माँ कबीर की साखी जैसी
तुलसी की चौपाई-सी
माँ मीरा की पदावली-सी
माँ है ललित रुबाई-सी।
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कविताएं
इस श्रेणी के अंतर्गत
माँ
मैं दिल्ली हूँ - एक | कविता
मैं दिल्ली हूँ मैंने कितनी, रंगीन बहारें देखी हैं।
अपने आँगन में सपनों की, हर ओर कितारें देखीं हैं॥
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प्यारा वतन | कविता
(1)
प्यारे वतन हमारे प्यारे,
आजा, आजा, पास हमारे ।
या तू अपने पास बुलाकर,
रख छाती से हमें लगाकर ॥
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कभी कभी खुद से बात करो | कवि प्रदीप की कविता
कभी कभी खुद से बात करो, कभी खुद से बोलो ।
अपनी नज़र में तुम क्या हो? ये मन की तराजू पर तोलो ।
कभी कभी खुद से बात करो ।
कभी कभी खुद से बोलो ।
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सुख-दुख | कविता
मैं नहीं चाहता चिर-सुख,
मैं नहीं चाहता चिर-दुख,
सुख दुख की खेल मिचौनी
खोले जीवन अपना मुख !
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आम आदमी
आज
आम आदमी
आम की तरह है,
जिसे
रईस चूसकर फेंक देते हैं,
और
गुठलीयों को जमीन में गाड़ देते हैं,
जिससे
फिर और आमों को चूसा जा सके।
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एक छलावा | कविता
बापू!
तुम मानव तो नहीं थे
एक छलावा थे
कर दिया था तुमने जादू
हम सब पर
स्थावर-जंगम, जड़-चेतन पर
तुम गए—
तुम्हारा जादू भी गया
और हो गया
एक बार फिर
नंगा।
यह बेईमान
भारती इनसान।
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युद्ध जारी है | कविता
युद्ध जारी है
सत्य का झूठ से
प्रकाश का अन्धकार से
जीवन का मृत्यु से
विकारों का अंतरात्मा से
अपराध का कारागार से
आदमी का अहंकार से |
तुमने भेज तो दिया मुझको
भाल पर विजय की कामना
का टीका लगा कर
भेज तो दिया चल रहे संग्राम
में कौशल दिखाने के लिए
बिला यह बतलाए कि
कौन अपना है कौन पराया
किससे युद्ध करना है किससे नहीं
पर में स्वयं से भी
युद्ध करने के लिए तैयार हूँ |
मेरे सामने महारथियों की भीड है
और मै बिलकुल अकेला हूँ
इस चक्रव्यूह में
अभिमन्यू की तरह सभी
मेरे कवच कुंडल टूट गए हैं
तलवार छूट गई हाथ से
धनुष की प्रत्यंचा कट गई है
सारथी और अश्व घायल हो गए हैं
किन्तु यह रक्त रंजित तन
और आहत मन अभी हारे नहीं है
विजय का परचम लिए
मैं फिर खडा हूँ युद्ध जारी है |
- शिवनारायण जौहरी विमल
विधि सचिव
24/डी. के. देवस्थली
दाना पानी रेस्तौरेंट के पास
अरेरा कॉलोनी
भोपाल म. प्र.
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आज भी खड़ी वो...
निराला की कविता, 'तोड़ती पत्थर' को सपना सिंह (सोनश्री) आज के परिवेश में कुछ इस तरह से देखती हैं:
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