7 जुलाई को हिंदी साहित्य को 'उसने कहा था' जैसी कालजयी कहानी देने वाले पं. श्रीचंद्रधर शर्मा 'गुलेरी' की जयंती है। गुलेरी की केवल तीन कहानियाँ ही प्रसिद्ध है जिनमें 'उसने कहा था' के अतिरिक्त 'सुखमय जीवन' व 'बुद्धू का कांटा' सम्मिलित हैं। गुलेरी के निबंध भी प्रसिद्ध हैं लेकिन गुलेरी ने कई लघु-कथाएं और कविताएं भी लिखी हैं जिससे अधिकतर पाठक अनभिज्ञ हैं। पिछले कुछ दशकों में गुलेरी का अधिकतर साहित्य प्रकाश में आ चुका है लेकिन यह कहना गलत न होगा कि अभी भी उनकी बहुत सी रचनाएं अप्राप्य हैं। यहाँ गुलेरी जी के पौत्र डॉ विद्याधर गुलेरी, गुलेरी के एक अन्य संबंधी डॉ पीयूष गुलेरी व डॉ मनोहरलाल के शोध व अथक प्रयासों से शेष अधिकांश गुलेरी-साहित्य हमारे सामने है।
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विविध
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चंद्रधर शर्मा 'गुलेरी' के बारे में क्या आप जानते हैं?
ऐसे थे चन्द्रशेखर आज़ाद
एक बार भगतसिंह ने बातचीत करते-करते मज़ाक में चन्द्रशेखर आज़ाद से कहा, "पंडित जी, हम क्रान्तिकारियों के जीवन-मरण का कोई ठिकाना नहीं, अत: आप अपने घर का पता दे दें ताकि यदि आपको कुछ हो जाए तो आपके परिवार की कुछ सहायता की जा सके।"
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प्रेमचंद ने कहा था
- बनी हुई बात को निभाना मुश्किल नहीं है, बिगड़ी हुई बात को बनाना मुश्किल है। [रंगभूमि]
- क्रिया के पश्चात् प्रतिक्रिया नैसर्गिक नियम है। [ मानसरोवर - सवासेर गेहूँ]
- रूखी रोटियाँ चाँदी के थाल में भी परोसी जायें तो वे पूरियाँ न हो जायेंगी। [सेवासदन]
- कड़वी दवा को ख़रीद कर लाने, उनका काढ़ा बनाने और उसे उठाकर पीने में बड़ा अन्तर है। [सेवासदन]
- चोर को पकड़ने के लिए विरले ही निकलते हैं, पकड़े गए चोर पर पंचलत्तिया़ जमाने के लिए सभी पहुँच जाते हैं। [रंगभूमि]
- जिनके लिए अपनी ज़िन्दगानी ख़राब कर दो, वे भी गाढ़े समय पर मुँह फेर लेते हैं। [रंगभूमि]
- मुलम्मे की जरूरत सोने को नहीं होती। [कायाकल्प]
- सूरज जलता भी है, रोशनी भी देता है। [कायाकल्प]
- सीधे का मुँह कुत्ता चाटता है। [कायाकल्प]
- उत्सव आपस में प्रीति बढ़ाने के लिए मनाए जाते है। जब प्रीति के बदले द्वेष बढ़े, तो उनका न मनाना ही अच्छा है। [कायाकल्प]
- पारस को छूकर लोहा सोना होे जाता है, पारस लोहा नहीं हो सकता। [ मानसरोवर - मंदिर]
- बिना तप के सिद्धि नहीं मिलती। [मानसरोवर - बहिष्कार]
- अपने रोने से छुट्टी ही नहीं मिलती, दूसरों के लिए कोई क्योकर रोये? [मानसरोवर -जेल]
- मर्द लज्जित करता है तो हमें क्रोध आता है। स्त्रियाँ लज्जित करती हैं तो ग्लानि उत्पन्न होती है। [मानसरोवर - जलूस]
- अगर माँस खाना अच्छा समझते हो तो खुलकर खाओ। बुरा समझते हो तो मत खाओ; लेकिन अच्छा समझना और छिपकर खाना यह मेरी समझ में नहीं आता। मैं तो इसे कायरता भी कहता हूँ और धूर्तता भी, जो वास्तव में एक है।
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चन्द्रदेव से मेरी बातें | निबंध
बंग महिला (राजेन्द्रबाला घोष) का यह निबंध 1904 में सरस्वती में प्रकाशित हुआ था। बाद में कई पत्र-पत्रिकाओं ने इसे 'कहानी' के रूप में प्रस्तुत किया है लेकिन यह एक रोचक निबंध है।
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वामनावतार रक्षाबंधन पौराणिक कथा
एक सौ 100 यज्ञ पूर्ण कर लेने पर दानवेन्द्र राजा बलि के मन में स्वर्ग का प्राप्ति की इच्छा बलवती हो गई तो का सिंहासन डोलने लगा। इन्द्र आदि देवताओं ने भगवान विष्णु से रक्षा की प्रार्थना की। भगवान ने वामन अवतार लेकर ब्राह्मण का वेष धारण कर लिया और राजा बलि से भिक्षा मांगने पहुँच गए। उन्होंने बलि से तीन पग भूमि भिक्षा में मांग ली।
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प्रेमचंद की लघु-कथा रचनाएं
कई वर्ष पूर्व डॉ. कमल किशोर गोयनका ने एक बातचीत के दौरान मुझसे कहा था कि प्रेमचंद का अप्राप्य साहित्य खोजते हुए उन्हें उनकी 25-30 लघुकथाएं भी प्राप्त हुई हैं और वे शीघ्र ही उन्हें पुस्तकाकार प्रकाशित करेंगे । हम, लघुकथा से जुड़े, लोगों के लिए यह बड़ी उत्साहवर्धक सूचना थी । इस बहाने कथा की लघ्वाकारीय प्रस्तुति के बारे में प्रेमचंद की तकनीक को जानने समझने में अवश्य ही मदद मिलती । हालांकि प्रेमचंद को उपन्यास-सम्राट माना जाता है, परन्तु वे कहानी-सम्राट नहीं थे-यह नहीं कहा जा सकता ।
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प्रेमचंद : घर में
प्रेमचन्द की पत्नी शिवरानी द्वारा लिखी, 'प्रेमचंद : घर में' पुस्तक में शिवरानी ने प्रेमचन्द के बचपन का उल्लेख किया है। यहाँ उसी अंश को प्रकाशित किया जा रहा है।
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मुंशी प्रेमचंद का घटनाक्रम
मूल नाम : धनपत राय
घर का नाम: नवाब राय
जन्म: 31 जुलाई 1880,
जन्म स्थल: लमही, वाराणसी (उत्तर प्रदेश)
पिता का नाम: मुंशी अजायब लाल
माता का नाम: श्रीमती आनंदी देवी
बहन: सुग्गी देवी (दो बहने और भी हुईं लेकिन जीवित न बची)
व्यवसाय: लेखन, संपादन
पत्नी: शिवरानी देवी प्रेमचंद
बच्चे:
बेटे: श्रीपतराय और अमृतराय
बेटी: कमला
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इन्द्र और महारानी शची | भविष्य पुराण
भविष्य पुराण की एक कथा के अनुसार एक बार देवता और दैत्यों (दानवों ) में बारह वर्षों तक युद्ध हुआ परन्तु देवता विजयी नहीं हुए। इंद्र हार के भय से दु:खी होकर देवगुरु बृहस्पति के पास विमर्श हेतु गए। गुरु बृहस्पति के सुझाव पर इंद्र की पत्नी महारानी शची ने श्रावण शुक्ल पूर्णिमा के दिन विधि-विधान से व्रत करके रक्षासूत्र तैयार किए और स्वास्तिवाचन के साथ ब्राह्मण की उपस्थिति में इंद्राणी ने वह सूत्र इंद्र की दाहिनी कलाई में बांधा जिसके फलस्वरुप इन्द्र सहित समस्त देवताओं की दानवों पर विजय हुई।
रक्षा विधान के समय निम्न लिखित मंत्रोच्चार किया गया था जिसका आज भी विधिवत पालन किया जाता है:
"येन बद्धोबली राजा दानवेन्द्रो महाबल: ।
