किसी घने जंगल में एक शेर रहता था। अपने पेट की भूख शांत करने के लिए वह हर रोज अनेक जानवरों को मार डालता था। इससे सभी जानवर चिंतित थे। सभी जानवरों ने एक सभा बुलाई और निर्णय लिया कि वे इस विषय पर शेर से बात करेंगे। शेर से बातचीत करने के बाद यह तय हुआ कि वे प्रतिदिन एक जानवर शेर के पास भेज देंगे। इस तरह यह क्रम चलता रहा और एक दिन एक खरगोश की बारी आई। वह शेर के हाथो मरना नहीं चाहता था। शेर के पास जाते हुए खरगोश खरगोश अपनी प्राण-रक्षा के बारे में किच रहा था कि रास्ते में उसे एक कुआं दिखाई दिया, जिसके पानी में खरगोश को अपना प्रतिबिंब दिखाई दिया। उसे एक युक्ति सूझी। उसने शेर के पास पंहुचकर कहा, “महाराज! मैंने रास्ते में आपसे भी अधिक शक्तिशाली शेर देखा। वह मुझे मारकर खा जाना चाहता था लेकिन लेकिन मैं बड़ी मुश्किल से अपनी जान बचाकर आपके पास पहुंचा हूँ।”
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पंचतंत्र की कहानियाँ
पंचतंत्र की कहानियों की रचना का इतिहास भी बडा ही रोचक हैं। लगभग 2000 वर्षों पूर्व भारत वर्ष के दक्षिणी हिस्से में महिलारोप्य नामक नगर में राजा अमरशक्ति का शासन था। उसके तीन पुत्र बहुशक्ति, उग्रशक्ति और अनंतशक्ति थे। राजा अमरशक्ति जितने उदार प्रशासक और कुशल नीतिज्ञ थे, उनके पुत्र उतने ही मूर्ख और अहंकारी थे। राजा ने उन्हें व्यवहारिक शिक्षा देने व्यवहारिक शिक्षा देने की बहुत कोशिश की परंतु किसी भी प्रकार से बात नहीं बनी। हारकर एक दिन राजा ने अपने मंत्रियों से मंत्रणा की। राजा अमरशक्ति के मंत्रिमंडल में कई कुशल, दूरदर्शी और योग्य मंत्री थे, उन्हीं में से एक मंत्री सुमति ने राजा को परामर्श दिया कि पंडित विष्णु शर्मा सर्वशास्त्रों के ज्ञाता और एक कुशल ब्राह्मण हैं, यदि राजकुमारों को शिक्षा देने और व्यवहारिक रुप से प्रक्षित करने का उत्तरदायित्व पंडित पंडित विष्णु शर्मा को सौंपा जाए तो उचित होगा, वे अल्प समय में ही राजकुमारों को शिक्षित करने की सामर्थ रखते हैं।