शेरों को आज़ादी है, आज़ादी के पाबंद रहें,
जिसको चाहें चीरें-फाड़ें, खाएं-पीएं आनंद रहें।
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कविताएं
इस श्रेणी के अंतर्गत
आज़ादी
धुंध है घर में उजाला लाइए
धुंध है घर में उजाला लाइए
रोशनी का इक दुशाला लाइए
केचुओं की भीड़ आँगन में बढ़ी
आदमी अब रीढ़ वाला लाइए
जम गया है मोम सारी देह में
गर्म फौलादी निवाला लाइए
जूझने का जुल्म से संकल्प दे
आज ऐसी पाठशाला लाइए
- डॉ.ऋषभदेव शर्मा
(तरकश, 1996)
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वन्देमातरम् | राष्ट्रीय गीत
वंदे मातरम्, वंदे मातरम्!
सुजलाम्, सुफलाम्, मलयज शीतलाम्,
शस्यश्यामलाम्, मातरम्!
वंदे मातरम्!
शुभ्रज्योत्सनाम् पुलकितयामिनीम्,
फुल्लकुसुमित द्रुमदल शोभिनीम्,
सुहासिनीम् सुमधुर भाषिणीम्,
सुखदाम् वरदाम्, मातरम्!
वंदे मातरम्, वंदे मातरम्॥
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वन्देमातरम्
'वन्देमातरम्' बंकिम चन्द्र चटर्जी द्वारा संस्कृत में रचा गया; यह स्वतंत्रता की लड़ाई में भारतीयों के लिए प्रेरणा का स्रोत था। इसका स्थान हमारे राष्ट्र गान, 'जन गण मन...' के बराबर है। इसे पहली बार 1896 में भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस के सत्र में गाया गया था।
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राखी | कविता
भैया कृष्ण ! भेजती हूँ मैं
राखी अपनी, यह लो आज ।
कई बार जिसको भेजा है
सजा-सजाकर नूतन साज ।।
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राखी की चुनौती | सुभद्रा कुमारी चौहान
बहिन आज फूली समाती न मन में ।
तड़ित आज फूली समाती न घन में ।।
घटा है न झूली समाती गगन में ।
लता आज फूली समाती न बन में ।।
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नाग की बाँबी खुली है आइए साहब
नाग की बाँबी खुली है आइए साहब
भर कटोरा दूध का भी लाइए साहब
रोटियों की फ़िक्र क्या है? कुर्सियों से लो
गोलियाँ बँटने लगी हैं खाइए साहब
टोपियों के हर महल के द्वार छोटे हैं
और झुककर और झुककर जाइए साहब
मानते हैं उम्र सारी हो गई रोते
गीत उनके ही करम के गाइए साहब
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देश भक्ति कविताएं
देश-भक्ति कविताएं
यहां देश-प्रेम, देश-भक्ति व राष्ट्रीय काव्य संग्रहित किया गया है।
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हैं चुनाव नजदीक सुनो भइ साधो
हैं चुनाव नजदीक, सुनो भइ साधो
नेता माँगें भीख, सुनो भइ साधो
गंगाजल का पात्र, आज सिर धारें
कल थूकेंगे पीक, सुनो भइ साधो
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माँ
रोज़ सुबह, मुँह-अंधेरे
दूध बिलोने से पहले
माँ
चक्की पीसती,
और मैं
घुमेड़े में
आराम से
सोता।
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वीरांगना
मैंने उसको
जब-जब देखा,
लोहा देखा।
लोहे जैसा
तपते देखा, गलते देखा, ढलते देखा
मैंने उसको
गोली जैसा चलते देखा।
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देश
ग्राम, नगर या कुछ लोगों का काम नहीं होता है देश
संसद, सड़कों, आयोगों का नाम नहीं होता है देश
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माँ | सुशांत सुप्रिय की कविता
इस धरती पर
अपने शहर में मैं
एक उपेक्षित उपन्यास के बीच में
एक छोटे-से शब्द-सा आया था
वह उपन्यास
एक ऊँचा पहाड़ था
मैं जिसकी तलहटी में बसा
एक छोटा-सा गाँव था
वह उपन्यास
एक लंबी नदी था
मैं जिसके बीच में स्थित
एक सिमटा हुआ द्वीप था
वह उपन्यास
पूजा के समय बजता हुआ
एक ओजस्वी शंख था
मैं जिसकी ध्वनि-तरंग का
हज़ारवाँ हिस्सा था
हालाँकि वह उपन्यास
विधाता की लेखनी से उपजी
एक सशक्त रचना थी
आलोचकों ने उसे
कभी नहीं सराहा
जीवन के इतिहास में
उसका उल्लेख तक नहीं हुआ
आख़िर क्या वजह है कि
हम और आप
जिन महान् उपन्यासों के
शब्द बनकर
इस धरती पर आए
उन उपन्यासों को
कभी कोई पुरस्कार नहीं मिला ?
