शेरों को आज़ादी है, आज़ादी के पाबंद रहें,
जिसको चाहें चीरें-फाड़ें, खाएं-पीएं आनंद रहें।
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कविताएं
इस श्रेणी के अंतर्गत
आज़ादी
वंदन कर भारत माता का | काका हाथरसी की हास्य कविता
वंदन कर भारत माता का, गणतंत्र राज्य की बोलो जय ।
काका का दर्शन प्राप्त करो, सब पाप-ताप हो जाए क्षय ॥
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हम होंगे कामयाब
हम होंगे कामयाब, हम होंगे कामयाब
हम होंगे कामयाब एक दिन
ओ हो मन में है विश्वास, पूरा है विश्वास,
हम होंगे कामयाब एक दिन॥
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हम स्वेदश के प्राण
प्रिय स्वदेश है प्राण हमारा,
हम स्वदेश के प्राण।
आँखों में प्रतिपल रहता है,
ह्रदयों में अविचल रहता है
यह है सबल, सबल हैं हम भी
इसके बल से बल रहता है,
और सबल इसको करना है,
करके नव निर्माण।
हम स्वदेश के प्राण।
यहीं हमें जीना मरना है,
हर दम इसका दम भरना है,
सम्मुख अगर काल भी आये
चार हाथ उससे करना है,
इसकी रक्षा धर्म हमारा,
यही हमारा त्राण।
हम स्वदेश के प्राण।
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शहीद पूछते हैं
भोग रहे जो आज आज़ादी
किसने तुम्हें दिलाई थी?
चूमे थे फाँसी के फंदे,
किसने गोली खाई थी?
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जलियाँवाला बाग में बसंत
यहाँ कोकिला नहीं, काग हैं, शोर मचाते,
काले काले कीट, भ्रमर का भ्रम उपजाते।
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देश
ग्राम, नगर या कुछ लोगों का काम नहीं होता है देश
संसद, सड़कों, आयोगों का नाम नहीं होता है देश
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भारत भूमि
भलि भारत भूमि भले कुल जन्मु समाजु सरीरु भलो लहि कै।
करषा तजि कै परुषा बरषा हिम मारुत धाम सदा सहि कै॥
जो भजै भगवानु सयान सोई तुलसी हठ चातकु ज्यों ज्यौं गहि कै।
न तु और सबै बिषबीज बए हर हाटक कामदुहा नहि कै॥
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देश पीड़ित कब तक रहेगा
अगर देश आँसू बहाता रहा तो,
ये संसार सोचो हमें क्या कहेगा?
नहीं स्वार्थ को हमने त्यागा कहीं तो
निर्दोष ये रक्त बहता रहेगा,
ये शोषक हैं सारे नहीं लाल मेरे
चमन तुमको हर वक़्त कहता रहेगा।
अगर इस धरा पर लहू फिर बहा तो
ये निश्चित तुम्हारा लहू ही बहेगा,
अगर देश आँसू बहाता रहा तो,
ये संसार सोचो हमें क्या कहेगा?
अगर देश को हमसे मिल कुछ न पाया
तो बेकार है फिर ये जीवन हमारा,
पशु की तरह हम जिए तो जिए क्या
थूकेगा हम पर तो संसार सारा।
जतन कुछ तो कर लो, सँभालो स्वयं को
भला देश पीड़ा यों कब तक सहेगा,
अगर देश आँसू बहाता रहा तो,
ये संसार सोचो हमें क्या कहेगा?
यौवन तो वो है खिले फूल-सा जो
चमन पर रहे, कंटकों में महकता,
शूलों से ताड़ित रहे जो सदा ही
समर्पित चमन पर रहे जो चमकता।
अँधेरा धरा पर कहीं भी रहे तो
ये जल-जल स्वयं ही सवेरा करेगा,
अगर देश आँसू बहाता रहा तो,
ये संसार सोचो हमें क्या कहेगा?
आँसू बहाए चमन, तुम हँसे तो
ये समझो कि जीवन में रोते रहोगे,
बलिदान देकर जो पाया वतन है
उसे भी सतत यों ही खोते रहोगे।
अगर ज्योति बनकर नहीं झिलमिलाए
तो धरती में जन-जन सिसकता रहेगा,
अगर देश आँसू बहाता रहा तो,
ये संसार सोचो हमें क्या कहेगा?
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यदि देश के हित मरना पड़े
यदि देश के हित मरना पड़े, मुझको सहस्त्रों बार भी,
तो भी न मैं इस कष्ट को, निज ध्यान में लाऊं कभी।
हे ईश! भारतवर्ष में, शत बार मेरा जन्म हो,
कारण सदा ही मृत्यु का, देशोपकारक कर्म हो॥
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मेरे देश का एक बूढ़ा कवि
फटे हुए लिबास में क़तार में खड़ा हुआ
उम्र के झुकाओ में आस से जुड़ा हुआ
किताब हाथ में लिये भीड़ से भिड़ा हुआ
कोई सुने या न सुने आन पे अड़ा हुआ
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भारत न रह सकेगा ...
भारत न रह सकेगा हरगिज गुलामख़ाना।
आज़ाद होगा, होगा, आता है वह जमाना।।
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सरफ़रोशी की तमन्ना
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है।
देखना है ज़ोर कितना बाज़ु-ए-कातिल में है॥
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सारे जहाँ से अच्छा
सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा।
हम बुलबुलें हैं इसकी वह गुलिस्तां हमारा ॥
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दूर तक याद-ए-वतन आई थी समझाने को
हम भी आराम उठा सकते थे घर पर रह कर।
हम को भी पाला था माँ-बाप ने दुख सह सह कर।
वक़्त-ए-रुख़्सत उन्हें इतना भी न आए कह कर।
गोद में आँसू कभी टपके जो रुख़ से बह कर।
तिफ़्ल उन को ही समझ लेना जी बहलाने को॥
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आत्म-दर्शन
चन्द्रशेखर नाम, सूरज का प्रखर उत्ताप हूँ मैं,
फूटते ज्वाला-मुखी-सा, क्रांति का उद्घोष हूँ मैं।
कोश जख्मों का, लगे इतिहास के जो वक्ष पर है,
चीखते प्रतिरोध का जलता हुआ आक्रोश हूँ मैं।
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कौमी गीत
हम हैं इसके मालिक हिंदुस्तान हमारा
पाक वतन है कौम का, जन्नत से भी प्यारा
ये है हमारी मिल्कियत, हिंदुस्तान हमारा
इसकी रूहानियत से, रोशन है जग सारा
कितनी कदीम, कितनी नईम, सब दुनिया से न्यारा
करती है जरखेज जिसे, गंगो-जमुन की धारा
ऊपर बर्फीला पर्वत पहरेदार हमारा
नीचे साहिल पर बजता सागर का नक्कारा
इसकी खाने उगल रहीं, सोना, हीरा, पारा
इसकी शान शौकत का दुनिया में जयकारा
आया फिरंगी दूर से, ऐसा मंतर मारा
लूटा दोनों हाथों से, प्यारा वतन हमारा
आज शहीदों ने है तुमको, अहले वतन ललकारा
तोड़ो, गुलामी की जंजीरें, बरसाओ अंगारा
हिन्दू मुसलमाँ सिख हमारा, भाई भाई प्यारा
यह है आज़ादी का झंडा, इसे सलाम हमारा ॥
-- अजीमुल्ला
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भारतवर्ष
जय जय प्यारा भारत देश।
जय जय प्यारा जग से न्यारा,
शोभित सारा देश हमारा।
जगत-मुकुट जगदीश-दुलारा,
जय सौभाग्य-सुदेश॥
जय जय प्यारा भारत देश।
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भारत माँ की लोरी
यह कैसा कोलाहल, कैसा कुहराम मचा !
है शोर डालता कौन आज सीमाओं पर ?
यह कौन हठी जो आज उठाना चाह रहा
हिम मंडित प्रहरी अपनी क्षुद्र भुजाओं पर ?
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स्वतंत्रता दिवस की पुकार
पन्द्रह अगस्त का दिन कहता - आज़ादी अभी अधूरी है।
सपने सच होने बाक़ी हैं, राखी की शपथ न पूरी है॥
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एक और जंजीर तड़कती है, भारत मां की जय बोलो
इन जंजीरों की चर्चा में कितनों ने निज हाथ बँधाए,
कितनों ने इनको छूने के कारण कारागार बसाए,
इन्हें पकड़ने में कितनों ने लाठी खाई, कोड़े ओड़े,
और इन्हें झटके देने में कितनों ने निज प्राण गँवाए!
किंतु शहीदों की आहों से शापित लोहा, कच्चा धागा।
एक और जंजीर तड़कती है, भारत मां की जय बोलो।
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दो बजनिए | कविता
"हमारी तो कभी शादी ही न हुई,
न कभी बारात सजी,
न कभी दूल्हन आई,
न घर पर बधाई बजी,
हम तो इस जीवन में क्वांरे ही रह गए।"
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शुभेच्छा
न इच्छा स्वर्ग जाने की नहीं रुपये कमाने की ।
नहीं है मौज करने की नहीं है नाम पाने की ।।
नहीं महलों में रहने की नहीं मोटर पै चलने की ।
नहीं है कर मिलाने की नहीं मिस्टर कहाने की ।।
न डिंग्री हाथ करने की, नहीं दासत्व पाने की ।
नहीं जंगल में जाकर ईश धूनी ही रमाने की ।।
फ़क़त इच्छा है ऐ माता! तेरी शुभ भक्ति करने की ।
तेरा ही नाम धरने की तेरा ही ध्यान करने की ।।
तेरे ही पैर पड़ने की तेरी आरत भगाने की ।
करोड़ों कष्ट भी सह कर शरण तव मातु आने की ।।
नहीं निज बंधुओ को अन्य टापू में पठाने की ।
नहीं निज पूर्वजों की कीर्ति को दाग़ी कराने की ।।
चाहे जिस भांति हो माता सुखद निज-राज्य पाने की ।
मरण उपरान्त भी माता! पुन: तव गोद आने की ।।
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शहीदों के प्रति
भइया नहीं है लाशां यह बे कफ़न तुम्हारा
है पूजने के लायक पावन बदन तुम्हारा
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वीर सपूत
गंगा बड़ी है हिमालय बड़ा है
तुम बड़े हो या धरती बड़ी है
तुम सरहदों पर रात दिन
जल रहे मशाल हो
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वतन का राग
भारत प्यारा देश हमारा, सब देशों से न्यारा है।
हर रुत हर इक मौसम उसका कैसा प्यारा प्यारा है।
कैसा सुहाना, कैसा सुन्दर प्यारा देश हमारा हैं ।
दुख में, सुख में, हर हालत में भारत दिल का सहारा है ।
भारत प्यारा देश हमारा सब देशों से न्यारा है॥
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वो चुप रहने को कहते हैं | नज़्म
इलाही ख़ैर वो हर दम नई बेदाद करते हैं।
हमें तुहमत लगाते हैं जो हम फ़र्याद करते हैं॥
कभी आज़ार देते हैं कभी बेदाद करते हैं।
मगर इस पर भी सौ जी से हम उनको याद करते हैं॥
असीराने कफ़स से काश ये सैयाद कह देता।
रहो आज़ाद होकर हम तुम्हें आज़ाद करते हैं॥
रहा करता है अहले ग़म को क्या-क्या इंतिज़ार उसका।
के देखें वो दिले नाशाद को कब शाद करते हैं॥
यह कह-कह कर बसर की उम्र हमने क़ैदे उल्फ़त में।
वो अब आज़ाद करते हैं, वो अब आज़ाद करते हैं॥
सितम ऐसा नहीं देखा, जफ़ा ऐसी नहीं देखी।
वो चुप रहने को कहते हैं जो हम फ़र्याद करते हैं॥
यह बात अच्छी नहीं होती यह बात अच्छी नहीं करते।
हमें बेकस समझ कर आप क्यों बरबाद करते हैं॥
कोई बिस्मिल बनाता है जो मक़तल में हमें 'बिस्मिल'।
तो हम डर कर दबी आवाज़ से फ़र्याद करते हैं॥
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यह भारतवर्ष हमारा है
मैं गर्व से यारों कहता हूँ, यह भारतवर्ष हमारा है
बना हुआ है दिल की धड़कन, सबकी आँखों का तारा है
अजब गजब यह देश निराला, ये जहाँ में सबसे प्यारा है
प्रेम सदभाव से खुदको जिसने, विश्व में ऊँचा उभारा है
मैं गर्व से यारों कहता हूँ, वह भारतवर्ष हमारा है
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भारत माँ के अनमोल रतन
आज सस्मित रेखाएं,
खींची जो जन-जन के मुख पर
गर्व से आजाद घूमते
अधिकार है जिनका सुख पर!
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खूनी पर्चा
अमर भूमि से प्रकट हुआ हूं, मर-मर अमर कहाऊंगा,
जब तक तुझको मिटा न लूंगा, चैन न किंचित पाऊंगा।
तुम हो जालिम दगाबाज, मक्कार, सितमगर, अय्यारे,
डाकू, चोर, गिरहकट, रहजन, जाहिल, कौमी गद्दारे,
खूंगर तोते चश्म, हरामी, नाबकार और बदकारे,
दोजख के कुत्ते खुदगर्जी, नीच जालिमों हत्यारे,
अब तेरी फरेबबाजी से रंच न दहशत खाऊंगा,
जब तक तुझको...।
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पंद्रह अगस्त की पुकार
पंद्रह अगस्त का दिन कहता -
आज़ादी अभी अधूरी है।
सपने सच होने बाकी है,
रावी की शपथ न पूरी है।।
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खूनी हस्ताक्षर
वह खून कहो किस मतलब का,
जिसमें उबाल का नाम नहीं ?
वह खून कहो किस मतलब का,
आ सके देश के काम नहीं ?
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नेताजी का तुलादान
देखा पूरब में आज सुबह,
एक नई रोशनी फूटी थी।
एक नई किरन, ले नया संदेशा,
अग्निबान-सी छूटी थी॥
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नारी
नारी तुम बाध्य नहीं हो,
हाँ, नहीं हो तुम बाध्य--
जीवनभर ढोने को मलबा
सड़ी-गली,थोथी, अर्थहीन परम्पराओं का।
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आज़ादी
भोग रहे हम आज आज़ादी, किसने हमें दिलाई थी!
चूमे थे फाँसी के फंदे, किसने गोली खाई थी?
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