दानवेन्द्रो मा चल मा चल ।।"
इस मंत्र का भावार्थ है कि दानवों के महाबली राजा बलि जिससे बांधे गए थे, उसी से तुम्हें बांधता हूँ। हे रक्षे! (रक्षासूत्र) तुम चलायमान न हो, चलायमान न हो।
यह रक्षा विधान श्रवण मास की पूर्णिमा को प्रातः काल संपन्न किया गया यथा रक्षा-बंधन अस्तित्व में आया और श्रवण मास की पूर्णिमा को मनाया जाने लगा।
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माँ | चंद्रशेखर की कविता
माँ हम विदा हो जाते हैं, हम विजय केतु फहराने आज
तेरी बलिवेदी पर चढ़कर माँ निज शीश कटाने आज।
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महाभारत संबंधी कथा
महाभारत काल में द्रौपदी द्वारा श्री कृष्ण को तथा कुन्ती द्वारा अभिमन्यु को राखी बांधने के वृत्तांत मिलते हैं।
महाभारत में ही रक्षाबंधन से संबंधित कृष्ण और द्रौपदी का एक और वृत्तांत मिलता है। जब कृष्ण ने सुदर्शन चक्र से शिशुपाल का वध किया तब उनकी तर्जनी में चोट आ गई। द्रौपदी ने उस समय अपनी साड़ी फाड़कर उनकी उँगली पर पट्टी बाँध दी। यह श्रावण मास की पूर्णिमा का दिन था।
श्रीकृष्ण ने बाद में द्रौपदी के चीर-हरण के समय उनकी लाज बचाकर भाई का धर्म निभाया था।
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चंद्रशेखर आज़ाद का राखी प्रसंग
बात उन दिनों की है जब क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद स्वतंत्रता के लिए संघर्षरत थे और फिरंगी उनके पीछे लगे थे।
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रक्षा बंधन का ऐतिहासिक प्रसंग
राजपूत जब लड़ाई पर जाते थे तब महिलाएं उनको माथे पर कुमकुम तिलक लगाने के साथ-साथ हाथ में रेशमी धागा भी बाँधती थी। इस विश्वास के साथ कि यह धागा उन्हें विजयश्री के साथ वापस ले आएगा।
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और नाम पड़ गया आज़ाद
चन्द्रशेखर बचपन से ही महात्मा गांधी से प्रभावित थे। वे बचपन से स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लेने लगे थे - गांधीजी के 'असहयोग आंदोलन' के दौरान उन्होंने विदेशी सामानों का बहिष्कार किया। इसी असहयोग आंदोलन के दौरान उन्हें पहली बार पंद्रह वर्ष की आयु आंदोलनकारी के रूप में पकड़ लिया गया और जब मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत किया गया। उसका नाम पूछा गया तो उन्होंने कहा "आजाद"।
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रक्षा बंधन - चंद्रशेखर आज़ाद का प्रसंग
बात उन दिनों की है जब क्रांतिकारी चंद्रशेखर आज़ाद स्वतंत्रता के लिए संघर्षरत थे और फ़िरंगी उनके पीछे लगे थे।
फिरंगियों से बचने के लिए शरण लेने हेतु आज़ाद एक तूफानी रात को एक घर में जा पहुंचे जहां एक विधवा अपनी बेटी के साथ रहती थी। हट्टे-कट्टे आज़ाद को डाकू समझ कर पहले तो वृद्धा ने शरण देने से इनकार कर दिया लेकिन जब आज़ाद ने अपना परिचय दिया तो उसने उन्हें ससम्मान अपने घर में शरण दे दी। बातचीत से आज़ाद को आभास हुआ कि गरीबी के कारण विधवा की बेटी की शादी में कठिनाई आ रही है। आज़ाद ने महिला को कहा, 'मेरे सिर पर पाँच हजार रुपए का इनाम है, आप फिरंगियों को मेरी सूचना देकर मेरी गिरफ़्तारी पर पाँच हजार रुपए का इनाम पा सकती हैं जिससे आप अपनी बेटी का विवाह सम्पन्न करवा सकती हैं।
