हिंदी समस्त आर्यावर्त की भाषा है। - शारदाचरण मित्र।

मेरा दिल वह दिल है | ग़ज़ल

 (काव्य) 
Print this  
रचनाकार:

 त्रिलोचन

मेरा दिल वह दिल है कि हारा नहीं है
कहीं तिनके का भी सहारा नहीं है

जो मोजों को देखा तो जी हो न माना
यह मालूम था यह किनारा नहीं है

जिसे देख के लोग पलकें बिछा दें
कहेगा उसे कौन प्यारा नहीं है

करें हम वही, आप जो चाहते हैं
मगर किस तरह, कोई चारा नही है

कहाँ प्रेम सब को दिखाई दिया है
नदी फल्गु है जिस में धारा नही है

जो पतझर के पत्ते सा उड़ता रहा है
कहे कौन क़िस्मत का मारा नहीं है

यह आकाश है जिस में तारे ही तारे
मगर इसमें मेरा वह तारा नहीं है

लावण्य आंखों में आता रहा है
हुआ अजल यों ही खारा नहीं है

किसी का धरा पर हुआ वह न होगा
त्रिलोचन यहाँ जो तुम्हारा नहीं है

-त्रिलोचन

Back
 
Post Comment
 
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश