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काव्य |
जब ह्रदय अहं की भावना का परित्याग करके विशुद्ध अनुभूति मात्र रह जाता है, तब वह मुक्त हृदय हो जाता है। हृदय की इस मुक्ति की साधना के लिए मनुष्य की वाणी जो शब्द विधान करती आई है उसे काव्य कहते हैं। कविता मनुष्य को स्वार्थ सम्बन्धों के संकुचित घेरे से ऊपर उठाती है और शेष सृष्टि से रागात्मक संबंध जोड़ने में सहायक होती है। काव्य की अनेक परिभाषाएं दी गई हैं। ये परिभाषाएं आधुनिक हिंदी काव्य के लिए भी सही सिद्ध होती हैं। काव्य सिद्ध चित्त को अलौकिक आनंदानुभूति कराता है तो हृदय के तार झंकृत हो उठते हैं। काव्य में सत्यं शिवं सुंदरम् की भावना भी निहित होती है। जिस काव्य में यह सब कुछ पाया जाता है वह उत्तम काव्य माना जाता है। |
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प्रो. राजेश कुमार के दोहे - प्रो. राजेश कुमार |
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कोई बारिश पड़े ऐसी... | ग़ज़ल - संध्या नायर | ऑस्ट्रेलिया |
कोई बारिश पड़े ऐसी, जो रिसते घाव धो जाए |
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वो राम राम कहलाते हैं - आराधना झा श्रीवास्तव |
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पाँच हाइकु - डॉ. भगवतशरण अग्रवाल |
महँगा सौदा |
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मेरा दिल वह दिल है | ग़ज़ल - त्रिलोचन |
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श्रोताओं की फब्तियां - काका हाथरसी | Kaka Hathrasi |
कवियों की पंक्तियां, श्रोताओं की फब्तियां : |
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गीत गाने को दिए पर स्वर नहीं - शिवमंगल सिंह सुमन |
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सरल हैं; कठिन है | हास्य-व्यंग्य - चिरंजीत |
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कैसी लाचारी | हास्य-व्यंग्य - अश्वघोष |
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प्रणम्य काशी - डॉ॰ सुशील शर्मा |
(काशी पर कविता) |
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बिटिया रानी - विनोद कुमार दूबे |
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गणतंत्र-दिवस - ज्ञानेंद्रपति |
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सबके बस की बात नहीं है - गिरेन्द्रसिंह भदौरिया |
प्यार भरी सौगात नहीं यह, कुदरत का अतिपात हुआ है । |
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मेरी आरज़ू रही आरज़ू | ग़ज़ल - निज़ाम-फतेहपुरी |
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बीता पचपन | गीत - क्षेत्रपाल शर्मा |
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