देहात का विरला ही कोई मुसलमान प्रचलित उर्दू भाषा के दस प्रतिशत शब्दों को समझ पाता है। - साँवलिया बिहारीलाल वर्मा।
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हिंदी और राष्ट्रीय एकता - सुभाषचन्द्र बोस

यह काम बड़ा दूरदर्शितापूर्ण है और इसका परिणाम बहुत दूर आगे चल कर निकलेगा। प्रांतीय ईर्ष्या-द्वेश को दूर करने में जितनी सहायता हमें हिंदी-प्रचार से मिलेगी, उतनी दूसरी किसी चीज़ से नहीं मिल सकती। अपनी प्रांतीय भाषाओं की भरपूर उन्नति कीजिए। उसमें कोई बाधा नहीं डालना चाहता और न हम किसी की बाधा को सहन ही कर सकते हैं; पर सारे प्रांतो की सार्वजनिक भाषा का पद हिंदी या हिंदुस्तानी ही को मिला। नेहरू-रिपोर्ट में भी इसी की सिफारिश की गई है। यदि हम लोगों ने तन मन से प्रयत्न किया, तो वह दिन दूर नहीं है, जब भारत स्वाधीन होगा और उसकी राष्ट्रभाषा होगी हिंदी।
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हाउ डेयर यू? - दिलीप कुमार

उस्ताद किस्सागो जनाब कृश्न चन्दर साहब की कालजयी रचना “एक गधे की आत्मकथा” में एक इंसान जैसा सोचने वाला गधा कई दिनों तक एक गधी के साथ घास चरने का शगल करता रहा था। जब गधे को हद इम्कान इस बात की तस्दीक हो गई कि गधी भी मुझमें रुचि रखती है और यह गधी तो जीवन संगिनी बनाई जा सकती है। गधे को वह गधी देसी गधियों से इतर लगी तो उसने गधी से इजहारे दिल किया कि “तुम मेरी शरीके हयात बनोगी।" 
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अंडमान-निकोबार के साहित्य-सेवी व्यास मणि त्रिपाठी  - डॉ शिबन कृष्ण रैणा

अंडमान-निकोबार की राजधानी पोर्ट-ब्लेयर की आबादी लगभग डेढ़ लाख है। साफ-सुन्दर शहर है और हर तरह की आधुनिकतम सुविधाएँ उपलब्ध हैं। कुछेक वर्ष पूर्व इन्टरनेट की सुविधा यहाँ आ जाने से यह अलग-थलग पड़ा द्वीप मेनलैंड से जुड़ गया है। पर्यटन स्थल होने के कारण होटलों और विश्राम गृहओं की बहुतायत है। लगभग हर प्रदेश और जाति-धर्म के लोग यहाँ प्रेमभाव से रहते हैं। बंगला-भाषियों की संख्या कुछ ज़्यादा बताई जाती है।
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स्वामी विवेकानंद का विश्व धर्म सम्मेलन संबोधन - भारत-दर्शन संकलन

स्वामी विवेकानंद ने 11 सितंबर 1893 को शिकागो (अमेरिका) में हुए विश्व धर्म सम्मेलन में एक बेहद चर्चित भाषण दिया था। विवेकानंद का जब भी जि़क्र आता है उनके इस भाषण की चर्चा जरूर होती है। पढ़ें विवेकानंद का यह भाषण...
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माओरी कहावतें (21-25) - भारत-दर्शन

माओरी कहावतें
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हैदराबादी कुर्सी - डॉ सुरेश कुमार मिश्रा उरतृप्त

अरे भाई, अपने शहर हैदराबाद की बात ही निराली है। यहाँ की गली-गली में जो बयार बहती है, वो क्या कहें! अब देखिए, दिल्ली में कभी कोई तैमूर, तो कभी चंगेज खाँ आए, वहाँ से लेकर यहां तक बड़े-बड़े लोग आए, लूट कर चले गए। सोने-चाँदी, हीरे-जवाहरात सब उठा ले गए, लेकिन हमारे हैदराबाद का वो 'सिंहासन', मतलब यहाँ के कल्चर का कोई जवाब नहीं मिला उनको। वो सिंहासन जो कि रिवायत और इज़्ज़त का हिस्सा था, वो यहाँ की हवा में ही रचा-बसा है।
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काका की वसीयत - रोहित कुमार हैप्पी

सहज विश्वास नहीं होता कि कोई व्यक्ति अपनी वसीयत में यह लिखकर जाए कि उसके देहांत पर सब जमकर हँसें, कोई रोए नहीं!
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लगाने का लाभ - सी भास्कर राव

एक लाभ होता है लगाने का। जैसे तेल लगाना, मक्खन लगाना, चूना लगाना आदि। इसका पहला और प्रत्यक्ष लाभ तो यह है कि इस लगाने में कोई खर्च नहीं है। बस सिर्फ लगा भर देने से काम चल जाता है। पानी लगाने के लिए वास्तव में आपको न तेल चाहिए, न मक्खन और न चुना। यदि सचमुच लगाने के लिए इन वस्तुओं का इस्तेमाल करना हो तो लगाने वालों की संख्या आधी भी नहीं रह जाती। चूंकि मुफ्त में यह सब लग जाता है, इसलिए लोग मजे से दूसरों को लगा देते हैं। इसलिए यह सब लगाने वालों की संख्या दिनोंदिन बढ़ती जा रही है, जो तनिक सिद्धांतवादी हैं, वे भी कभी-न-कभी, किसी-न-किसी को, कुछ-न-कुछ लगाने के लिए मजबूर हो ही जाते हैं। दरअसल, बिना कुछ लगाए आज के जमाने में काम ही नहीं चलता है। जब तक लगाने में हिचक होती है, दिक्कत सिर्फ तभी तक है। एक बार संकोच से बाहर आकर किसी को अपनी जरूरत के हिसाब से, इन वस्तुओं में से कुछ लगा दें तो फिर लगाते जाने का सिलसिला अपने-आप चालू हो जाता है। 
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पुस्तक समीक्षा : आदि इत्यादि -  रोहित कुमार हैप्पी

आदि इत्यादि की पुस्तक समीक्षा
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पुस्तक समीक्षा : ‘वीर अभिमन्यु’ नाटक ने पारसी रंगमंच पर रचा था इतिहास - रणजीत पांचाले

वीर अभिमन्यु
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