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प्राण वन्देमातरम्
हम भारतीयों का सदा है, प्राण वन्देमातरम्।
हम भूल सकते है नही शुभ तान वन्देमातरम्॥
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छीन सकती है नहीं सरकार वन्देमातरम्
छीन सकती है नहीं सरकार वन्देमातरम् ।
हम गरीबों के गले का हार वन्देमातरन् ॥१॥
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यह दिया बुझे नहीं
घोर अंधकार हो, चल रही बयार हो
आज द्वार-द्वार पर, यह दिया बुझे नहीं
यह निशीथ का दिया, ला रहा विहान है
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शब्द वन्देमातरम्
फ़ैला जहाँ में शोर मित्रो! शब्द वन्देमातरम्।
हिंद हो या मुसलमान सब कहते वन्देमातरम्॥
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मन्त्र वन्देमातरम् 2
हर घड़ी हर बार हो हर ठाम वन्द्देमातरम्।
हर दम हमेशा बोलिये प्रिय मन्त्र वन्देमातरम्॥
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कर्मवीर
देख कर बाधा विविध बहु विघ्न घबराते नहीं
रह भरोसे भाग्य के दुःख भोग पछताते नहीं
काम कितना ही कठिन हो किन्तु उकताते नहीं
भीड़ में चंचल बने जो वीर दिखलाते नहीं
हो गये एक आन में उनके बुरे दिन भी भले
सब जगह सब काल में वे ही मिले फूले फले ।
आज करना है जिसे करते उसे हैं आज ही
सोचते कहते हैं जो कुछ कर दिखाते हैं वही
मानते जो भी हैं सुनते हैं सदा सबकी कही
जो मदद करते हैं अपनी इस जगत में आप ही
भूल कर वे दूसरों का मुँह कभी तकते नहीं
कौन ऐसा काम है वे कर जिसे सकते नहीं ।
जो कभी अपने समय को यों बिताते हैं नहीं
काम करने की जगह बातें बनाते हैं नहीं
आज कल करते हुए जो दिन गँवाते हैं नहीं
यत्न करने से कभी जो जी चुराते हैं नहीं
बात है वह कौन जो होती नहीं उनके लिए
वे नमूना आप बन जाते हैं औरों के लिए ।
व्योम को छूते हुए दुर्गम पहाड़ों के शिखर
वे घने जंगल जहाँ रहता है तम आठों पहर
गर्जते जल-राशि की उठती हुई ऊँची लहर
आग की भयदायिनी फैली दिशाओं में लपट
ये कंपा सकती कभी जिसके कलेजे को नहीं
भूलकर भी वह नहीं नाकाम रहता है कहीं ।
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सफलता
ओ सफलते! आ मुझे अपना बना
हूँ मैं व्याकुल तुझको पाने के लिए।
मेरा हर पल बन गया चाहत तेरी
अब तो दुभर हो गया जीना मेरा।
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भारत न रह सकेगा ...
