काव्य

जब ह्रदय अहं की भावना का परित्याग करके विशुद्ध अनुभूति मात्र रह जाता है, तब वह मुक्त हृदय हो जाता है। हृदय की इस मुक्ति की साधना के लिए मनुष्य की वाणी जो शब्द विधान करती आई है उसे काव्य कहते हैं। कविता मनुष्य को स्वार्थ सम्बन्धों के संकुचित घेरे से ऊपर उठाती है और शेष सृष्टि से रागात्मक संबंध जोड़ने में सहायक होती है। काव्य की अनेक परिभाषाएं दी गई हैं। ये परिभाषाएं आधुनिक हिंदी काव्य के लिए भी सही सिद्ध होती हैं। काव्य सिद्ध चित्त को अलौकिक आनंदानुभूति कराता है तो हृदय के तार झंकृत हो उठते हैं। काव्य में सत्यं शिवं सुंदरम् की भावना भी निहित होती है। जिस काव्य में यह सब कुछ पाया जाता है वह उत्तम काव्य माना जाता है।

इस श्रेणी के अंतर्गत

जन्म-दिन

- वंदना भारद्वाज

वो हर बरस आता है
और... 
मेरी उम्र का दर खटखटाता है। 
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हिन्दी के सुमनों के प्रति पत्र

- सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला'

मैं जीर्ण-साज बहु छिद्र आज,
तुम सुदल सुरंग सुवास सुमन,
मैं हूँ केवल पतदल-आसन,
तुम सहज बिराजे महाराज।
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इच्छाएं

- शिवनारायण जौहरी विमल

दुबले पतंगी कागज़ का
उड़ता हुआ टुकड़ा नहीं
प्रसूती मन की
बलवती संतान हैं।
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देश

- शेरजंग गर्ग

ग्राम, नगर या कुछ लोगों का काम नहीं होता है देश
संसद, सड़कों, आयोगों का नाम नहीं होता है देश
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रामनरेश त्रिपाठी के नीति के दोहे

- रामनरेश त्रिपाठी

विद्या, साहस, धैर्य, बल, पटुता और चरित्र।
बुद्धिमान के ये छवौ, है स्वाभाविक मित्र ।।
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हिंदी जन की बोली है

- गिरिजाकुमार माथुर | Girija Kumar Mathur

एक डोर में सबको जो है बाँधती
वह हिंदी है,
हर भाषा को सगी बहन जो मानती
वह हिंदी है।
भरी-पूरी हों सभी बोलियां
यही कामना हिंदी है,
गहरी हो पहचान आपसी
यही साधना हिंदी है,
सौत विदेशी रहे न रानी
यही भावना हिंदी है।
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हिन्दी भाषा

- अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध'

छ्प्पै
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रंग दे बसंती चोला गीत का इतिहास

- रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

'रंग दे बसंती चोला' अत्यंत लोकप्रिय देश-भक्ति गीत है। यह गीत किसने रचा? इसके बारे में बहुत से लोगों की जिज्ञासा है और वे समय-समय पर यह प्रश्न पूछते रहते हैं।
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सोचेगी कभी भाषा

- दिविक रमेश

जिसे रौंदा है जब चाहा तब
जिसका किया है दुरूपयोग, सबसे ज़्यादा।
जब चाहा तब
निकाल फेंका जिसे बाहर।
कितना तो जुतियाया है जिसे
प्रकोप में, प्रलोभ में
वह तुम्हीं हो न भाषा।
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तुमने हाँ जिस्म तो... | ग़ज़ल

- रामावतार त्यागी | Ramavtar Tyagi

तुमने हाँ जिस्म तो आपस में बंटे देखे हैं
क्या दरख्तों के कहीं हाथ कटे देखे हैं
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तुम' से 'आप'

- अशोक चक्रधर

तुम भी जल थे
हम भी जल थे
इतने घुले-मिले थे कि
एक-दूसरे से जलते न थे।
न तुम खल थे
न हम खल थे
इतने खुले-खिले थे कि
एक-दूसरे को खलते न थे।
अचानक तुम हमसे जलने लगे
तो हम तुम्हें खलने लगे।
तुम जल से भाप हो गए,
और 'तुम' से 'आप' हो गए।
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हिन्दी-भक्त