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रिस्टवॉच | संस्मरण
एक बार बनारसीदास चतुर्वेदी ने प्रेमचन्द को मज़ाक में पत्र लिखकर शिवरानी (प्रेमचंद की पत्नी) को कलाई घड़ी दिलने की सिफ़ारिश की। चतुर्वेदी ने पत्र में लिखा -
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मैं कहानी कैसे लिखता हूँ | आलेख
मेरे किस्से प्राय: किसी-न-किसी प्रेरणा अथवा अनुभव पर आधारित होते हैं, उसमें मैं नाटक का रंग भरने की कोशिश करता हूँ मगर घटना-मात्र का वर्णन करने के लिए मैं कहानियाँ नहीं लिखता। मैं उसमें किसी दार्शनिक और भावनात्मक सत्य को प्रकट करना चाहता हूँ। जब तक इस प्रकार का कोई आधार नहीं मिलता, मेरी कलम ही नहीं उठती। आधार मिल जाने पर मैं पात्रों का निर्माण करता हूँ। कई बार इतिहास के अध्ययन से भी प्लाट मिल जाते हैं लेकिन कोई घटना कहानी नहीं होती, जब तक कि वह किसी मनोवैज्ञानिक सत्य को व्यक्त न करे।
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रक्षा बंधन साहित्यिक संदर्भ
अनेक साहित्यिक ग्रंथों में रक्षाबंधन के पर्व का विस्तृत वर्णन मिलता है। हरिकृष्ण प्रेमी के ऐतिहासिक नाटक, 'रक्षाबंधन' का 98वाँ संस्करण प्रकाशित हो चुका है। मराठी में शिंदे साम्राज्य के विषय में लिखते हुए रामराव सुभानराव बर्गे ने भी एक नाटक लिखा है जिसका शीर्षक है 'राखी उर्फ रक्षाबंधन'।
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प्रेमचंद की विचार यात्रा | आलेख
प्रेमचंद ने सन 1936 में अपने लेख ‘महाजनी सभ्यता' में लिखा है कि ‘मनुष्य समाज दो भागों में बँट गया है । बड़ा हिस्सा तो मरने और खपने वालों का है, और बहुत ही छोटा हिस्सा उन लोगों का था जो अपनी शक्ति और प्रभाव से बड़े समुदाय को बस में किए हुए हैं । इन्हें इस बड़े भाग के साथ किसी तरह की हमदर्दी नहीं, जरा भी रू -रियायत नहीं। उसका अस्तित्व केवल इसलिए है कि अपने मालिकों के लिए पसीना बहाए, खून गिराए और चुपचाप इस दुनिया से विदा हो जाए।' इस उद्धरण से यह स्पष्ट है कि प्रेमचंद की मूल सामाजिक चिंताएँ क्या थीं ।
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फिल्मों में रक्षा-बंधन
'राखी' और 'रक्षा-बंधन' पर अनेक फ़िल्में बनीं और अत्यधिक लोकप्रिय हुई, इनमें से कुछ के गीत तो मानों अमर हो गए। इनकी लोकप्रियता आज दशकों पश्चात् भी बनी हुई है।
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प्रेमचंद की सर्वोत्तम 15 रचनाएं
मुंशी प्रेमचंद को उनके समकालीन पत्रकार बनारसीदास चतुर्वेदी ने 1930 में उनकी प्रिय रचनाओं के बारे में प्रश्न किया, "आपकी सर्वोत्तम पन्द्रह गल्पें कौनसी हैं?"
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क्या आप जानते हैं?
