गीत

गीतों में प्राय: श्रृंगार-रस, वीर-रस व करुण-रस की प्रधानता देखने को मिलती है। इन्हीं रसों को आधारमूल रखते हुए अधिकतर गीतों ने अपनी भाव-भूमि का चयन किया है। गीत अभिव्यक्ति के लिए विशेष मायने रखते हैं जिसे समझने के लिए स्वर्गीय पं नरेन्द्र शर्मा के शब्द उचित होंगे, "गद्य जब असमर्थ हो जाता है तो कविता जन्म लेती है। कविता जब असमर्थ हो जाती है तो गीत जन्म लेता है।" आइए, विभिन्न रसों में पिरोए हुए गीतों का मिलके आनंद लें।

इस श्रेणी के अंतर्गत

जब दर्द बढ़ा तो बुलबुल ने | गीत

- गोपाल सिंह नेपाली | Gopal Singh Nepali

जब दर्द बढ़ा तो बुलबुल ने, सरगम का घूँघट खोल दिया 
दो बोल सुने ये फूलों ने मौसम का घूँघट खोल दिया 
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जब यार देखा नैन भर

- अमीर ख़ुसरो

जब यार देखा नैन भर, दिल की गई चिंता उतर, 
ऐसा नहीं कोई अजब राखे उसे समझाय कर। 
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याद तुम्हारी आई

- रमानाथ अवस्थी | गीत

सो न सका कल याद तुम्हारी आई सारी रात 
और पास ही बजी कहीं शहनाई सारी रात 
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सच के लिए लड़ो मत साथी | गीत

- कुमार विश्वास

सच के लिए लड़ो मत साथी, 
भारी पड़ता है! 
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