Important Links
काव्य |
जब ह्रदय अहं की भावना का परित्याग करके विशुद्ध अनुभूति मात्र रह जाता है, तब वह मुक्त हृदय हो जाता है। हृदय की इस मुक्ति की साधना के लिए मनुष्य की वाणी जो शब्द विधान करती आई है उसे काव्य कहते हैं। कविता मनुष्य को स्वार्थ सम्बन्धों के संकुचित घेरे से ऊपर उठाती है और शेष सृष्टि से रागात्मक संबंध जोड़ने में सहायक होती है। काव्य की अनेक परिभाषाएं दी गई हैं। ये परिभाषाएं आधुनिक हिंदी काव्य के लिए भी सही सिद्ध होती हैं। काव्य सिद्ध चित्त को अलौकिक आनंदानुभूति कराता है तो हृदय के तार झंकृत हो उठते हैं। काव्य में सत्यं शिवं सुंदरम् की भावना भी निहित होती है। जिस काव्य में यह सब कुछ पाया जाता है वह उत्तम काव्य माना जाता है। |
Articles Under this Category |
धरती बोल उठी - रांगेय राघव |
चला जो आजादी का यह |
more... |
तक़दीर और तदबीर - महावीर प्रसाद द्विवेदी | Mahavir Prasad Dwivedi |
तक़दीर |
more... |
समकालीन - गोरख पाण्डेय |
कहीं चीख उठी है अभी |
more... |
माँ | कविता - दिव्या माथुर |
उसकी सस्ती धोती में लिपट |
more... |
वह मैं हूँ… - ओमप्रकाश वाल्मीकि | Om Prakash Valmiki |
मुँह-अँधेरे बुहारी गई सड़क में |
more... |
बात मेरी नहीं मानी... | ग़ज़ल - त्रिलोचन |
बात मेरी नहीं मानी नहीं मानी तुम ने |
more... |
क्या कीजे - प्रदीप चौबे |
गरीबों का बहुत कम हो गया है वेट क्या कीजे |
more... |
गांव पर हाइकु - डॉ रामनिवास मानव | Dr Ramniwas Manav |
डॉ. 'मानव' हाइकु, दोहा, बालकाव्य तथा लघुकथा विधाओं के सुपरिचित राष्ट्रीय हस्ताक्षर हैं तथा विभिन्न विधाओं में लेखन करते हैं। गांव पर लिखे उनके कुछ हाइकु यहाँ दिए जा रहे हैं: |
more... |
हंसी जो आज लब पर है | ग़ज़ल - विजय कुमार सिंघल |
हंसी जो आज लब पर है, उसे दिल में छुपा रक्खो |
more... |
दो चार गाम राह को... | ग़ज़ल - निदा फ़ाज़ली |
दो चार गाम राह को हमवार देखना |
more... |
पूत-कपूत | हास्य-कविता - अल्हड़ बीकानेरी |
डैडी, मोरे अवगुन चित न धरो, |
more... |
कुछ दोहे - श्याम लाल शर्मा |
रे मन दुर्जन को तजो, समझ नीच को कीच। |
more... |
बसा ले अपने मन में प्रीत | गीत - हफीज़ जालंधरी |
बसा ले अपने मन में प्रीत। |
more... |
राम की जल समाधि - भारत भूषण |
पश्चिम में ढलका सूर्य उठा वंशज सरयू की रेती से, |
more... |
चमकता रहूँ माँ - नरेन्द्र कुमार |
चरणों की धूल, माथे पर लगाकर |
more... |
मैं खुद में हूँ पूरी - सोनाली सिंह |
जननी हूँ |
more... |
याद - डॉ. अनुराग कुमार मिश्र |
नदी के किनारे ढलती शाम के साये में स्कूटर पर उनका कुछ सहम कर बैठना। कभी कानों से सटकर रुकने को कहना कभी पीठ पर उंगलियों से कुछ लिखना। हवाओं के रुख पर वो जुल्फों का उड़ना जूड़े में कसना औ फिर उनका खुलना। सब्जियों के खेतों पर मन का मचलना कभी मुझे टोकना कभी खुद सम्हलना। बहुत याद आता है साथ उनका चलना हाथ कन्धे पे रखकर चढ़ना - उतरना। डॉ. अनुराग कुमार मिश्र ई-मेल : dranuragmishra3@gmail.com ... |
more... |
डॉ हर्षा त्रिवेदी की तीन कविताएं - डॉ हर्षा त्रिवेदी |
क्योंकि मैं ज़िंदा था |
more... |
कर-जुग - नज़ीर अकबराबादी |
दुनिया अजब बाज़ार है, कुछ जिन्स याँकी साथ ले, |
more... |
पथिक - मोहनलाल महतो वियोगी |
पथिक हूँ,— बस, पथ है घर मेरा। |
more... |
मनीष कुमार मिश्रा की दो ग़ज़लें - मनीष कुमार मिश्रा |
शरद की रातों में हरसिंगार झरता रहा |
more... |