हास्य काव्य

भारतीय काव्य में रसों की संख्या नौ ही मानी गई है जिनमें से हास्य रस (Hasya Ras) प्रमुख रस है जैसे जिह्वा के आस्वाद के छह रस प्रसिद्ध हैं उसी प्रकार हृदय के आस्वाद के नौ रस प्रसिद्ध हैं - श्रृंगार रस (रति भाव), हास्य रस (हास), करुण रस (शोक), रौद्र रस (क्रोध), वीर रस (उत्साह), भयानक रस (भय), वीभत्स रस (घृणा, जुगुप्सा), अद्भुत रस (आश्चर्य), शांत रस (निर्वेद)।

इस श्रेणी के अंतर्गत

सरकार कहते हैं

- गोपालप्रसाद व्यास | Gopal Prasad Vyas

बुढ़ापे में जो हो जाए उसे हम प्यार कहते हैं,
जवानी की मुहब्बत को फ़कत व्यापार कहते हैं।
जो सस्ती है, मिले हर ओर, उसका नाम महंगाई,
न महंगाई मिटा पाए, उसे सरकार कहते हैं।
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सत्ता

- गोपालप्रसाद व्यास | Gopal Prasad Vyas

सत्ता अंधी है
लाठी के सहारे चलती है।
सत्ता बहरी है
सिर्फ धमाके सुनती है।
सत्ता गूंगी है
सिर्फ माइक पर हाथ नचाती है।
कागज छूती नहीं
आगे सरकाती है।
सत्ता के पैर भारी हैं
कुर्सी पर बैठे रहने की बीमारी है।
पकड़कर बिठा दो
मारुति में चढ़ जाती है।
वैसे लंगड़ी है
बैसाखियों के बल चलती है।
सत्ता अकड़ू है
माला पहनती नहीं, पकड़ू है।
कोई काम करती नहीं अपने हाथ से,
चल रही है चमचों के साथ से।
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