भारत न रह सकेगा हरगिज गुलामख़ाना।
आज़ाद होगा, होगा, आता है वह जमाना।।
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मेरा धन है स्वाधीन कलम
राजा बैठे सिंहासन पर, यह ताजों पर आसीन कलम
मेरा धन है स्वाधीन कलम
जिसने तलवार शिवा को दी
रोशनी उधार दिवा को दी
पतवार थमा दी लहरों को
ख़ंजर की धार हवा को दी
अग-जग के उसी विधाता ने, कर दी मेरे आधीन कलम
मेरा धन है स्वाधीन कलम
रस-गंगा लहरा देती है
मस्ती-ध्वज फहरा देती है
चालीस करोड़ों की भोली
किस्मत पर पहरा देती है
संग्राम-क्रांति का बिगुल यही है, यही प्यार की बीन कलम
मेरा धन है स्वाधीन कलम
कोई जनता को क्या लूटे
कोई दुखियों पर क्या टूटे
कोई भी लाख प्रचार करे
सच्चा बनकर झूठे-झूठे
अनमोल सत्य का रत्नहार, लाती चोरों से छीन कलम
मेरा धन है स्वाधीन कलम
बस मेरे पास हृदय-भर है
यह भी जग को न्योछावर है
लिखता हूँ तो मेरे आगे
सारा ब्रह्मांड विषय-भर है
रँगती चलती संसार-पटी, यह सपनों की रंगीन कलम
मेरा धन है स्वाधीन कलम
लिखता हूँ अपनी मरज़ी से
बचता हूँ क़ैंची-दर्ज़ी से
आदत न रही कुछ लिखने की
निंदा-वंदन ख़ुदग़र्ज़ी से
कोई छेड़े तो तन जाती, बन जाती है संगीन कलम
मेरा धन है स्वाधीन कलम
तुझ-सा लहरों में बह लेता
तो मैं भी सत्ता गह लेता
ईमान बेचता चलता तो
मैं भी महलों में रह लेता
हर दिल पर झुकती चली मगर, आँसू वाली नमकीन कलम
मेरा धन है स्वाधीन कलम
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दुर्योधन सा सिंहासन है मिला
मेरे अधिकार तो छीन लिए तुमने
मेरे जैसा हुनर कहाँ से लाओगे?
बोलो साहस इतना तुम, भला कहाँ से पाओगे!
दुर्योधन सा सिंहासन है मिला
युद्धिष्ठर से पूजनीय तुम कैसे कहलाओगे?
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सरफ़रोशी की तमन्ना
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है।
देखना है ज़ोर कितना बाज़ु-ए-कातिल में है॥
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नादानी
आज करेंगे हम नादानी
मौसम भी है पानी पानी
चली हवा मादक अलबेली
कलियों से करती अठखेली
चन्दन का वन महक उठा है
गमक उठी है रात सुहानी
आज करेंगे …
चंचल है नदिया की धारा
टूट चुका है आज किनारा
खुला निमंत्रण देती हमको
लहरों की अलमस्त रवानी
आज करेंगे हम नादानी
आज करेंगे हम नादानी
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सुनीति | कविता
निज गौरव को जान आत्मआदर का करना
निजता की की पहिचान, आत्मसंयम पर चलना
ये ही तीनो उच्च शक्ति, वैभव दिलवाते,
जीवन किन्तु न डाल शक्ति वैभव के खाते ।
(आ जाते ये सदा आप ही बिना बुलाए ।)
चतुराई की परख यहाँ-परिणाम न गिनकर,
जीवन को नि:शक चलाना सत्य धर्म पर,
जो जीवन का मन्त्र उसी हर निर्भय चलना,
उचित उचित है यही मान कर समुचित ही करना,
यो ही परमानंद भले लोगों ने पाए ।।
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तख्त बदला ताज बदला, आम आदमी का आज न बदला!
महाराष्ट्र में धरती के पाँच लालों ने की, आर्थिक तंगीवश खुदकुशी,
छत्तीसगड में 8 महिलाओं की सरकारी शिविर लापरवाही ने जान ली !
राजस्थान में पचास साल की महिला को सरेआम निर्वस्त्र घुमाया,
अच्छे दिनों के सपनों ने हमें किस हकीकत में ला पहुँचाया ?
तख्त बदला ताज बदला, आम आदमी का आज न बदला !
एम्स में एक ने बुलन्द की थी जिसके विरुद्ध ईमान की आवाज,
उसी के हिमायती को पहनाया गया स्वास्थ्य-मंत्री का ताज,
अर्थात ईमानदार से लिया ही जायेगा ईमानदारी का बदला,
तख्त बदला ताज बदला पर आम आदमी का आज न बदला ।
राजाओं के राज की तरह आज भी एक फैसला लिया गया,
नये मंत्री द्वारा रेलकर्मियों को इनाम उद्घोषित किया गया,
जो रेलकर्मी रेल क्रौसिंग प्रकल्प में भूमिका निभायेगा,
उसे पाँच लाख का नकद इनाम दिया जायेगा ।
रेलकर्मी सरकारी सेवा में होने से पहले ही सुखी सम्पन्न है,
असंगठित मजदूर, मजबूर किसान इन फैसलों से मरणासन्न है !
तख्त बदला ताज बदला, आम आदमी का आज न बदला!
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सारे जहाँ से अच्छा
सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा।
हम बुलबुलें हैं इसकी वह गुलिस्तां हमारा ॥
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सुबह-सवेरे
किरणों की अंगड़ाई जैसे
पौ यूं फट फट आई जैसे
रात की चीं-चीं चुप्पी साधी
भोर भी यूं बौराई जैसे
पाखी शोर मचाने वाले
उनकी तो बन आई जैसे
हवा बहे हौले-हौले से
अभी नई हो आई जैसे
रात का यौवन भाया उसको
कली फूल बन आई जैसे
ओस की बूँदें मोती बनकर
तडके दूध-नहाई जैसे
रात के भारी कठिन पलों की
भोर में हुई रिहाई जैसे
जैसी मैंने आँखों देखीं
वैसी तुम्हे बताई जैसे
-राजबीर देसवाल
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जन्म-दिन
यूँ तो जन्म-दिन मैं यूँ भी नहीं मनाता
पर इस बार...
जन्म-दिन बहुत रुलाएगा
जन्म-दिन पर 'माँ' बहुत याद आएगी
चूँकि...
इस बार...
'जन्म-दिन मुबारक' वाली चिरपरिचित आवाज नहीं सुन पाएगी...
पर...जन्म-दिन के आस-पास या शायद उसी रात...
वो ज़रूर सपने में आएगी...
फिर...
'जन्म-दिन मुबारिक' कह जाएगी
इस बार मैं हँसता हुआ न बोल पाऊंगा...
आँख खुल जाएगी...
'क्या हुआ?' बीवी पूछेगी और...
उत्तर में मेरी आँख भर जाएगी।
[16 जून 2013 को माँ छोड़ कर जो चल दी]
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रिश्ते
कुछ खून से बने हुए
कुछ आप हैं चुने हुए
और कुछ...
हमने बचाए हुए हैं
टूटने-बिखरने को हैं..
बस यूं समझो..
दीवार पर टंगें कैलंडर की तरह,
सजाए हुए हैं।
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आत्म-दर्शन
चन्द्रशेखर नाम, सूरज का प्रखर उत्ताप हूँ मैं,
फूटते ज्वाला-मुखी-सा, क्रांति का उद्घोष हूँ मैं।
कोश जख्मों का, लगे इतिहास के जो वक्ष पर है,
चीखते प्रतिरोध का जलता हुआ आक्रोश हूँ मैं।
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कौमी गीत
हम हैं इसके मालिक हिंदुस्तान हमारा
पाक वतन है कौम का, जन्नत से भी प्यारा
ये है हमारी मिल्कियत, हिंदुस्तान हमारा
इसकी रूहानियत से, रोशन है जग सारा
कितनी कदीम, कितनी नईम, सब दुनिया से न्यारा
करती है जरखेज जिसे, गंगो-जमुन की धारा
ऊपर बर्फीला पर्वत पहरेदार हमारा
नीचे साहिल पर बजता सागर का नक्कारा
इसकी खाने उगल रहीं, सोना, हीरा, पारा
इसकी शान शौकत का दुनिया में जयकारा
आया फिरंगी दूर से, ऐसा मंतर मारा
लूटा दोनों हाथों से, प्यारा वतन हमारा
