कहानियां

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इतिहास का वर्तमान

- अभिमन्यु अनत

एक बार जब बोनोम नोनोन अपने मित्र बिसेसर के साथ अपनी कुटिया के सामने ढपली बजाता हुआ जोर-जोर से गाने और नाचने लगा था तो मेस्ये गिस्ताव रोवियार उस तक पहुँच आया था। उस शाम पहले ही से बोतल खाली किए बैठे नोनोन ने जगेसर से चिलम लेकर गाँजे के दो लंबे कश भी ले लिए थे। उस ऊँचे स्वर के गाने के कारण मेस्ये रोवियार ने नोनोन को डाँटते हुए कहा था। कि वह जंगलियों की तरह शोर मत करे। रोवियार की नजर बिसेसर पर नहीं पड़ी थी, क्योंकि अपने पुराने मालिक के बेटे को दूर ही से ढलान पार करते बिसेसर ने देख लिया था। बिसेसर का घर नदी के उस पार था, जो इस इलाके में नहीं आता था। इस इलाके में बिसेसर का आना मना था; पर अपने मित्र नोनोन से मिलने वह कभी-कभार आ ही जाता था। शक्कर कोठी के छोटे मालिक गिस्ताव का आलीशन मकान, जिसे बस्ती के लोग 'शातो' कहते थे, वास्तव में एक महल ही तो था। नोनोन की झोंपड़ी से ऊपर जहाँ पहाड़ी दूर तक समतल थी और जहाँ यह महल स्थित था, वह स्थान तीन ओर से हरे-भरे मनमोहक पेड़ों से घिरा हुआ था।
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शोक का पुरस्कार

- मुंशी प्रेमचंद

आज तीन दिन गुज़र गये। शाम का वक्त था। मैं युनिवर्सिटी हॉल से खुश-खुश चला आ रहा था। मेरे सैकड़ों दोस्त मुझे बधाइयाँ दे रहे थे। मारे खुशी के मेरी बाँछें खिली जाती थीं। मेरी जिन्दगी की सबसे प्यारी आरजू कि मैं एम०ए० पास हो जाऊँ, पूरी हो गयी थी और ऐसी खूबी से जिसकी मुझे तनिक भी आशा न थी। मेरा नम्बर अव्वल था। वाइस चान्सलर साहब ने खुद मुझसे हाथ मिलाया था और मुस्कराकर कहा था कि भगवान तुम्हें और भी बड़े कामों की शक्ति दे। मेरी खुशी की कोई सीमा न थी। मैं नौजवान था, सुन्दर था, स्वस्थ था, रुपये-पैसे की न मुझे इच्छा थी और न कुछ कमी, माँ-बाप बहुत कुछ छोड़ गये थे। दुनिया में सच्ची खुशी पाने के लिए जिन चीज़ों की ज़रूरत है, वह सब मुझे प्राप्त थीं। और सबसे बढक़र पहलू में एक हौसलामन्द दिल था जो ख्याति प्राप्त करने के लिए अधीर हो रहा था।
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लोहे की जालियाँ | कहानी

- राम नगीना मौर्य

लोहे की जालियां
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वृक्षगंधा | कहानी

- रजनी शर्मा बस्तरिया

गायों के रंभाने की आवाज आने लगी। दूर  से धूल की उड़ती गुबार ने गोधूली बेला का शंखनाद कर ही दिया। गायों के गले में बंधे लकड़ी के डिब्बे में लगी घंटी मानो उनके कदमों से जुगलबंदी कर रही हो। 
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सब कुछ जायज़ है | कहानी

- सन्दीप  तोमर 

अंडमान के हैवलॉक द्वीप के समुन्द्र तट के पास लंबे ऊंचे पेड़ के नजदीक बने एयर रेस्टोरेंट की ये एक हसीन शाम थी। यह रेस्टोरेंट इतना गोल था कि लगता था मानो खुद प्रकृति ने चाँद को धरातल पर रख गोला खींच दिया हो। नीचे के तल पर रसोई और वॉशरूम थे। उसके ऊपर के तल पर यह चारो तरफ से खुला रेस्टोरेन्ट था। लकड़ी की सीढ़ियों से चढ़कर ऊपर जाया जा सकता था। ऊपर कुर्सी मेज से लेकर हर एक वस्तु लकड़ी की बनी थी। कुर्सियाँ भी एकदम अलग अंदाज की थी, समुन्द्र की लहरों से छनकर आती हवा माहौल की खुशनुमा बनाती थी। रेस्टोरेंट में खाने वालों के मन को हर्षित करने के लिए संगीत गुंजायमान था। संगीत यंत्र के पास एक लड़का हाथ में माइक लिए था, वह कभी किशोर के गाने गाता तो कभी रफी बनने की कोशिश करता। उसकी आवाज में एक कसक थी। प्रभाकर ने अपनी क्रिसेंट की घड़ी में देखा अभी 2 बजे का वक्त था, रूपल को इस वक़्त तक आ जाना चाहिए था। प्रभाकर को आदत है वक़्त से पहले पहुँचने की, शायद इंतज़ार करना अच्छा लगता है, यद्यपि उसने कभी किसी को इंतजार कराया हो ऐसा उसे याद नहीं पड़ता।
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