संस्मरण

संस्मरण - Reminiscence

इस श्रेणी के अंतर्गत

कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर और मुंशी प्रेमचंद | प्रेमचंद के किस्से

- भारत-दर्शन संकलन | Collections

एक बार कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर' मुंशी प्रेमचंद से पूछ बैठे, "मुंशीजी आप कैसे कागज़ पर और कैसे 'पेन' से लिखते हैं?"
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मैं ही धोखे में था | प्रेमचंद के किस्से

- भारत-दर्शन संकलन | Collections

मुंशी प्रेमचंद बड़े शांत स्वभाव के व्यक्ति थे। उन्हें कभी क्रोध नहीं आता था, लेकिन एक बार उन्हें किसी पर गुस्सा आ गया और वह बोले, "क्या कहूँ, मैं आपको एक शरीफ आदमी समझता था, परन्तु आप तो...।"
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ख़ास कहानी | संस्मरण

- अमृतराय

सन् 35 के दिनों की बात है। मैंने तब साल डेढ़ साल पहले से लिखना शुरू ही किया था। मैं तब इलाहाबाद में रहता था। हाईस्कूल में पढ़ता था और प्रेमचंद बम्बई से लौटकर बनारस आ गए थे। 
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प्रेमचंद का कोट | प्रेमचंद के किस्से

- भारत-दर्शन संकलन | Collections

प्रेमचंद सादगी से रहते थे। उनका कोट पुराना हो चुका था और फट भी गया था, लेकिन वे उसी को पहने रहते थे।
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शिवरानी के नाम: प्रेमचंद के पत्र | प्रेमचंद के किस्से

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प्रेमचंद का अपनी पत्नी शिवरानी देवी से अटूट अनुराग था। प्रेमचंद जब फ़िल्मी दुनिया में लिखने के लिए मुंबई गए तो वे अकेले ही गए थे। वहाँ से उन्होंने अपनी पत्नी को 4 जून 1934 में एक पत्र लिखा था:
"अब तुम्हारे पास बेटी और बेटा भी पहुँच जाएँगे। तुम्हारे पास तो सभी होंगे, भाई-बंधु, लड़के-लड़की सभी, और मुझे तो तुम लोगों के बिना मुंबई होते हुए भी सूनी ही मालूम होती है। यही बार-बार इच्छा होती है कि छोड़छाड़ कर भाग खड़ा होऊँ। बार-बार यह झुंझलाहट होती है, कहाँ से यह बला मोल ले ली। मैंने अभी मकान नहीं लिया है, अभी मकान लूँगा तो वह सूना घर मुझे और खाने दौड़ेगा। मकान तो उसी समय लूँगा, जब तुम्हारा पत्र आने के लिए आ जाएगा।"
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भाग आए थे प्रेमचंद मायानगरी से | प्रेमचंद के किस्से

- भारत-दर्शन संकलन | Collections

प्रेमचंद के एक मित्र थे देवनारायण द्विवेदी। उन्हें एक बार मुंबई की एक फ़िल्म कंपनी से बुलावा आया लेकिन वे किसी कारणवश जा नहीं पाए।
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खेल-खेल में | प्रेमचंद के किस्से

- भारत-दर्शन संकलन | Collections

एक बार की बात है--कई लड़के मिलकर नाई का खेल खेल रहे थे। धनपत ने एक लड़के की हजामत बनाते हुए बांस की कमानी से उसका कान ही काट लिया। उस लड़के की माँ झल्लाई हुई उनकी माता से उलाहना देने आई। आपने जैसे ही उसकी आवाज़ सुनी, खिड़की के पास दुबक गये। माँ ने दुबकते हुए उन्हें देख लिया था, पकडकर चार झापड़ दिये।
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रुपए की चोरी | प्रेमचंद के किस्से

- भारत-दर्शन संकलन | Collections

प्रेमचंद के बचपन की घटना है। उनके चाचा ने सन बेचा। और उसके रुपए लाकर उन्होंने ताक पर रख दिये। आपने अपने चचेरे भाई से सलाह की जो उम्र में आप से बड़े थे। दोनों ने मिलकर रुपए ले लिये। आप रुपए उठा तो लाये, मगर उन्हें ख़र्च करना नहीं आता था। चचेरे भाई ने उस रुपए को भुनाकर बारह आने मौलवी साहब की फीस दी। और बाकी चार आनों मे से अमरुद, रेवाड़ी वगैरह लेकर दोनों भाइयों ने खायी।
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प्रेमचंदजी

- महादेवी वर्मा | Mahadevi Verma

प्रेमचंदजी से मेरा प्रथम परिचय पत्र के द्वारा हुआ। तब मैं आठवीं कक्षा की विद्यार्थिनी थी!। मेरी 'दीपक' शीर्षक एक कविता सम्भवत: 'चांद' में प्रकाशित हुई। प्रेमचंदजी ने तुरन्त ही मुझे कुछ पंक्तियों में अपना आशीर्वाद भेजा। तब मुझे यह ज्ञात नहीं था कि कहानी और उपन्यास लिखने वाले कविता भी पढ़ते हैं। मेरे लिए ऐसे ख्यातनामा कथाकार का पत्र जो मेरी कविता की विशेषता व्यक्त करता था, मुझे आशीर्वाद देता था, बधाई देता था, बहुत दिनों तक मेरे कौतूहल मिश्रित गर्व का कारण बना रहा।
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एक सपना | काल्पनिक रेखाचित्र

- नागार्जुन | Nagarjuna

Munshi Premchand-Sapna by Nagarjun
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