आज शहीदों ने है तुमको, अहले वतन ललकारा
तोड़ो, गुलामी की जंजीरें, बरसाओ अंगारा
हिन्दू मुसलमाँ सिख हमारा, भाई भाई प्यारा
यह है आज़ादी का झंडा, इसे सलाम हमारा ॥
-- अजीमुल्ला
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भारतवर्ष
जय जय प्यारा भारत देश।
जय जय प्यारा जग से न्यारा,
शोभित सारा देश हमारा।
जगत-मुकुट जगदीश-दुलारा,
जय सौभाग्य-सुदेश॥
जय जय प्यारा भारत देश।
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स्वतंत्रता दिवस की पुकार
पन्द्रह अगस्त का दिन कहता - आज़ादी अभी अधूरी है।
सपने सच होने बाक़ी हैं, राखी की शपथ न पूरी है॥
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खूनी पर्चा
अमर भूमि से प्रकट हुआ हूं, मर-मर अमर कहाऊंगा,
जब तक तुझको मिटा न लूंगा, चैन न किंचित पाऊंगा।
तुम हो जालिम दगाबाज, मक्कार, सितमगर, अय्यारे,
डाकू, चोर, गिरहकट, रहजन, जाहिल, कौमी गद्दारे,
खूंगर तोते चश्म, हरामी, नाबकार और बदकारे,
दोजख के कुत्ते खुदगर्जी, नीच जालिमों हत्यारे,
अब तेरी फरेबबाजी से रंच न दहशत खाऊंगा,
जब तक तुझको...।
तुम्हीं हिंद में बन सौदागर आए थे टुकड़े खाने,
मेरी दौलत देख देख के, लगे दिलों में ललचाने,
लगा फूट का पेड़ हिंद में अग्नी ईर्ष्या बरसाने,
राजाओं के मंत्री फोड़े, लगे फौज को भड़काने,
तेरी काली करतूतों का भंडा फोड़ कराऊंगा,
जब तक तुझको...।
हमें फरेबो जाल सिखा कर, भाई भाई लड़वाया,
सकल वस्तु पर कब्जा करके हमको ठेंगा दिखलाया,
चर्सा भर ले भूमि, भूमि भारत का चर्सा खिंचवाया,
बिन अपराध हमारे भाई को शूली पर चढ़वाया,
एक एक बलिवेदी पर अब लाखों शीश चढ़ाऊंगा,
जब तक तुझको....।
बंग-भंग कर, नन्द कुमार को किसने फांसी चढ़वाई,
किसने मारा खुदी राम और झांसी की लक्ष्मीबाई,
नाना जी की बेटी मैना किसने जिंदा जलवाई,
किसने मारा टिकेन्द्र जीत सिंह, पद्मनी, दुर्गाबाई,
अरे अधर्मी इन पापों का बदला अभी चखाऊंगा,
जब तक तुझको....।
किसने श्री रणजीत सिंह के बच्चों को कटवाया था,
शाह जफर के बेटों के सर काट उन्हें दिखलाया था,
अजनाले के कुएं में किसने भोले भाई तुपाया था,
अच्छन खां और शम्भु शुक्ल के सर रेती रेतवाया था,
इन करतूतों के बदले लंदन पर बम बरसाऊंगा,
जब तक तुझको....।
पेड़ इलाहाबाद चौक में अभी गवाही देते हैं,
खूनी दरवाजे दिल्ली के घूंट लहू पी लेते हैं,
नवाबों के ढहे दुर्ग, जो मन मसोस रो देते हैं,
गांव जलाये ये जितने लख आफताब रो लेते हैं,
उबल पड़ा है खून आज एक दम शासन पलटाऊंगा,
जब तक तुझको...।
अवध नवाबों के घर किसने रात में डाका डाला था,
वाजिद अली शाह के घर का किसने तोड़ा ताला था,
लोने सिंह रुहिया नरेश को किसने देश निकाला था,
कुंवर सिंह बरबेनी माधव राना का घर घाला था,
गाजी मौलाना के बदले तुझ पर गाज गिराऊंगा,
जब तक तुझको...।
किसने बाजी राव पेशवा गायब कहां कराया था,
बिन अपराध किसानों पर कस के गोले बरसाया था,
किला ढहाया चहलारी का राज पाल कटवाया था,
धुंध पंत तातिया हरी सिंह नलवा गर्द कराया था,
इन नर सिंहों के बदले पर नर सिंह रूप प्रगटाऊंगा,
जब तक तुझको...।
डाक्टरों से चिरंजन को जहर दिलाने वाला कौन ?
