'काफ़िर है, काफ़िर है, मारो!'
उत्तेजित जन चिल्लाये;
विद्यार्थी जी बिना झिझक के
झट से आगे बढ़ आये।
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कविताएं
इस श्रेणी के अंतर्गत
शहीद गणेश शंकर विद्यार्थी
लड़कपन
चित्त के चाव, चोचले मन के,
वह बिगड़ना घड़ी घड़ी बन के।
चैन था, नाम था न चिन्ता का,
थे दिवस और ही लड़कपन के॥
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आखिर मैं हूँ कौन?
एक मानव...
नहीं।
मुझे तो धीरे-धीरे
मानवता के सभी मूल्य
भूलते जा रहे हैं।
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वाल्मीकि से अनुरोध
महाकवि वाल्मीकि
उपजीव्य है आपकी रामायण
तुलसी से लेकर न जाने कितने ही
प्रतिभावान कवियों ने अपने विवेक और मेधा से
इसे रचा है बार बार
रामायण की कथा
कितने ही रंगों और सुगंधों के साथ
बन गई है मानव जन जीवन का हिस्सा
हे आदि-कवि तुम्हें प्रणाम!
महाकवि, मैं कवि नहीं हूँ
मुझमें बहुत सीमित है मेधा और विवेक
इसलिए किसी चोर की तरह घुस रहा हूँ
इस महाग्रंथ में
और खोजना चाहता हूँ उन पात्रों को
जिन्हें आपने गढ़ा तो सही
पर इतना अवसर नहीं दिया
कि वे कह पाते अपने मन की बात!
महाकवि, आपने उन्हें बना दिया
इस रथ के पहियें
और कभी नहीं सुनी
उनके रुदन की आवाज़
सब देखते रहे रथ की ध्वजा
उसका वैभव और उसकी गति
किसने देखना चाहा उन गड्ढों को
जो हर पल हिला देते थे
इन पहियों का संतुलन
फिर भी ये चलते रहे समानांतर
आपके ही गंतव्य की ओर
आप तो बस श्रीराम के ही सारथी बने रहे!
महाकवि, मुझे क्षमा करना
मैं विश्वकर्मा तो नहीं हूँ
कि उन अचर्चित पात्रों के लिए
रच दूं एक नया नगर
पर हाँ, एक छोटा-सा बढ़ई ज़रूर हूं
जो बनाना चाहता है
एक सुंदर सी खिड़की
आपकी ही दीवार में
जिसमें से झाँक सके
उर्मिला, सुमित्रा और मंदोदरी जैसे पात्र
थोड़ी-सी साँस ले सकें ताज़ा हवा में
और हम उन्हें जी भर कर देख सकें
उनकी अनकही भावनाओं के साथ!
मुझे शक्ति देना महाकवि,
कलयुग में लोग
मानवीय भावनाओं के विश्लेषण को लेकर
अधिक ही विचारशील हो गए हैं!
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मातृभाषा
जैसे चींटियाँ लौटती हैं
बिलों में
कठफोड़वा लौटता है
काठ के पास
वायुयान लौटते हैं एक के बाद एक
लाल आसमान में डैने पसारे हुए
हवाई-अड्डे की ओर
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माँ की भाषा
जब खेलते-खेलते
छा जाती है कोई धुन अचानक
मेरे खिलौनों पर
माँ की याद आती है अनायास
यह धुन गुनगुनाती थी माँ
मुझे झुलाते हुए झूले में
आ जाती है माँ की याद
जब फूलों की एक गंध
बहने लगती है हवा में अचानक
पतझड़ की किसी सुबह,
सुबह-सबेरे मंदिर की घंटियों की गंध
मेरी माँ की गंध जैसी लगती है
कमरे की खिड़की से
जब मैं देखता हूँ
सुदूर नीले आसमान में
लगता है माँ की निगाहों की स्थिरता
छा जाती है सारे आकाश पर
ऐसी ही है मेरी माँ की भाषा
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