय हूँ, हस्तिनापुर के समीप इंद्रप्रस्थ जो कि अब दिल्ली के नाम से जाना जाता है , यही मेरे व्यंग्य का खांडव वन रहा है। अब व्यंग्य के कई अर्जुन मेरे इस खांडव वन अर्थात व्यंग्य लोक को जलाने पर आतुर हैं।
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'गड़बड़गोष्ठी' का उद्घाटन | व्यंग्य - हरिशंकर शर्मा

"भाई भोलूराम, गड़बड़गोष्ठी' का उद्घाटन तो पिछले सप्ताह ख़ूब हुआ, परन्तु उसकी चकाचक रिपोर्ट पत्रों में प्रकाशित नहीं हुई। यों चालीस-पचास पंक्तियों में छप जाने से क्या होता है। इस प्रकार के समाचार भला ऐसे छापे जाते हैं"-- मनसुख स्वामी ने बड़ी उदासीनता दिखलाते हुए कहा। "हाँ महाराज ठीक है--" भोलूराम बोले, "सचमुच ये अख़बार वाले बड़े मतलबी होते हैं। लीडरों और मिनिस्टरों की तो दिन में दस-दस बार तसवीरें छापते हैं परन्तु हमारे गुरुजी का नाम भी नहीं प्रकाशित किया। उस दिन उद्घाटन के समय अख़बार वाला मौजूद तो था, उसे भरपेट चाय भी पिलाई गयी थी, रसगुल्ले और सन्देश भी छकाये थे फिर भी भले आदमी ने ठीक-ठोक समाचार नहीं छपाये। बड़ा बुरा आदमी है।"
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