बात सँभारे बोलिए, समुझि सुठाँव-कुठाँव ।
वातै हाथी पाइए, वातै हाथा-पाँव ॥१॥
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दोहे
दोहा मात्रिक अर्द्धसम छंद है। इसके पहले और तीसरे चरण में 13 तथा दूसरे और चौथे चरण में 11 मात्राएं होती हैं। इस प्रकार प्रत्येक दल में 24 मात्राएं होती हैं। दूसरे और चौथे चरण के अंत में लघु होना आवश्यक है। दोहा सर्वप्रिय छंद है।
कबीर, रहीम, बिहारी, उदयभानु हंस, डा मानव के दोहों का संकलन।