वर्मा जी ने फेसबुक पर स्टेटस लिखा -
'Enjoying in Dubai with family!'
साथ में...पूरे परिवार का फोटो अपलोड किया था!
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हास्य काव्य
इस श्रेणी के अंतर्गत
डिजिटल इंडिया | हास्य-व्यंग
सारे जहाँ से अच्छा है इंडिया हमारा
सारे जहाँ से अच्छा है इंडिया हमारा
हम भेड़-बकरी इसके यह ग्वारिया हमारा
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बहरे या गहरे
अचानक तुम्हारे पीछे
कोई कुत्ता भोंके,
तो क्या तुम रह सकते हो
बिना चोंके?
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जय जय जय अंग्रेजी रानी!
जय जय जय अंग्रेजी रानी!
‘इंडिया दैट इज भारत' की भाषाएं भरतीं पानी ।
सेवारत हैं पिल्ले, मेनन, अयंगार, मिगलानी
तमिलनाडु से नागालैंड तक ने सेवा की ठानी।
तेरे भक्तों को हिंदी में मिलती नहीं रवानी
शब्दों की भिक्षा ले ले उर्दू ने कीर्ति बखानी।
एंग्लो-इंडियन भाई कहते, तू भारत की वाणी
अड़गम- बड़गम-कड़गम कहते, तू महान् कल्याणी।
अंकल,आंटी, मम्मी, डैडी तक है व्यापक कहानी
पब्लिक स्कूलों से संसद तक तूने महिमा तानी।
अंग्रेजी में गाली देने तक में ठसक बढ़ानी
फिर भाषण में क्यों न लगे सब भक्तों को सिम्फानी ।
मैनर से बैनर, पिओन से लीडर तक लासानी
सभी दंडवत करते तुझको, तू समृद्धि-सुख-दानी।
जय जय जय अंग्रेजी रानी!
जय जय जय अंग्रेजी रानी!!
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पेट महिमा
साधु पेट बड़ा जाना।
यह तो पागल किये जमाना।।
मात पिता दादा दादी घरवाली नानी नाना।
सारे बने पेट की खातिर बाकी फकत बहाना।।
पेट हमारा हुंडी पुर्जो पेट हि माल खजाना।
जबसे जन्मे सिवा पेट के और न कुछ पहचाना।।
लड्डू पेड़ा पूरी बरफ़ी रोटी साबूदाना।
सब जाता है इसी पेट में हलवा दाल मखाना ।।
बाहर धर्म्म भवन शिव मंदिर क्या ढूंढे दीवाना।
ढूंढो इसी पेट में प्यारो तब कुछ मिले ठिकाना।।
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हास्य ही सहारा है
जिंदगी हो गई है तंगदस्त
और तनावों ने उसे
कर दिया है अस्तव्यस्त,
मस्ती की फ़हरिस्त
निरस्त हो गई है
और हमारी हस्ती
अपनों के धोखे में
पस्त हो गई है।
अब कोई ऐसा सिद्धहस्त
सलाहकार भी नहीं
जो हमारी त्रस्त जीवनशैली को
आश्वस्त कर सके
या हमारे सपनों का रखवाला
सरपरस्त बन सके।
ऐसे में मात्र एक ही सहारा है
हमारे जीवन की शुष्क धरा पर
केवल हास्य ही
उभरता हुआ चश्मा है, धारा है।
यही हमारे दुखों को देगा शिकस्त
और करेगा हमें विश्वस्त
कि आओ, हास्य-कविताएँ पढ़ो
और हो जाओ मदमस्त।
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कानून मिला हमको
दिल्ली, बंबई, काशी, देहरादून मिला हमको,
बस्ती-बस्ती इंसानों का खून मिला हमको।
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विचित्र विवशता!
‘उधर प्रशासन को
चुस्त बनाने के
अथक प्रयास हो रहे हैं
और इधर आप
टेबल पर सिर रखकर
आराम से सो रहे हैं!'
उत्तर मिला--
‘अब आप ही बताएं!
ऑफिस में ‘तकिया'
कहां से लाएं?'
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लंच! प्रपंच!!
आगंतुक ने चिढ़कर
बड़े बाबू से कहा -
"अजीब प्रपंच है!
मैं जब भी आता हूं,
क्लर्क कहता है--
श्रीमान, अभी ‘लंच' है।
समझ नहीं पाता हूं
मेरे आने का समय
गलत या सही है।
क्या आपके यहां
लंच का कोई
निश्चित समय नहीं है?"
उत्तर मिला--" श्रीमान,
जब भी कोई आगंतुक
‘लंच' का प्रस्ताव लाता है।
हमारे ऑफिस में
तुरंत उसी समय
‘लंच' का समय हो जाता है!"
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मसख़रा मशहूर है... | हज़ल
मसख़रा मशहूर है आँसू बहाने के लिए
बांटता है वो हँसी सारे ज़माने के लिए
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प्रयोगवाद
आलू!
उस पर एक और आलू,
फिर एक और आलू,
उस पर एक और आलू,
आलू, ऊपर आलू, उस पर आलू,
बोलो कृपालू
काव्य नहीं समझे
तो थैले से बैंगन भी निकालूं ?
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नया ‘वाद’
एक साहित्य गोष्ठी में
जितने थे
सब किसी न किसी ‘वाद' के
वादी ‘थे'।
गोष्टी खत्म हुई
तो एक ने पूछा,
"जो सबसे ज्यादा बोले
वह कौन थे?"
दूसरे ने धीरे से कहा,
वह इलाहावादी थे !"
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ढोल, गंवार...
मैंने अपनी पत्नी से कहा --
"संत महात्मा कह गए हैं--
ढोल, गंवार, शुद्र, पशु और नारी
ये सब ताड़न के अधिकारी!"
[इन सभी को पीटना चाहिए!]
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विरह का गीत | हास्य काव्य
तुम्हारी याद में खुद को बिसारे बैठे हैं।
तुम्हारी मेज पर टंगरी पसारे बैठे हैं ।
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बेधड़क दोहावली
गुस्सा ऐसा कीजिए, जिससे होय कमाल ।
जामुन का मुखड़ा तुरत बने टमाटर लाल।।
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हँसाइयाँ
उस खुदा का नहीं कानून समझते हैं वे
मुझको हँसने का ही मजमून समझते हैं वे।
‘बेधड़क' क्या करूं मैं उनको दिखाकर सूरत
मेरी फोटो को भी कार्टून समझते हैं वे।
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