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कहानियां |
कहानियों के अंतर्गत यहां आप हिंदी की नई-पुरानी कहानियां पढ़ पाएंगे जिनमें कथाएं व लोक-कथाएं भी सम्मिलित रहेंगी। पढ़िए मुंशी प्रेमचंद, रबीन्द्रनाथ टैगोर, भीष्म साहनी, मोहन राकेश, चंद्रधर शर्मा गुलेरी, फणीश्वरनाथ रेणु, सुदर्शन, कमलेश्वर, विष्णु प्रभाकर, कृष्णा सोबती, यशपाल, अज्ञेय, निराला, महादेवी वर्मा व लियो टोल्स्टोय की कहानियां। |
Articles Under this Category |
एक पत्र- अनाम के नाम - संजय भारद्वाज |
[ ब्लू व्हेल के बाद ‘हाईस्कूल गेम' अपनी हिंसक वृत्ति को लेकर चर्चा में है। कुछ माह पहले इसी गेम की लत के शिकार एक नाबालिग ने गेम खेलने से टोकने पर अपनी माँ और बहन की नृशंस हत्या कर दी थी। उस घटना के बाद लेखक, 'संजय भारद्वाज' की प्रतिक्रिया, उस नाबालिग को लिखे एक पत्र के रूप में कागज़ पर उतरी। ] |
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अंगूर - कमल कुमार शर्मा |
भाभी की तबीयत खराब है। रमेश आधा सेर अंगूर लाया है। भाभी की लड़की शीला सामने बैठी है, कोई चार बरस की होगी। अंगूर देखते ही लपकी और खाने शुरू करें दिए। रमेश ने झड़पकर कहा--"अरे, सब तू ही खा जाएगी या उनके लिए भी कुछ छोड़ेगी? भाभी, तुम भी देख रही हो, यह नहीं कि हटा लो। " |
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अधूरी कहानी - कुमारी राजरानी |
मैं भला क्यों उसे इतना प्यार करती थी ? उसके नाममात्र से सारे शरीर में विचित्र कँपकँपी फैल जाती थी। उसकी प्रशंसा सुनते ही मेरी आँखें चमक जाती थीं। उसकी निन्दा सुनकर मेरा मन भारी हो उठता था। पर मैं उसके निन्दकों का खण्डन नहीं कर सकती थी, क्योंकि उसके पक्ष समर्थन के लिए मेरे पास पर्याप्त शब्द नहीं थे। बस, अपनी विवशता पर गुस्सा आता था। और यदि मेरे पास पर्याप्त शब्द होते भी, तो मैं किस नाते उसके निन्दकों का मुँह बन्द करती? वह मेरा कौन था और मैं उसकी क्या लगती थी! |
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होली बाद नमाज़ - क़ैस जौनपुरी | कहानी |
अहद एक मुसलमान है। मुसलमान इसिलए क्योंकि वो एक मुस्लिम परिवार में पैदा हुआ है। हाँ, ये बात अलग है कि 'वो' कभी इस बात पर जोर नहीं देता है कि वो मुसलमान है। वो मुसलमान है तो है। क्या फर्क पड़ता है? और क्या जरूरत है ढ़िंढ़ोरा पीटने की? वो कभी इन बातों पर गौर नहीं करता है। लेकिन उसके गौर न करने से क्या होता है? लोग तो हैं? और लोग तो गौर करते हैं और लोग अहद की हरकतों पर भी गौर करते हैं। |
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चिंगारी - जूही विजय |
दिन इतवार का था। |
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दिल की रानी - मुंशी प्रेमचंद | Munshi Premchand |
जिन वीर तुर्कों के प्रखर प्रताप से ईसाई-दुनिया काँप रही थी, उन्हीं का रक्त आज कुस्तुन्तुनिया की गलियों में बह रहा है। वही कुस्तुन्तुनिया जो सौ साल पहले तुर्कों के आतंक से आहत हो रहा था, आज उनके गर्म रक्त से अपना कलेजा ठंडा कर रहा है। और तुर्की सेनापति एक लाख सिपाहियों के साथ तैमूरी तेज के सामने अपनी किस्मत का फैसला सुनने के लिये खड़ा है। |
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