- काका हाथरसी | Kaka Hathrasi

सुनो एक कविगोष्ठी का, अद्भुत सम्वाद ।
कलाकार द्वय भिडे गए, चलने लगा विवाद ।।
चलने लगी विवाद, एक थे कविवर 'घायल' ।
दूजे श्री 'तलवार', नई कविता के कायल ।।
कह 'काका' कवि, पर्त काव्य के खोल रहे थे।
कविता और अकविता को, वे तोल रहे थे ।।
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हिंदी की दुर्दशा | हिंदी की दुर्दशा | कुंडलियाँ

- काका हाथरसी | Kaka Hathrasi

बटुकदत्त से कह रहे, लटुकदत्त आचार्य।
सुना? रूस में हो गई है हिंदी अनिवार्य।।
है हिंदी अनिवार्य, राष्ट्रभाषा के चाचा-
बनने वालों के मुँह पर क्या पड़ा तमाचा।।
कहँ ‘काका', जो ऐश कर रहे रजधानी में।
नहीं डूब सकते क्या चुल्लू भर पानी में।।
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कौरव कौन, कौन पांडव

- अटल बिहारी वाजपेयी | Atal Bihari Vajpayee

कौरव कौन
कौन पांडव,
टेढ़ा सवाल है।
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झुक नहीं सकते | कविता

- अटल बिहारी वाजपेयी | Atal Bihari Vajpayee

टूट सकते हैं मगर हम झुक नहीं सकते।
सत्य का संघर्ष सत्ता से,
न्याय लड़ता निरंकुशता से,
अंधेरे ने दी चुनौती है,
किरण अंतिम अस्त होती है।
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तुम्हारे पाँव के नीचे----

- दुष्यंत कुमार | Dushyant Kumar

तुम्हारे पाँव के नीचे कोई ज़मीन नहीं
कमाल ये है कि फिर भी तुम्हें यक़ीन नहीं
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लेन-देन

- शैल चतुर्वेदी | Shail Chaturwedi

एक महानुभाव हमारे घर आए
उनका हाल पूछा
तो आँसू भर लाए,
बोले--
"रिश्वत लेते पकड़े गए हैं
बहुत मनाया, नहीं माने
भ्रष्टाचार समिति वाले
अकड़ गए हैं।
सच कहता हूँ
मैनें नहीं माँगी थी
देने वाला ख़ुद दे रहा था
और पकड़ने वाले समझे
मैं ले रहा था।
अब आप ही बताइए
घर आई लक्ष्मी को
कौन ठुकराता है
क्या लेन-देन भी
रिश्वत कहलाता है?
मैनें भी उसका
एक काम किया था
एक सरकारी ठेका
उसके नाम किया था
उसका और हमारा लेन-देन
बरसों से है
और ये भ्रष्टाचार समिति तो
परसों से है।"
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मातृभाषा प्रेम पर भारतेंदु के दोहे

- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र | Bharatendu Harishchandra

निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
बिनु निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल॥

अँग्रेजी पढ़ि के जदपि, सब गुन होत प्रवीन।
पै निज भाषा-ज्ञान बिन, रहत हीन के हीन॥
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संदेश

- रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

मुझे याद है वह संदेश -
'बुरा न सुनो, बुरा न कहो, बुरा न देखो!'
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कुछ उलटी सीधी बातें

- अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध'

जला सब तेल दीया बुझ गया है अब जलेगा क्या ।
बना जब पेड़ उकठा काठ तब फूले फलेगा क्या ॥1॥
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पीपल के पत्तों पर | गीत

- नागार्जुन | Nagarjuna

पीपल के पत्तों पर फिसल रही चाँदनी
नालियों के भीगे हुए पेट पर, पास ही
जम रही, घुल रही, पिघल रही चाँदनी
पिछवाड़े, बोतल के टुकड़ों पर---
चमक रही, दमक रही, मचल रही चाँदनी
दूर उधर, बुर्ज़ी पर उछल रही चाँदनी।
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सदुपदेश | दोहे

- गयाप्रसाद शुक्ल सनेही

बात सँभारे बोलिए, समुझि सुठाँव-कुठाँव ।
वातै हाथी पाइए, वातै हाथा-पाँव ॥१॥
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हिन्दी

- गयाप्रसाद शुक्ल सनेही

अच्छी हिन्दी ! प्यारी हिन्दी !
हम तुझ पर बलिहारी ! हिन्दी !!

सुन्दर स्वच्छ सँवारी हिन्दी ।
सरल सुबोध सुधारी हिन्दी ।
हिन्दी की हितकारी हिन्दी ।
जीवन-ज्योति हमारी हिन्दी ।
अच्छी हिन्दी ! प्यारी हिन्दी !
हम तुझ पर बलिहारी हिन्दी !!
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आज जो ऊँचाई पर है...

