Warning: session_start(): open(/tmp/sess_a5ac1c9604f59a31e8c1c419abb5bc78, O_RDWR) failed: No such file or directory (2) in /home/bharatdarshanco/public_html/lit_details.php on line 3

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /tmp) in /home/bharatdarshanco/public_html/lit_details.php on line 3
 सोऽहम् | चन्द्रधर शर्मा गुलेरी की कविता | Hindi poem by Chandradhar Sharma Guleri
हिंदी जाननेवाला व्यक्ति देश के किसी कोने में जाकर अपना काम चला लेता है। - देवव्रत शास्त्री।

सोऽहम् | कविता

 (काव्य) 
Print this  
रचनाकार:

 चंद्रधर शर्मा गुलेरी | Chandradhar Sharma Guleri

करके हम भी बी० ए० पास
           हैं अब जिलाधीश के दास ।
पाते हैं दो बार पचास
           बढ़ने की रखते हैं आस ॥१॥

खुश हैं मेरे साहिब मुझ पर
           मैं जाता हूँ नित उनके घर ।
मुफ्त कई सरकारी नौकर
           रहते हैं अपने घर हाजिर ॥२॥

पढ़कर गोरों के अखबार
           हुए हमारे अटल विचार,
अँग्रेज़ी में इनका सार,
           करते हैं हम सदा प्रचार ॥३॥

वतन हमारा है दो-आब,
           जिसका जग मे नहीं जवाब ।
बनते बनते जहां अजाब,
           बन जाता है असल सवाब ॥४॥

ऐसा ठाठ अजूबा पाकर,
          करें किसी का क्यों मन में डर ।
खाते पीते हैं हम जी भर,
          बिछा हुआ रखते हैं बिस्तर ॥५॥

हमें जाति की जरा न चाह,
          नहीं देश की भी परवाह ।
हो जावे सब भले तबाह,
          हम जावेंगे अपनी राह ॥६॥

- चन्द्रधर शर्मा गुलेरी
  [सरस्वती 1907 में प्रकाशित गुलेरी जी की रचना]

Back
 
Post Comment
 
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश