भारत की परंपरागत राष्ट्रभाषा हिंदी है। - नलिनविलोचन शर्मा।
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होली से मिलते जुलते त्योहार - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

Holi Indian Festival
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लिखी कागद कारे किए - प्रभाष जोशी

सिडनी से ही ब्रिसबेन गया था और भारत को आस्ट्रेलिया से एक रन से हारते देखकर लौट आया था। सिडनी में भारत का मैच पाकिस्तान से होना था और फिर क्रिकेट के दो सबसे पुराने प्रतिद्वन्द्वियों इंग्लैंड और आस्ट्रेलिया का मुकाबला था। यानी काम के दिन दो थे और सिडनी में टिकना सात दिन था।
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हिन्दी की होली तो हो ली - गोपालप्रसाद व्यास | Gopal Prasad Vyas

(इस लेख का मज़मून मैंने होली के ऊपर इसलिए चुना कि 'होली' हिन्दी का नहीं, अंग्रेजी का शब्द है। लेकिन खेद है कि हिंदुस्तानियों ने इसकी पवित्रता को नष्ट करके एकदम गलीज़ कर दिया है। हिन्दी की होली तो हो ली, अब तो समूचे भारत में अंग्रेजी की होली ही हरेक चौराहे पर लहक रही है।)
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मैं कहानी कैसे लिखता हूँ - मुंशी प्रेमचंद | Munshi Premchand

मेरे किस्से प्राय: किसी-न-किसी प्रेरणा अथवा अनुभव पर आधारित होते हैं, उसमें मैं नाटक का रंग भरने की कोशिश करता हूँ मगर घटना-मात्र का वर्णन करने के लिए मैं कहानियाँ नहीं लिखता। मैं उसमें किसी दार्शनिक और भावनात्मक सत्य को प्रकट करना चाहता हूँ। जब तक इस प्रकार का कोई आधार नहीं मिलता, मेरी कलम ही नहीं उठती। आधार मिल जाने पर मैं पात्रों का निर्माण करता हूँ। कई बार इतिहास के अध्ययन से भी प्लाट मिल जाते हैं लेकिन कोई घटना कहानी नहीं होती, जब तक कि वह किसी मनोवैज्ञानिक सत्य को व्यक्त न करे।
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रूप | गद्य काव्य - वियोगी हरि

वह उठती हुई एक सुन्दर ज्वाला है। दूर से देख भर ले; उसे छूने का दुःसाहस मत कर। सन्तप्त नेत्रों को ठंडा करले, कोई रोकता नहीं। पर, मूर्ख! उसके स्पर्श से अपने शीतल अंगों को कहीं जला न बैठना।
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पुर तानह लौट यानि तानह लौट मंदिर - प्रीता व्यास | न्यूज़ीलैंड

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एम्स के निर्माण की कहानी  - रोहित कुमार 'हैप्पी'

दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स /AIIMS) से तो आप परिचित होंगे! इसके निर्माण की कहानी भी कम रोचक नहीं। इसकी स्थापना में न्यूज़ीलैंड की भी विशेष भूमिका थी। 
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व्यंग्य समय - दिलीप कुमार

मैं व्यंग्य समय हूँ, हस्तिनापुर के समीप इंद्रप्रस्थ जो कि अब दिल्ली के नाम से जाना जाता है , यही मेरे व्यंग्य का खांडव वन रहा है। अब व्यंग्य के कई अर्जुन मेरे इस खांडव वन अर्थात व्यंग्य लोक को जलाने पर आतुर हैं।
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'गड़बड़गोष्ठी' का उद्घाटन | व्यंग्य - हरिशंकर शर्मा

"भाई भोलूराम, गड़बड़गोष्ठी' का उद्घाटन तो पिछले सप्ताह ख़ूब हुआ, परन्तु उसकी चकाचक रिपोर्ट पत्रों में प्रकाशित नहीं हुई। यों चालीस-पचास पंक्तियों में छप जाने से क्या होता है। इस प्रकार के समाचार भला ऐसे छापे जाते हैं"-- मनसुख स्वामी ने बड़ी उदासीनता दिखलाते हुए कहा। "हाँ महाराज ठीक है--" भोलूराम बोले, "सचमुच ये अख़बार वाले बड़े मतलबी होते हैं। लीडरों और मिनिस्टरों की तो दिन में दस-दस बार तसवीरें छापते हैं परन्तु हमारे गुरुजी का नाम भी नहीं प्रकाशित किया। उस दिन उद्घाटन के समय अख़बार वाला मौजूद तो था, उसे भरपेट चाय भी पिलाई गयी थी, रसगुल्ले और सन्देश भी छकाये थे फिर भी भले आदमी ने ठीक-ठोक समाचार नहीं छपाये। बड़ा बुरा आदमी है।"
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सुब्रह्मण्य भारती : बीसवीं सदी के महान तमिल कवि - डॉ. एस मुथुकुमार

देश के स्वाधीनता संग्राम में जहाँ कुछ देशभक्तों ने अपने तेजस्वी भाषणों, नारों से विदेशी सत्ता का दिल दहलाया, वहीं कुछ ऐसे साहित्यकार भी थे जिन्होंने अपने काव्य-बाणों से विपक्षी को आहत किया। हिंदी में यदि ‘मैथिलीशरण गुप्त‘, ‘सोहनलाल द्विवेदी‘, ‘सुभद्राकुमारी चौहान‘, ‘रामधारी सिंह ‘दिनकर‘ आदि ने अपनी काव्य-रचनाओं से भारतीय नवयुवकों के मन में देश-प्रेम के भाव भरे तो देश की अन्य भाषाओं में भी ऐसे देशभक्त कवि, साहित्यकार हुए जिनकी रचनाओं ने अँग्रेजी राज्य की जड़ें हिला दीं। तमिल भाषा के ऐसे ही कवि थे ‘सुब्रह्मण्य भारती‘।
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हिंदी की व्यंग्य प्रधान ग़ज़ले - डॉ.जियाउर रहमान जाफरी

व्यंग्य साहित्य की वह विधा है जो पाठकों के लिए तो हमेशा रुचिकर रही लेकिन आलोचकों ने इसे स्थापित करने में कभी कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। अक्सर व्यंग्य को हास्य के साथ जोड़ दिया जाता है जबकि हास्य और व्यंग्य दोनों अलग-अलग प्रकार की विधा है। व्यंग्य में गंभीरता भी होती है पर हास्य अक्सर हास्यास्पद बन जाता है।
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