एक सौ 100 यज्ञ पूर्ण कर लेने पर दानवेन्द्र राजा बलि के मन में स्वर्ग का प्राप्ति की इच्छा बलवती हो गई तो का सिंहासन डोलने लगा। इन्द्र आदि देवताओं ने भगवान विष्णु से रक्षा की प्रार्थना की। भगवान ने वामन अवतार लेकर ब्राह्मण का वेष धारण कर लिया और राजा बलि से भिक्षा मांगने पहुँच गए। उन्होंने बलि से तीन पग भूमि भिक्षा में मांग ली।
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भारतीय व्रत, त्योहार व मेले
इस श्रेणी के अंतर्गत
वामनावतार रक्षाबंधन पौराणिक कथा
इन्द्र और महारानी शची | भविष्य पुराण
भविष्य पुराण की एक कथा के अनुसार एक बार देवता और दैत्यों (दानवों ) में बारह वर्षों तक युद्ध हुआ परन्तु देवता विजयी नहीं हुए। इंद्र हार के भय से दु:खी होकर देवगुरु बृहस्पति के पास विमर्श हेतु गए। गुरु बृहस्पति के सुझाव पर इंद्र की पत्नी महारानी शची ने श्रावण शुक्ल पूर्णिमा के दिन विधि-विधान से व्रत करके रक्षासूत्र तैयार किए और स्वास्तिवाचन के साथ ब्राह्मण की उपस्थिति में इंद्राणी ने वह सूत्र इंद्र की दाहिनी कलाई में बांधा जिसके फलस्वरुप इन्द्र सहित समस्त देवताओं की दानवों पर विजय हुई।
रक्षा विधान के समय निम्न लिखित मंत्रोच्चार किया गया था जिसका आज भी विधिवत पालन किया जाता है:
"येन बद्धोबली राजा दानवेन्द्रो महाबल: ।
दानवेन्द्रो मा चल मा चल ।।"
इस मंत्र का भावार्थ है कि दानवों के महाबली राजा बलि जिससे बांधे गए थे, उसी से तुम्हें बांधता हूँ। हे रक्षे! (रक्षासूत्र) तुम चलायमान न हो, चलायमान न हो।
यह रक्षा विधान श्रवण मास की पूर्णिमा को प्रातः काल संपन्न किया गया यथा रक्षा-बंधन अस्तित्व में आया और श्रवण मास की पूर्णिमा को मनाया जाने लगा।
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महाभारत संबंधी कथा
महाभारत काल में द्रौपदी द्वारा श्री कृष्ण को तथा कुन्ती द्वारा अभिमन्यु को राखी बांधने के वृत्तांत मिलते हैं।
महाभारत में ही रक्षाबंधन से संबंधित कृष्ण और द्रौपदी का एक और वृत्तांत मिलता है। जब कृष्ण ने सुदर्शन चक्र से शिशुपाल का वध किया तब उनकी तर्जनी में चोट आ गई। द्रौपदी ने उस समय अपनी साड़ी फाड़कर उनकी उँगली पर पट्टी बाँध दी। यह श्रावण मास की पूर्णिमा का दिन था।
श्रीकृष्ण ने बाद में द्रौपदी के चीर-हरण के समय उनकी लाज बचाकर भाई का धर्म निभाया था।
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रक्षा बंधन का ऐतिहासिक प्रसंग
राजपूत जब लड़ाई पर जाते थे तब महिलाएं उनको माथे पर कुमकुम तिलक लगाने के साथ-साथ हाथ में रेशमी धागा भी बाँधती थी। इस विश्वास के साथ कि यह धागा उन्हें विजयश्री के साथ वापस ले आएगा।
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रक्षा बंधन - चंद्रशेखर आज़ाद का प्रसंग
बात उन दिनों की है जब क्रांतिकारी चंद्रशेखर आज़ाद स्वतंत्रता के लिए संघर्षरत थे और फ़िरंगी उनके पीछे लगे थे।
फिरंगियों से बचने के लिए शरण लेने हेतु आज़ाद एक तूफानी रात को एक घर में जा पहुंचे जहां एक विधवा अपनी बेटी के साथ रहती थी। हट्टे-कट्टे आज़ाद को डाकू समझ कर पहले तो वृद्धा ने शरण देने से इनकार कर दिया लेकिन जब आज़ाद ने अपना परिचय दिया तो उसने उन्हें ससम्मान अपने घर में शरण दे दी। बातचीत से आज़ाद को आभास हुआ कि गरीबी के कारण विधवा की बेटी की शादी में कठिनाई आ रही है। आज़ाद ने महिला को कहा, 'मेरे सिर पर पाँच हजार रुपए का इनाम है, आप फिरंगियों को मेरी सूचना देकर मेरी गिरफ़्तारी पर पाँच हजार रुपए का इनाम पा सकती हैं जिससे आप अपनी बेटी का विवाह सम्पन्न करवा सकती हैं।
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रक्षा बंधन साहित्यिक संदर्भ
अनेक साहित्यिक ग्रंथों में रक्षाबंधन के पर्व का विस्तृत वर्णन मिलता है। हरिकृष्ण प्रेमी के ऐतिहासिक नाटक, 'रक्षाबंधन' का 98वाँ संस्करण प्रकाशित हो चुका है। मराठी में शिंदे साम्राज्य के विषय में लिखते हुए रामराव सुभानराव बर्गे ने भी एक नाटक लिखा है जिसका शीर्षक है 'राखी उर्फ रक्षाबंधन'।
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फिल्मों में रक्षा-बंधन
'राखी' और 'रक्षा-बंधन' पर अनेक फ़िल्में बनीं और अत्यधिक लोकप्रिय हुई, इनमें से कुछ के गीत तो मानों अमर हो गए। इनकी लोकप्रियता आज दशकों पश्चात् भी बनी हुई है।
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रक्षा बंधन का इतिहास व पौराणिक कथाएं
रक्षा बंधन का त्यौहार श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। उत्तरी भारत में यह त्यौहार भाई-बहन के अटूट प्रेम को समर्पित है और इस त्यौहार का प्रचलन सदियों पुराना बताया गया है। इस दिन बहने अपने भाई की कलाई पर राखी बाँधती हैं और भाई अपनी बहनों की रक्षा का संकल्प लेते हुए अपना स्नेहाभाव दर्शाते हैं।
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राखी
रक्षा बंधन का त्यौहार श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। उत्तरी भारत में यह त्यौहार भाई-बहन के अटूट प्रेम को समर्पित है और इस त्यौहार का प्रचलन सदियों पुराना बताया गया है। इस दिन बहने अपने भाई की कलाई पर राखी बाँधती हैं और भाई अपनी बहनों की रक्षा का संकल्प लेते हुए अपना स्नेहाभाव दर्शाते हैं।
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