कितनी जिद्दी हो तुम मक्खी
अभी उड़ाती फिर आ जाती!
हां मैं भी करती हूं लेकिन
मां मनाती झट मन जाती।
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बाल-साहित्य
इस श्रेणी के अंतर्गत
जिद्दी मक्खी
जब बांधूंगा उनको राखी
माँ मुझको अच्छा लगता जब
मुझे बांधती दीदी राखी
तुम कहती जो रक्षा करता
उसे बांधते हैं सब राखी।
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शब्द शब्द जैसे हों फूल
अच्छी पुस्तक बगिया जैसी
होती है मुझको तो लगता।
कविता और कहानी उसमें
हों पौधे ज्यों ऐसा लगता।
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आओ चलें घूम लें हम भी
छुट्टियों के आने से पहले
हम तो लगते खूब झूमने।
कह देते मम्मी-पापा से
चलो चलो न चलो घूमने।
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नकल | पंचतंत्र
एक पहाड़ की ऊंची चोटी पर एक बाज रहता था। पहाड़ की तराई में बरगद के पेड़ पर एक कौआ अपना घोंसला बनाकर रहता था। वह बड़ा चालाक और धूर्त था। उसका प्रयासरहता कि बिना परिश्रम किए खाने को मिल जाए। पेड़ के आसपास खोह में खरगोश रहते थे। जब भी खरगोश बाहर आते तो बाज ऊंची उड़ान भरते और एकाध खरगोश को उठाकर ले जाते।
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मिट्ठू
बंदरों के तमाशे तो तुमने बहुत देखे होंगे। मदारी के इशारों पर बंदर कैसी-कैसी नकलें करता है, उसकी शरारतें भी तुमने देखी होंगी। तुमने उसे घरों से कपड़े उठाकर भागते देखा होगा। पर आज हम तुम्हें एक ऐसा हाल सुनाते हैं, जिससे मालूम होगा कि बंदर लड़कों से भी दोस्ती कर सकता है।
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परीक्षा
जब रियासत देवगढ़ के दीवान सरदार सुजानसिंह बूढ़े हुए तो परमात्मा की याद आई। जा कर महाराज से विनय की कि दीनबंधु! दास ने श्रीमान् की सेवा चालीस साल तक की, अब मेरी अवस्था भी ढल गई, राज-काज संभालने की शक्ति नहीं रही। कहीं भूल-चूक हो जाए तो बुढ़ापे में दाग लगे। सारी ज़िंदगी की नेकनामी मिट्टी में मिल जाए।
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