हिंदी उन सभी गुणों से अलंकृत है जिनके बल पर वह विश्व की साहित्यिक भाषाओं की अगली श्रेणी में सभासीन हो सकती है। - मैथिलीशरण गुप्त।

कुर्सी पर काका की कुंडलियाँ

 (काव्य) 
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रचनाकार:

 काका हाथरसी | Kaka Hathrasi

कुरसीमाई

शासन की कुरसी मिले, हों साहब के ठाठ,
कुरसी जी की कृपा से, सोफा हाजिर आठ।
सोफा हाजिर आठ, मारते रहें मलाई,
राजनीति में सर्वश्रेष्ठ है कुरसीमाई।
जिसे प्राप्त हो, चेहरे पर खिल जाए बसंता,
हो जाता है पाँच साल तक का चिपकंता।

कुरसीरानी

कुरसीरानी से रहे, नेताश्री को मोह,
करते प्रभु से प्रार्थना, इससे न हो बिछोह।
इससे न हो बिछोह रहे कुरसी जीवन भर,
आ जाए जब अंत, मरूँ कुरसी के ऊपर।
बैठ जाए कुत्ता तो चैन नहीं पाएगा,
भौंक-भौंककर भाषण देने लग जाएगा।

-काका हाथरसी

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