काव्य

जब ह्रदय अहं की भावना का परित्याग करके विशुद्ध अनुभूति मात्र रह जाता है, तब वह मुक्त हृदय हो जाता है। हृदय की इस मुक्ति की साधना के लिए मनुष्य की वाणी जो शब्द विधान करती आई है उसे काव्य कहते हैं। कविता मनुष्य को स्वार्थ सम्बन्धों के संकुचित घेरे से ऊपर उठाती है और शेष सृष्टि से रागात्मक संबंध जोड़ने में सहायक होती है। काव्य की अनेक परिभाषाएं दी गई हैं। ये परिभाषाएं आधुनिक हिंदी काव्य के लिए भी सही सिद्ध होती हैं। काव्य सिद्ध चित्त को अलौकिक आनंदानुभूति कराता है तो हृदय के तार झंकृत हो उठते हैं। काव्य में सत्यं शिवं सुंदरम् की भावना भी निहित होती है। जिस काव्य में यह सब कुछ पाया जाता है वह उत्तम काव्य माना जाता है।

इस श्रेणी के अंतर्गत

झिलमिल आई है दीवाली

- भारत-दर्शन संकलन

जन-जन ने हैं दीप जलाए
लाखों और हजारों ही
धरती पर आकाश आ गया
सेना लिए सितारों की
छुप गई हर दीपक के नीचे
देखो आज अमावस काली
सुंदर-सुंदर दीपों वाली
झिलमिल आई है दीवाली
...


शिव की भूख

- संध्या नायर | ऑस्ट्रेलिया

एक बार शिव शम्भू को
लगी ज़ोर की भूख
भीषण तप से गया
कंठ का
हलाहल तक सूख !
...


प्रभु ईसा

- मैथिलीशरण गुप्त | Mathilishran Gupt

मूर्तिमती जिनकी विभूतियाँ
जागरूक हैं त्रिभुवन में;
मेरे राम छिपे बैठे हैं
मेरे छोटे-से मन में;
...


महानगर पर दोहे

- राजगोपाल सिंह

अद्भुत है, अनमोल है, महानगर की भोर
रोज़ जगाता है हमें, कान फोड़ता शोर
...


रिसती यादें

- श्रद्धांजलि हजगैबी-बिहारी | Shradhanjali Hajgaybee-Beeharry

दोस्तों के साथ बिताए लम्हों की
याद दिलाते
कई चित्र आज भी
पुरानी सी. डी. में धूल के नीचे
मात खाकर
दराज़ के किसी कोने में
चुप-चाप सोये हुए हैं।
दबी यादें हवा के झोंकों के साथ
मस्तिष्क तक आकर रुक जातीं,
कुछ यादें अभी भी ताज़ा हैं
कुछ धूमिल हो गईं
समय के साथ,
दोस्त तो अब भी मिलते हैं
पेज को लाइक करने वाले
फोटो पर कमेंट करने वाले
स्टेटस पर जोक करने वाले।
नए दोस्त भी मिले
तारीफ करने वाले,
तारीफ भरे शब्दों के साथ
स्माइलीज़ को मुंह पर चिपकाए
घण्टों चैट पर ठहाके लगाने वाले।
अब नहीं मिलते वे दोस्त
लेकिन ... अब नहीं मिलते!
नज़रें बार-बार
उसी दराज़ तक जाकर
रुक जातीं
दोस्ती की उन यादों पर
धूल अभी भी जमी है,
परतें इतनी कि
नहीं दिखते वे दोस्त अब
वे दोस्त ...
जिनके मन की बात को जानने के लिए
स्माइलीज़ की ज़रूरत नहीं पड़ती
अपनी दोस्ती की गहराई दिखाने के लिए
लाइक
कमेंट
की ज़रूरत नहीं पड़ती
एक सेकंड के लॉग इन के फासले पर
बैठे दोस्त...
अब नहीं मिलते वे दोस्त
अब नहीं मिलते।
...


दीवाली : हिंदी रुबाइयां

- उदयभानु हंस | Uday Bhanu Hans

सब ओर ही दीपों का बसेरा देखा,
घनघोर अमावस में सवेरा देखा।
जब डाली अकस्मात नज़र नीचे को,
हर दीप तले मैंने अँधेरा देखा।।
...


दिवाली के दिन | हास्य कविता

- गोपालप्रसाद व्यास | Gopal Prasad Vyas

''तुम खील-बताशे ले आओ,
हटरी, गुजरी, दीवट, दीपक।
लक्ष्मी - गणेश लेते आना,
झल्लीवाले के सर पर रख।
...


अपनों की बातें

- प्रीता व्यास | न्यूज़ीलैंड

बातें उन बातों की हैं
जिनमें अनगिन घातें थीं,
बातें सब अपनों की थीं।
...


स्वतंत्रता का दीपक

- गोपाल सिंह नेपाली | Gopal Singh Nepali


...


तुम दीवाली बनकर

- गोपालदास ‘नीरज’

तुम दीवाली बनकर जग का तम दूर करो,
मैं होली बनकर बिछड़े हृदय मिलाऊँगा!
...


कवि आज सुना वह गान रे

- अटल बिहारी वाजपेयी | Atal Bihari Vajpayee

कवि आज सुना वह गान रे,
जिससे खुल जाएँ अलस पलक।
नस-नस में जीवन झंकृत हो,
हो अंग-अंग में जोश झलक।
...


खिड़की बन्द कर दो

- गोपालदास ‘नीरज’

खिड़की बन्द कर दो
अब सही जाती नहीं यह निर्दयी बरसात-खिड़की बन्द कर दो।
...


