भास्कर के घर से कुछ ही दूरी पर स्थित है सन्त श्री शिवानन्द जी का आश्रम। दिव्य अलौकिक शक्ति का धाम। शान्त, सुन्दर और रमणीय स्थल। जहाँ ध्यान, योग और ज्ञान की अविरल गंगा बहती रहती है। दिन-रात यहाँ वेद-मंत्र और ऋचाओं का उद्घोष वातावरण को पावनता प्रदान करता रहता है और नदी का किनारा जिसकी शोभा को और भी अधिक रमणीय बना देता है।
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कथा-कहानियाँ
इस श्रेणी के अंतर्गत
आई हेट यू, पापा!
2050
ऋचा की आँखों में उच्च वर्ग का सा इस्पात उतर आया, एकबारगी उसे लगा कि वह भी इस्पात में ढल सकती है। गँवार लोग ही रोते हैं, उच्च वर्ग के लोगों के सपाट चेहरों पर कभी देखा है किसी ने कोई उल्लास या उदासी! ये लौह युग है, यंत्रों और तंत्रों से संचालित। यहाँ भावनाओं का क्या काम? कितने लोग बचे हैं जो ज़रा ज़रा सी बात पर उद्वेलित हो जाते हैं, जिनकी भावनाएं उछल-उछल कर छलक उठती हैं। ऋचा को अपनी भावुकता पर नियंत्रण रख्रना होगा किंतु अगले ही पल इस्पात तरल होकर बहने लगता। वह अपने को सम्भाल तक नहीं पाती।
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रोना और मरामा
बहुत समय पहले की बात है। ‘आओटियारोआ’ में एक महिला थी जिसका नाम था ‘रोना’। रोना अपने पति के साथ रहती थी। उनका परंपरागत विवाह हुआ था। यह शादी उनके दादा दादी और कबीले के मुखियाओं ने तय की थी। ताउमू विवाह काफी आम थे और अकसर अपनी नस्ल को सुरक्षित या अपने कबीले की बेहतरी के लिए किए जाते थे। अधिकतर ऐसे विवाह सफल और सुखमय रहते थे लेकिन रोना और उसका पति इसका अपवाद ही थे। उनके बीच शायद कुछ भी एक सा नहीं था। वैसे भी उनके बीच तो शादी के पहले दिन से ही समस्याएँ पैदा हो गईं थीं। शादी वाले दिन ही बाढ़ आ गई और जिस ‘मराए’ (माओरी पवित्र-स्थल) में उनकी शादी हुई, उसमें भी पानी आ गया। रोना के सभी रिश्तेदारों को ‘मराए’ के बाहर छप्पर में सोना पड़ा। ‘रोना’ को लगा, उसके परिवार और संबंधियों का अपमान हुआ है। बस इसी बात को लेकर ‘रोना’ और उसके पति के बीच पहला तर्क-वितर्क शुरू हुआ। दुर्भाग्य से, इस दंपति के लिए, यह नारकीय वैवाहिक जीवन की शुरुआत थी।
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लाल कमीज-बिल्ला नम्बर 243
"यात्रीगण कृपया ध्यान दें। निजामुद्दीन से चलकर हैदराबाद को जाने वाली दक्षिण एक्सप्रेस अपने निर्धारित समय से एक घण्टा विलम्ब से चल रही है...... यात्रीगण कृपया ध्यान दें" ... उद्घोषिका बार-बार इस सूचना को प्रसारित कर रही थी।
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एक राजनीतिक संवाद
-- सर, 'पेड़ पर उलटा लटकने' वाले में और 'हर शाख पे बैठा' होने वाले में क्या अन्तर है?
-- एक ही डाली के चट्टे-बट्टे हैं दोनों, कोई अन्तर नहीं है।
-- यह कैसे हो सकता है?
-- देखिए, जब आप सत्ता में होते हैं तो सारा विपक्ष आपको उलटा लटका दिखाई देता है... और जब आप विपक्ष में होते हैं तब सत्तापक्ष का हर शख्स आपको 'शाख पे बैठा' दिखाई देता है।
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उलझन
नौकरी का नियुक्ति-पत्र मिला तो खुशी से उसकी आँखों में आँसू आ गए। इस नौकरी की प्रतियोगी परीक्षा के लिए उसने जी तोड़ मेहनत की थी। ईश्वर और वृद्ध माता के चरणों में नियुक्ति-पत्र रखकर, वह लपकता हुआ, पड़ोस के अंकल का आशीर्वाद लेने पहुँचा, जिनका बेरोजगार पुत्र उसका अभिन्न मित्र था।
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परिंदा
आँगन में इधर उधर फुदकती हुई गौरैया अपने बच्चे को उड़ना सिखा रही थी। बच्चा कभी फुदक कर खूंटी पर बैठ जाता तो कभी खड़ी हुई चारपायी पर, और कभी गिर कर किसी सामान के पीछे चला जाता।
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