यहाँ प्रेमचंद के बारे में कुछ जानकारी प्रकाशित कर रहे हैं। हमें आशा है कि पाठकों को भी यह जानकारी लाभप्रद होगी।
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चन्द्रशेखर आज़ाद की पसंदीदा शायरी
पं० चंद्रशेखर आज़ाद को गाना गाने या सुनने का शौक नहीं था लेकिन फिर भी वे कभी-कभी कुछ शेर कहा करते थे। उनके साथियों ने निम्न शेर अज़ाद के मुंह से कई बार सुने थे:
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प्रेमचन्दजी के साथ दो दिन | प्रेमचंद से साक्षात्कार
"आप आ रहे हैं, बड़ी खुशी हुई। अवश्य आइये। आपने न-जाने कितनी बातें करनी हैं।
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सर एडमंड हिलेरी से बातचीत
यह साक्षात्कार आउटलुक साप्ताहिक के लिए 2007 में लिया गया था।
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स्वर्ग में विचार-सभा का अधिवेशन
स्वामी दयानन्द सरस्वती और बाबू केशवचन्द्रसेन के स्वर्ग में जाने से वहां एक बहुत बड़ा आंदोलन हो गया। स्वर्गवासी लोगों में बहुतेरे तो इनसे घृणा करके धिक्कार करने लगे और बहुतेरे इनको अच्छा कहने लगे। स्वर्ग में भी 'कंसरवेटिव' और 'लिबरल' दो दल हैं। जो पुराने जमाने के ऋषि-मुनि यज्ञ कर-करके या तपस्या करके अपने-अपने शरीर को सुखा-सुखाकर और पच-पचकर मरके स्वर्ग गए हैं उनकी आत्मा का दल 'कंसरवेटिव' है, और जो अपनी आत्मा ही की उन्नति से और किसी अन्य सार्वजनिक उच्च भाव संपादन करने से या परमेश्वर की भक्ति से स्वर्ग में गए हैं वे 'लिबरल' दलभक्त हैं। वैष्णव दोनों दल के क्या दोनों से खारिज थे, क्योंकि इनके स्थापकगण तो लिबरल दल के थे किंतु ये लोग 'रेडिकल्स' क्या महा-महा रेडिकल्स हो गए हैं। बिचारे बूढ़े व्यासदेव को दोनों दल के लोग पकड़-पकड़ कर ले जाते और अपनी-अपनी सभा का 'चेयरमैन' बनाते थे, और व्यास जी भी अपने प्राचीन अव्यवस्थित स्वभाव और शील के कारण जिसकी सभा में जाते थे वैसी ही वक्तृता कर देते थे। कंसरवेटिवों का दल प्रबल था; इसका मुख्य कारण यह था कि स्वर्ग के जमींदार इन्द्र, गणेश प्रभृति भी उनके साथ योग देते थे, क्योंकि बंगाल के जमींदारों की भांति उदार लोगों की बढ़ती से उन बेचारों को विविध सर्वोपरि बलि और मान न मिलने का डर था।
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भारत का स्वाधीनता यज्ञ और हिन्दी काव्य
"हिमालय के ऑंगन में उसे, प्रथम किरणों का दे उपहार।"
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चंद्रशेखर आज़ाद का जीवन परिचय
चंद्रशेखर आज़ाद (Chandrasekhar Azad) का जन्म 23 जुलाई, 1906 को एक आदिवासी ग्राम भाबरा में हुआ था। काकोरी ट्रेन डकैती और साण्डर्स की हत्या में सम्मिलित निर्भीक महान देशभक्त व क्रांतिकारी चंद्रशेखर आज़ाद का नाम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में अहम् स्थान रखता है।
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रक्षा बंधन का इतिहास व पौराणिक कथाएं
रक्षा बंधन का त्यौहार श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। उत्तरी भारत में यह त्यौहार भाई-बहन के अटूट प्रेम को समर्पित है और इस त्यौहार का प्रचलन सदियों पुराना बताया गया है। इस दिन बहने अपने भाई की कलाई पर राखी बाँधती हैं और भाई अपनी बहनों की रक्षा का संकल्प लेते हुए अपना स्नेहाभाव दर्शाते हैं।
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राखी
रक्षा बंधन का त्यौहार श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। उत्तरी भारत में यह त्यौहार भाई-बहन के अटूट प्रेम को समर्पित है और इस त्यौहार का प्रचलन सदियों पुराना बताया गया है। इस दिन बहने अपने भाई की कलाई पर राखी बाँधती हैं और भाई अपनी बहनों की रक्षा का संकल्प लेते हुए अपना स्नेहाभाव दर्शाते हैं।
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