प्रीता व्यास का जन्म भारत में हुआ लेकिन कई दशकों से वे न्यूजीलैंड निवासी हैं। आपने 175 पुस्तकें लिखी है जिनमें अधिकतर अँग्रेज़ी बाल साहित्य है। अँग्रेज़ी बाल साहित्य के अतिरिक्त आपने हिंदी में भी 'पत्रकारिता परीक्षा विश्लेषण', 'इंडोनेशिया की लोक कथाएं', 'दादी कहो कहानी', 'बालसागर क्या बनेगा', 'जंगल टाइम्स', 'कौन चलेगा चांद पर रहने', 'लफ्फाजी नहीं होती है कविता' इत्यादि हिंदी पुस्तकें लिखी है। आपकी नई पुस्तक 'पहाड़ों का झगड़ा' माओरी लोक-कथा संकलन है।
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विविध
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प्रीता व्यास से बातचीत
मदारीपुर जंक्शन के उपन्यासकार बालेंदु द्विवेदी से बातचीत
बालेंदु द्विवेदी को उनके पहले उपन्यास ‘मदारीपुर जंक्शन' ने हिंदी उपन्यासकारों की श्रेणी में स्थापित कर दिया है। बालेन्दु द्विवेदी का जन्म उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जनपद के ब्रह्मपुर गाँव में हुआ। प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा पैतृक गाँव के मारुति नंदन प्राथमिक विद्यालय तथा लल्लन द्विवेदी इंटर कालेज में हुई। आपने इंटरमीडिएट की पढ़ाई (1989-1991) चौरी चौरा के ऐतिहासिक स्थल स्थित 'गंगा प्रसाद स्मारक इंटर कालेज' से की और आगे की पढ़ाई इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातक (1991-1994) और परास्नातक (1994-1996) की।
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माँ का संवाद – लोरी
माँ बनना स्वयं में एक आनन्ददायी व संपूर्ण अनुभव है। यह प्रक्रिया तभी से आरंभ हो जाती है जब एक स्त्री गर्भ धारण करती है। गर्भ धारण करने से लेकर शिशु के जन्म तक स्त्री शिशु से अनेक प्रकार से संवाद करती है फिर चाहे वह संवाद उसकी भावनाओं का हो या पेट पर हाथ फेरकर सहलाने का हो। शिशु समस्त भावों को समझता है तभी तो गर्भवती स्त्रियों को अच्छा संगीत सुनने, अच्छी पुस्तकें पढ़ने अथवा अच्छा सोचने के लिए कहा जाता है।
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यात्रा अमरनाथ की
आपने अब तक अपने जीवन में अनगिनत यात्राएं की होगी लेकिन किन्हीं कारणवश आप अमरनाथ की यात्रा नहीं कर पाएं है तो आपको एक बार बर्फ़ानी बाबा के दर्शनों के लिए अवश्य जाना चाहिए। दम निकाल देने वाली खड़ी चढ़ाइयां, आसमान से बातें करती, बर्फ़ की चादर में लिपटी-ढंकी पर्वत श्रेणियां, शोर मचाते झरने, बर्फ़ की ठंडी आग को अपने में दबाये उद्दंड हवाएं जो आपके जिस्म को ठिठुरा देने का माद्दा रखती हैं। कभी बारिश आपका रास्ता रोककर खड़ी हो जाती है तो कहीं नियति नटी अपने पूरे यौवन के साथ आपको सम्मोहन में उलझा कर आपका रास्ता भ्रमित कर देती है। वहीं असंख्य शिव-भक्त बाबा अमरनाथ के जयघोष के साथ, पूरे जोश एवं उत्साह के साथ आगे बढ़ते दिखाई देते हैं और आपको अपने साथ भक्ति की चाशनी में सराबोर करते हुए आगे, निरन्तर आगे बढ़ते रहने का मंत्र आपके कानों में फूँक देते हैं। कुछ थोड़े से लोग जो शारीरिक रुप से अपने आपको इस यात्रा के लिए अक्षम पाते हैं, घोड़े की पीठ पर सवार होकर बाबा का जयघोष करते हुए खुली प्रकृति का आनन्द उठाते हुए, अपनी यात्राएं संपन्न करते हैं। सारी कठिनाइयों के बावजूद न तो वे हिम्मत हारते हैं और न ही उनका मनोबल डिगता है। प्रकृति निरन्तर आगे बढ़ते रहने के लिए आपको प्रेरित करती है। रास्ते में जगह-जगह भंडारे वाले आपका रास्ता, बड़ी मनुहार के साथ रोकते हुए, हाथ जोड़कर विनती करते हैं कि बाबा की प्रसादी खाकर ही जाइए। भंडारे में आपको आपके मन पसंद व्यंजन खाने को मिलेंगे। कहीं कढ़ाहे में केसर डला दूध औट रहा है, तो कहीं इमरती सिक रही होती है। बरफ़ी, पेड़ा, बूंदी, कचौडियां और न जाने कितने ही व्यंजन आपको खाने को मिलेंगे, वो भी बिना कोई कीमत चुकाए।
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1857 के आन्दोलन में उत्तर प्रदेश का योगदान
देश के स्वतंत्रता संग्राम के आंदोलन के समय उत्तर प्रदेश को संयुक्त प्रांत कहा जाता था। देश के स्वतंत्रता आंदोलन में इस प्रांत की भूमिका काफी अहम मानी जाती है। भौगोलिक स्थिति के अनुसार उत्तर प्रदेश देश का एक मुख्य राज्य है और इसकी देश के स्वतंत्रता संग्राम में प्रमुख भूमिका रही है। 1857 का विद्रोह हो या गांधीजी के नेतृत्व में चला स्वतंत्रता संग्राम, इन आंदोलनों को प्रदेश में भरपूर समर्थन मिला।
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राखी
रक्षा बंधन का त्यौहार श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। उत्तरी भारत में यह त्यौहार भाई-बहन के अटूट प्रेम को समर्पित है और इस त्यौहार का प्रचलन सदियों पुराना बताया गया है। इस दिन बहने अपने भाई की कलाई पर राखी बाँधती हैं और भाई अपनी बहनों की रक्षा का संकल्प लेते हुए अपना स्नेहाभाव दर्शाते हैं।
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