हूँ...., आज माँ ने फिर से बैंगन की सब्जी बना कर डिब्बे में डाल दी। मुझे माँ पर गुस्सा आ रहा था । कितनी बार कहा है कि मुझे ये सब्जी पसंद नहीं, मत बनाया करो।
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लघुकथाएं
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इच्छा | लघु-कथा
कोरोना फिर कब आएगा
सुमेल और राकेश की ड्यूटी स्लम एरिया में राशन बाँटने की लगी थी। बस्ती की सारी गलियों में राशन बाँटकर गाड़ी सड़क की ओर मोड़ ही रहे थे कि देखा पीछे से एक औरत बाबूजी, बाबूजी कहती हुई भागती आ रही थी। उसे देख सुमेल ने राकेश को गाड़ी रोकने के लिए कहा, वह औरत पास आई तो सुमेल ने कहा, "बीबी सारा सामान मिल तो गया है, कम से कम हफ़्ता-दस दिन चल जाएगा। अब और क्या चाहिए तुम्हें?"
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सीड बॉल
जून का महीना था। इतवार के दिन मैं काम से छुट्टी लेता था। छुट्टी के दिन सुबह-सुबह गाँव में टहलने की मेरी आदत थी। अपनी आदत के मुताबिक मैं घर से निकला था। गाँव के बाहर पहाड़ों पर छोटी छोटी आकृतियाँ दिखाई दे रही थी। वैसे तो यह जगह अक्सर सुनसान रहती थी। मैं पहाड़ की तरफ निकल गया और वहाँ पहुँचने पर देखा कि छोटे बच्चे कीचड़ के लड्डू बना रहे थे। डॉक्टर होने के कारण मुझसे रहा नहीं गया। आदत के अनुसार बच्चों को हिदायते देने लगा। कीचड़ से सने उनके शरीर को देखकर, उनको डाटने भी लगा।
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देवताओं का फ़ैसला
(1)
प्रातःकाल महाराज उठे उन्होंने आज्ञा दी, कि शाही दरवाज़े के भिक्षुकों को सम्मान से हमारे सामने पेश किया जाये।
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