बदन पे जिसके शराफत का पैरहन देखा
वो आदमी भी यहाँ हमने बदचलन देखा
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ग़ज़लें
ग़ज़ल क्या है?
यह आलेख उनके लिये विशेष रूप से सहायक होगा जिनका ग़ज़ल से परिचय सिर्फ पढ़ने सुनने तक ही रहा है, इसकी विधा से नहीं। इस आधार आलेख में जो शब्द आपको नये लगें उनके लिये आप ई-मेल अथवा टिप्पणी के माध्यम से पृथक से प्रश्न कर सकते हैं लेकिन उचित होगा कि उसके पहले पूरा आलेख पढ़ लें; अधिकाँश उत्तर यहीं मिल जायेंगे।
एक अच्छी परिपूर्ण ग़ज़ल कहने के लिये ग़ज़ल की कुछ आधार बातें समझना जरूरी है। जो संक्षिप्त में निम्नानुसार हैं:
ग़ज़ल- एक पूर्ण ग़ज़ल में मत्ला, मक्ता और 5 से 11 शेर (बहुवचन अशआर) प्रचलन में ही हैं। यहॉं यह भी समझ लेना जरूरी है कि यदि किसी ग़ज़ल में सभी शेर एक ही विषय की निरंतरता रखते हों तो एक विशेष प्रकार की ग़ज़ल बनती है जिसे मुसल्सल ग़ज़ल कहते हैं हालॉंकि प्रचलन गैर-मुसल्सल ग़ज़ल का ही अधिक है जिसमें हर शेर स्वतंत्र विषय पर होता है। ग़ज़ल का एक वर्गीकरण और होता है मुरद्दफ़ या गैर मुरद्दफ़। जिस ग़ज़ल में रदीफ़ हो उसे मुरद्दफ़ ग़ज़ल कहते हैं अन्यथा गैर मुरद्दफ़।
इस श्रेणी के अंतर्गत
सूर्य की अब...
सूर्य की अब किसी को ज़रूरत नहीं, जुगनुओं को अँधेरे में पाला गया
फ़्यूज़ बल्बों के अद्भुत समारोह में, रोशनी को शहर से निकाला गया
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रखकर अपनी आंख में...
रखकर अपनी आंख में कुछ अर्जियां, तुम देखना
बस मिलेंगी कागजी हमदर्दियां, तुम देखना
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एक दरी, कंबल, मफलर
एक दरी, कंबल, मफलर, मोज़े, दस्ताने रख देना
कुछ ग़ज़लों के कैसेट, कुछ सहगल के गाने रख देना
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ख़्वाब छीने, याद भी...
ख़्वाब छीने, याद भी सारी पुरानी छीन ली
वक़्त ने हमसे हमारी हर कहानी छीन ली।
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