- कुँअर बेचैन

आज जो ऊँचाई पर है क्या पता कल गिर पड़े
इतना कह के ऊँची शाख़ों से कई फल गिर पड़े
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हिंदी पर दोहे

- रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

बाहर से तो पीटते, सब हिंदी का ढोल।
अंतस में रखते नहीं, इसका कोई मोल ।।
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हिंदी-प्रेम

- काका हाथरसी | Kaka Hathrasi

हिंदी-हिंदू-हिंद का, जिनकी रग में रक्त
सत्ता पाकर हो गए, अँगरेज़ी के भक्त
अँगरेज़ी के भक्त, कहाँ तक करें बड़ाई
मुँह पर हिंदी-प्रेम, ह्रदय में अँगरेज़ी छाई
शुभ चिंतक श्रीमान, राष्ट्रभाषा के सच्चे
‘कानवेण्ट' में दाख़िल करा दिए हैं बच्चे
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अभिषेक कुमार सिंह की दो ग़ज़लें

- अभिषेक कुमार सिंह

दो ग़ज़लें
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सुशांत सुप्रिय की तीन कविताएं

- सुशांत सुप्रिय

पड़ोसी
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सोने के हिरन

- कन्हैया लाल वाजपेयी

आधा जीवन जब बीत गया
बनवासी सा गाते-रोते
तब पता चला इस दुनियां में
सोने के हिरन नहीं होते।
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प्रेम रस

- अंतरिक्ष सिंह

चाँदनी रात में
तुम्हारे साथ हूँ।
चाँदनी में घुल चुका,
मनोरम अहसास हूँ।
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हिंदुस्तान की शान है हिन्दी

- विकास कुमार

हिंदुस्तान की शान है हिन्दी, जन-जन की पहचान है हिन्दी।
यूं तो प्यारी हमको सारी भाषाएँ, पर हमारी जान है हिन्दी॥
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कविता

- शिव प्रताप पाल

कविता किसी के ह्रदय का उदगार है
किसी के लिए ये काला आजार है
किसी के लिए यह केवल व्यापार है
किसी के लिए ये मियादी बुखार है
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नारी

- अर्चना

तू ही धरा, तू सर्वथा ।
तू बेटी है, तू ही आस्था।
तू नारी है, मन की व्यथा।
तू परंपरा, तू ही प्रथा।
तुझसे ही तेरे तपस से ही रहता सदा यहां अमन।
तेरे ही प्रेमाश्रुओं की शक्ति करती वसु को चमन।
तेरे सत्व की कथाओं को, करते यहाँ सब नमन।
फिर क्यों यहाँ, रहने देती है सदा मैला तेरा दामन।
तू माँ है, तू देवी, तू ही जगत अवतारी है।
मगर फिर भी क्यों तू वसुधा की दुखियारी है।
तेरे अमृत की बूंद से आते यहां जीवन वरदान हैं।
तेरे अश्रु की बूंद से ही यहाँ सागर में उफान हैं।
तू सीमा है चैतन्य की, जीवन की सहनशक्ति है ।
ना लगे तो राजगद्दी है और लग जाए तो भक्ति है।
तू वंदना, तू साधना, तू शास्त्रों का सार है।
तू चेतना, तू सभ्यता, तू वेदों का आधार है।
तू लहर है सागर की, तू उड़ती मीठी पवन है।
तू कोष है खुशियों का, इच्छाओं का शमन है।
तुझसे ही ये ब्रह्मांड है और तुझसे ही सृष्टि है।
तुझसे ही जीवन और तुझसे ही यहाँ वृष्टि है।
उठ खड़ी हो पूर्णशक्ति से।
फिर रोशन कर दे ये जहां।
जा प्राप्त कर ले अपने अधूरे स्वप्न को।
आ सुकाल में बदल दे इस अकाल को।
तू ही तो भंडार समस्त शक्तियों का।
प्राणी देह में भी संचार है तेरे लहू का।
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मेरे देश की माटी सोना | गीत

- आनन्द विश्वास | Anand Vishvas

मेरे देश की माटी सोना, सोने का कोई काम ना,
जागो भैया भारतवासी, मेरी है ये कामना।
दिन तो दिन है रातों को भी थोड़ा-थोड़ा जागना,
माता के आँचल पर भैया, आने पावे आँच ना।
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