कविताएं

देश-भक्ति की कविताएं पढ़ें। अंतरजाल पर हिंदी दोहे, कविता, ग़ज़ल, गीत क्षणिकाएं व अन्य हिंदी काव्य पढ़ें। इस पृष्ठ के अंतर्गत विभिन्न हिंदी कवियों का काव्य - कविता, गीत, दोहे, हिंदी ग़ज़ल, क्षणिकाएं, हाइकू व हास्य-काव्य पढ़ें। हिंदी कवियों का काव्य संकलन आपको भेंट!

इस श्रेणी के अंतर्गत

माँ

- जगदीश व्योम

माँ कबीर की साखी जैसी
तुलसी की चौपाई-सी
माँ मीरा की पदावली-सी
माँ है ललित रुबाई-सी।
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मैं दिल्ली हूँ - एक | कविता

- रामावतार त्यागी | Ramavtar Tyagi

मैं दिल्ली हूँ मैंने कितनी, रंगीन बहारें देखी हैं।
अपने आँगन में सपनों की, हर ओर कितारें देखीं हैं॥
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प्यारा वतन | कविता

- महावीर प्रसाद द्विवेदी | Mahavir Prasad Dwivedi

(1)
प्यारे वतन हमारे प्यारे,
आजा, आजा, पास हमारे ।
या तू अपने पास बुलाकर,
रख छाती से हमें लगाकर ॥
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कभी कभी खुद से बात करो | कवि प्रदीप की कविता

- भारत-दर्शन संकलन | Collections

कभी कभी खुद से बात करो, कभी खुद से बोलो ।
अपनी नज़र में तुम क्या हो? ये मन की तराजू पर तोलो ।
कभी कभी खुद से बात करो ।
कभी कभी खुद से बोलो ।

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सुख-दुख | कविता

- सुमित्रानंदन पंत | Sumitranandan Pant

मैं नहीं चाहता चिर-सुख,
मैं नहीं चाहता चिर-दुख,
सुख दुख की खेल मिचौनी
खोले जीवन अपना मुख !
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ठाकुर का कुआँ | कविता

- ओमप्रकाश वाल्मीकि | Om Prakash Valmiki

चूल्‍हा मिट्टी का
मिट्टी तालाब की
तालाब ठाकुर का ।
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आम आदमी

- ब्रजभूषण भट्ट

आज
आम आदमी
आम की तरह है,
जिसे
रईस चूसकर फेंक देते हैं,
और
गुठलीयों को जमीन में गाड़ देते हैं,
जिससे
फिर और आमों को चूसा जा सके।

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विपदाओं से मुझे बचाओ, यह न प्रार्थना | गीतांजलि

- रबीन्द्रनाथ टैगोर | Rabindranath Tagore


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एक छलावा | कविता

- विष्णु प्रभाकर | Vishnu Prabhakar

बापू!
तुम मानव तो नहीं थे
एक छलावा थे
कर दिया था तुमने जादू
हम सब पर
स्थावर-जंगम, जड़-चेतन पर
तुम गए—
तुम्हारा जादू भी गया
और हो गया
एक बार फिर
नंगा।
यह बेईमान
भारती इनसान।
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युद्ध जारी है | कविता

- शिवनारायण जौहरी विमल

युद्ध जारी है
सत्य का झूठ से
प्रकाश का अन्धकार से
जीवन का मृत्यु से
विकारों का अंतरात्मा से
अपराध का कारागार से
आदमी का अहंकार से |

तुमने भेज तो दिया मुझको
भाल पर विजय की कामना
का टीका लगा कर
भेज तो दिया चल रहे संग्राम
में कौशल दिखाने के लिए
बिला यह बतलाए कि
कौन अपना है कौन पराया
किससे युद्ध करना है किससे नहीं
पर में स्वयं से भी
युद्ध करने के लिए तैयार हूँ |

मेरे सामने महारथियों की भीड है
और मै बिलकुल अकेला हूँ
इस चक्रव्यूह में
अभिमन्यू की तरह सभी
मेरे कवच कुंडल टूट गए हैं
तलवार छूट गई हाथ से
धनुष की प्रत्यंचा कट गई है
सारथी और अश्व घायल हो गए हैं
किन्तु यह रक्त रंजित तन
और आहत मन अभी हारे नहीं है
विजय का परचम लिए
मैं फिर खडा हूँ युद्ध जारी है |

- शिवनारायण जौहरी विमल
  विधि सचिव
  24/डी. के. देवस्थली
  दाना पानी रेस्तौरेंट के पास
  अरेरा कॉलोनी
  भोपाल म. प्र.
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स्वदेश | कविता

- गयाप्रसाद शुक्ल सनेही

वह हृदय नहीं है पत्थर है,
जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं।
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आज भी खड़ी वो...

- सपना सिंह ( सोनश्री )

निराला की कविता, 'तोड़ती पत्थर' को सपना सिंह (सोनश्री) आज के परिवेश में कुछ इस तरह से देखती हैं:
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रुदन करता पेड़ | कविता

- डॉ मुल्ला आदम अली

मैंने पेड़ को रोते देखा
उसका सब कुछ खोते देखा।
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