पंजाब केसरी के सर ऊपर लट्ठ चलाने वाला कौन ?
पितु के सम्मुख पुत्र रत्न की खाल खिंचाने वाला कौन ?
थूक थूक कर जमीं के ऊपर हमें चटाने वाला कौन ?
एक बूंद के बदले तेरा घट पर खून बहाऊंगा ?
जब तक तुझको...।
किसने हर दयाल, सावरकर अमरीका में घेरवाया है,
वैज्ञानिक जगदीश चन्द्र से प्रिय भारत छोड़वाया है,
रास बिहारी, मानवेन्द्र और महेन्द्र सिंह को बंधवाया है,
अंडमान टापू में बंदी देशभक्त सब भेजवाया है,
अरे क्रूर ढोंगी के बच्चे तेरा वंश मिटाऊंगा,
जब तक तुझको....।
अमृतसर जलियान बाग का घाव भभकता सीने पर,
देशभक्त बलिदानों का अनुराग धधकता सीने पर,
गली नालियों का वह जिंदा रक्त उबलता सीने पर,
आंखों देखा जुल्म नक्श है क्रोध उछलता सीने पर,
दस हजार के बदले तेरे तीन करोड़ बहाऊंगा,
जब तक तुझको....।
-वंशीधर शुक्ल (1904-1980)
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बाक़ी बच गया अंडा | कविता
पाँच पूत भारत माता के, दुश्मन था खूंखार
गोली खाकर एक मर गया, बाक़ी रह गये चार
चार पूत भारत माता के, चारों चतुर-प्रवीन
देश-निकाला मिला एक को, बाकी रह गये तीन
तीन पूत भारत माता के, लड़ने लग गए वो
अलग हो गया उधर एक, अब बाकी बच बच गए दो
दो बेटे भारत माता के, छोड़ पुरानी टेक
चिपक गया है एक गद्दी से, बाकी बच गया है एक
एक पूत भारत माता का, कंधे पर है झंडा
पुलिस पकड़ के जेल ले गई, बाक़ी बच गया अंडा
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शुभेच्छा
न इच्छा स्वर्ग जाने की नहीं रुपये कमाने की ।
नहीं है मौज करने की नहीं है नाम पाने की ।।
नहीं महलों में रहने की नहीं मोटर पै चलने की ।
नहीं है कर मिलाने की नहीं मिस्टर कहाने की ।।
न डिंग्री हाथ करने की, नहीं दासत्व पाने की ।
नहीं जंगल में जाकर ईश धूनी ही रमाने की ।।
फ़क़त इच्छा है ऐ माता! तेरी शुभ भक्ति करने की ।
तेरा ही नाम धरने की तेरा ही ध्यान करने की ।।
तेरे ही पैर पड़ने की तेरी आरत भगाने की ।
करोड़ों कष्ट भी सह कर शरण तव मातु आने की ।।
नहीं निज बंधुओ को अन्य टापू में पठाने की ।
नहीं निज पूर्वजों की कीर्ति को दाग़ी कराने की ।।
चाहे जिस भांति हो माता सुखद निज-राज्य पाने की ।
मरण उपरान्त भी माता! पुन: तव गोद आने की ।।
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ओ शासक नेहरु सावधान
ओ शासक नेहरु सावधान,
पलटो नौकरशाही विधान।
अन्यथा पलट देगा तुमको,
मजदूर, वीर योद्धा, किसान।
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पंद्रह अगस्त की पुकार
पंद्रह अगस्त का दिन कहता -
आज़ादी अभी अधूरी है।
सपने सच होने बाकी है,
रावी की शपथ न पूरी है।।
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उसने मेरा हाथ देखा | कविता
उसने मेरा हाथ देखा और सिर हिला दिया,
"इतनी भाव प्रवीणता
दुनिया में कैसे रहोगे!
इसपर अधिकार पाओ,
वरना
लगातार दुख दोगे
निरंतर दुख सहोगे!"
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