माई लार्ड! लड़कपन में इस बूढ़े भंगड़ को बुलबुल का बड़ा चाव था। गांव में कितने ही शौकीन बुलबुलबाज थे। वह बुलबुलें पकड़ते थे, पालते थे और लड़ाते थे, बालक शिवशम्भु शर्मा बुलबुलें लड़ाने का चाव नहीं रखता था। केवल एक बुलबुल को हाथ पर बिठाकर ही प्रसन्न होना चाहता था। पर ब्राह्मणकुमार को बुलबुल कैसे मिले? पिता को यह भय कि बालक को बुलबुल दी तो वह मार देगा, हत्या होगी। अथवा उसके हाथ से बिल्ली छीन लेगी तो पाप होगा। बहुत अनुरोध से यदि पिता ने किसी मित्र की बुलबुल किसी दिन ला भी दी तो वह एक घण्टे से अधिक नहीं रहने पाती थी। वह भी पिता की निगरानी में।
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विविध
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माई लार्ड
निंदा रस
‘क' कई महीने बाद आए थे। सुबह चाय पीकर अखबार देख रहा था कि वे तूफान की तरह कमरे में घुसे, साइक्लोन जैसा मुझे भुजाओं में जकड़ लिया। मुझे धृतराष्ट्र की भुजाओं में जकड़े भीम के पुतले की याद गई। जब धृतराष्ट्र की पकड़ में भीम का पुतला गया तो उन्होंने प्राणघाती स्नेह से उसे जकड़कर चूर कर डाला।
‘क' से क्या मैं गले मिला? हरगिज नहीं। मैंने शरीर से मन को चुपचाप खिसका दिया। पुतला उसकी भुजाओं में सौंप दिया। मुझे मालूम था कि मैं धृतराष्ट्र से मिल रहा हूं। पिछली रात को एक मित्र ने बताया कि ‘क' अपनी ससुराल आया है और ‘ग' के साथ बैठकर शाम को दो-तीन घंटे तुम्हारी निंदा करता रहा। छल का धृतराष्ट्र जब आलिंगन करे, तो पुतला ही आगे बढ़ाना चाहिए।
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मुगलों ने सल्तनत बख्श दी
हीरोजी को आप नहीं जानते, और यह दुर्भाग्य की बात है। इसका यह अर्थ नहीं कि केवल आपका दुर्भाग्य है, दुर्भाग्य हीरोजी का भी है। कारण, वह बड़ा सीधा-सादा है। यदि आपका हीरोजी से परिचय हो जाए, तो आप निश्चय समझ लें कि आपका संसार के एक बहुत बड़े विद्वान से परिचय हो गया। हीरोजी को जाननेवालों में अधिकांश का मत है कि हीरोजी पहले जन्म में विक्रमादित्य के नव-रत्नों में एक अवश्य रहे होंगे और अपने किसी पाप के कारण उनको इस जन्म में हीरोजी की योनि प्राप्त हुई। अगर हीरोजी का आपसे परिचय हो जाए, तो आप यह समझ लीजिए कि उन्हें एक मनुष्य अधिक मिल गया, जो उन्हें अपने शौक में प्रसन्नतापूर्वक एक हिस्सा दे सके।
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हिन्दी की होली तो हो ली
(इस लेख का मज़मून मैंने होली के ऊपर इसलिए चुना कि 'होली' हिन्दी का नहीं, अंग्रेजी का शब्द है। लेकिन खेद है कि हिंदुस्तानियों ने इसकी पवित्रता को नष्ट करके एकदम गलीज़ कर दिया है। हिन्दी की होली तो हो ली, अब तो समूचे भारत में अंग्रेजी की होली ही हरेक चौराहे पर लहक रही है।)
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काका की वसीयत
सहज विश्वास नहीं होता कि कोई व्यक्ति अपनी वसीयत में यह लिखकर जाए कि उसके देहांत पर सब जमकर हँसें, कोई रोए नहीं!
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हम भ्रष्टन के भ्रष्ट हमारे
देश के आर्थिक नन्दन कानन में कैसी क्यारियाँ पनपी-सँवरी हैं भ्रष्टाचार की, दिन-दूनी रात चौगुनी। कितनी डाल कितने पत्ते, कितने फूल और लुक छिपकर आती कैसी मदमाती सुगन्ध। यह मिट्टी बड़ी उर्वरा है, शस्य श्यामल, काले करमों के लिए। दफ्तर दफ्तर नर्सरियाँ हैं और बड़े बाग़ जिनके निगहबान बाबू, सुपरिनटेंडेड डायरेक्टर। सचिव, मन्त्री। जिम्मेदार पदों पर बैठे जिम्मेदार लोग क्या कहने, आई.ए.एस., एम.ए. विदेश रिटर्न आज़ादी के आन्दोलन में जेल जाने वाले, चरखे के कतैया, गाँधीजी के चेले, बयालीस के जुलूस वीर, मुल्क का झंडा अपने हाथ से ऊपर चढ़ाने वाले, जनता के अपने, भारत माँ के लाल, काल अंग्रेजन के, कैसा खा रहे हैं, रिश्वत गप-गप ! ठाठ हो गये सुसरी आज़ादी मिलने के बाद। खूब फूटा है पौधा सारे देश में, पनप रहा केसर क्यारियों से कन्याकुमारी तक, राजधानियों में, ज़िला दफ्तर, तहसील, बी.डी.ओ., पटवारी के घर तक, खूब मिलता है काले पैसे का कल्पवृक्ष पी.डब्ल्यू डी., आर टी. ओ. चुंगी नाके बीज़ गोदाम से मुंसीपाल्टी तक। सब जगह अपनी-अपनी किस्मत के टेंडर खुलते हैं, रुपया बँटता है ऊपर से नीचे, आजू बाजू। मनुष्य- मनुष्य के काम आ रहा है, खा रहे हैं तो काम भी तो बना रहे हैं। कैसा नियमित मिलन है, बिलैती खुलती है, कलैजी की प्लेट मँगवाई जाती है। साला कौन कहता है राष्ट्र में एकता नहीं, सभी जुटे हैं, खा रहे हैं, कुतर-कुतर पंचवर्षीय योजना, विदेश से उधार आया रुपया, प्रोजेक्टों के सूखे पाइपों पर ‘फाइव-फाइव-फाइव' पीते बैठे हँस रहे हैं ठेकेदार, इंजीनियर, मन्त्री के दौरे के लंच-डिनर का मेनू बना रहे विशेषज्ञ। स्वास्थ्य मन्त्री की बेटी के ब्याह में टेलिविजन बगल में दाब कर लाया है दवाई कम्पनी का अदना स्थानीय एजेंट। खूब मलाई कट रही है। हर सब-इन्स्पेक्टर ने प्लॉट कटवा लिया कॉलोनी में। टॉउन प्लानिंग वालों की मुट्ठी गर्म करने से कृषि की सस्ती ज़मीन डेवलपमेंट में चली जाती है। देश का विकास हो रहा है भाई। आदमी चाँद पर पहुँच रहा है। हम शनिवार की रात टॉप फाइव स्टार होटल में नहीं पहुँच सकते, लानत है ऐसे मुल्क पर !
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जिसके हम मामा हैं
एक सज्जन बनारस पहुँचे। स्टेशन पर उतरे ही थे कि एक लड़का दौड़ता आता।
‘‘मामाजी ! मामाजी !''-लड़के ने लपक कर चरण छूए।
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