मैं जब भी अपनी बालकनी से झाँक कर ऊपर का आसमान देखने की कोशिश करती हूँ और वह पूरा नहीं दिखता, तो बालपन का भरा-पूरा संसार आज के अधूरेपन पर जरा रुष्ट सा हो जाता है।और, याद आता है हमारे घर की वह छत! वह विस्तृत छत! जिसका विस्तार सीने में धड़कते दिल जैसा ही था। जहाँ से हमारा पूरा संसार दिखाई देता था। आज भी वही यादें हमें संपन्न बनाए हुए हैं।वरना, हमें गरीबी और अमीरी का फर्क समझ में ही नहीं आता।
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संस्मरण
संस्मरण - Reminiscence