दोहे | रसखान के दोहे

- रसखान

प्रेम प्रेम सब कोउ कहत, प्रेम न जानत कोइ।
जो जन जानै प्रेम तो, मरै जगत क्यों रोइ॥

...


कबीर के कालजयी दोहे

- कबीरदास

दुख में सुमिरन सब करें, सुख में करे न कोय
जो सुख में सुमिरन करें, दुख काहे को होय
...


मधुर-मधुर मेरे दीपक जल

- महादेवी वर्मा | Mahadevi Verma

मधुर-मधुर मेरे दीपक जल!
युग-युग, प्रतिदिन, प्रतिक्षण, प्रतिपल
प्रियतम का पथ आलोकित कर।
...


दीप से दीप जले

- माखनलाल चतुर्वेदी

सुलग-सुलग री जोत दीप से दीप मिलें,
कर-कंकण बज उठे, भूमि पर प्राण फलें।
...


साथी, घर-घर आज दिवाली!

- हरिवंश राय बच्चन

साथी, घर-घर आज दिवाली!
...


आज फिर से तुम बुझा दीपक जलाओ

- हरिवंश राय बच्चन

आज फिर से तुम बुझा दीपक जलाओ
...


दीपक जलाना कब मना है

- हरिवंश राय बच्चन

स्वर्ग के दुष्प्राप्य रंगों से, रसों से जो सना था
ढह गया वह तो जुटाकर ईंट, पत्थर, कंकड़ों, को
एक अपनी शांति की कुटिया बनाना कब मना है
है अंधेरी रात पर दीपक जलाना कब मना है।
...


जल, रे दीपक, जल तू

- मैथिलीशरण गुप्त | Mathilishran Gupt

जल, रे दीपक, जल तू।
जिनके आगे अँधियारा है, उनके लिए उजल तू॥
...


राम की जल समाधि

- भारत भूषण

पश्चिम में ढलका सूर्य उठा वंशज सरयू की रेती से,
हारा-हारा, रीता-रीता, निःशब्द धरा, निःशब्द व्योम,
निःशब्द अधर पर रोम-रोम था टेर रहा सीता-सीता
...


सौदागर ईमान के

- शैल चतुर्वेदी | Shail Chaturwedi

आँख बंद कर सोये चद्दर तान के,
हम ही हैं वो सेवक हिन्दुस्तान के ।
...


यह दीप अकेला

- अज्ञेय

यह दीप अकेला स्नेह भरा
है गर्व भरा मदमाता, पर इसको भी पंक्ति को दे दो।
...


दिवाली वर्णन

- सोमनाथ

सरस दरस की दिवाली मान आजम खाँ,
राजत मनोज की निकाई निदरत हैं।
जगर मगर दिसा दीपन सो कर राखी,
तिनै पेखि दुजन पतंग पजरत हैं।
छूटत छबीली हथ-फूलन कों बृंद तामें,
ताकी दुति देखि हिये आनंद भरत हैं।
सो छबि अनंद मानों पावक प्रताप तरु,
फूल्यो ताकै चहुंघा तै फूल ये झरत हैं॥
...


लौट रहा हूँ गांव

- अमलेन्दु अस्थाना

चलो ये शहर तुम्हारे नाम करता हूँ,
यहां के लोग मेरे हुए,
सारे पेड़ तुम्हारे, पंछी सारे मेरे हुए,
तुमको तुम्हारा शहर मुबारक,
मैं अपनों के संग लौट रहा हूँ गांव
अब तुम अकेले हो, ऐश्वर्य से भरपूर अपने शहर में,
लकदक रौशनी जगमग हैं चारों ओर
और सड़कें खामोश हैं, पेड़ मौन,
तीन दिन हो गए दुलारे के चूल्हे से धुआं निकले,
वहां बस राख है,
चाय के लिए शोर मचाने वाले सब गांव में हैं,
मंदिर की घंटियां, मस्जिद का लाउडस्पीकर बेजान सा है चुप्प
गांव के मंदिर में अष्टजाम हो रहा है उधर मस्जिद में अजान,
शहर की पूरी आत्मा गांव में धड़क रही है,
इधर शहर में ऐशो-आराम के बीच तुम अकेले हो बेचैन से,
हवा गुजर रही है सांय-सांय,
चांदनी तो है पर पड़ोस की चंदा नहीं
जो लोरी गाकर सुनाती थी अपने मोहन को,
रहमान भी नहीं, जो पीछे से टोक देता था तुम्हे,
पूछता था और कैसे हो भाई,
तुम बदहवास से हो, निढाल पड़े हुए,
तुम्हारी रोशनी का दरवाजा अंधेरे की ओर खुल रहा है,
तुम जागते हो और भागते हो गांव की ओर,
लिपट जाते हो दुलारे से और रहमान से,
चंदा से कहते हो लौट आओ,
तुम्हारी आंखें खुलीं हैं,
तुम समझ गए हो आदमी का महत्व।
...


दीवाली का सामान

- भारत-दर्शन संकलन | Collections

हर इक मकां में जला फिर दिया दिवाली का
हर इक तरफ को उजाला हुआ दिवाली का
सभी के दिन में समां भा गया दिवाली का
किसी के दिल को मजा खुश लगा दिवाली का
अजब बहार का है दिन बना दिवाली का।
...


दीवाली के दीप जले

- ‘फ़िराक़’ गोरखपुरी

नई हुई फिर रस्म पुरानी दीवाली के दीप जले
शाम सुहानी रात सुहानी दीवाली के दीप जले
...


हम भी काट रहे बनवास

- रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

हम भी काट रहे बनवास
जावेंगे अयोध्या नहीं आस
...