मैं आपके सामने अपने एक रेल के सफर का बयान पेश कर रहा हूँ। यह बयान इसीलिए है कि सफर में मेरे साथ जो घटना घटी उसका कभी आप अपने जीवन में सामना करें तो आप अपनी किंकर्तव्यविमूढ़ता झिटककर अपने भीतर बैठे आदमी के साथ उचित न्याय कर सकें।
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कथा-कहानियाँ
इस श्रेणी के अंतर्गत
आदमी और कुत्ता
जन्मदिन मुबारक
बगल के कमरे से उठती हुई दबी-दबी हँसी की आवाज उसके कमरे से टकरा रही है। ये हँसी है या चूड़ियों की खनक! पता नहीं, शायद दोनों ही आवाजें हैं। इन आवाजों के सिवा है भी क्या उसकी दुनिया में! एक अंधेरा उसके चारों ओर गहराने लगा है। अंधेरा जितना गहरा होता जाता है, आवाज उतनी तेज होने लगती है, चिरपरिचित अंधेरा... अदृश्य आवाजें...। वह करवट बदलता है...बगल के पलंग से मां की चूड़ियाँ खनकती हैं, शायद माँ ने भी करवट बदली है। कितना साफ फर्क है, माँ की औेर भव्या की चूड़ियों की खनक में। अंधेरे में भी फर्क छुप नहीं पाता... चूड़ियों की छुन-छुन की आवाज ट्रेन की छुक-छुक की आवाज में बदलने लगती है और वह जा पहुंचता है उस मोड़ पर, जहां अपनी जिंदगी के अंधेरों से उसकी पहली मुलाकात हुई थी।
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एक लड़की
आज बार-बार जीवन बाईस साल पहले मुड़ उस दिन को याद कर रहा है जिसने एक लड़की के जीवन को एक अलग ही दिशा दे दी। नवरात्रि का समय और देवी दर्शन की चाह लिए एक लड़की विंध्यांचल से भोर में घर लौटती है । चूँकि भोर हो गई है इसलिए लौटते ही सुबह के कार्यक्रम में पुन: व्यस्त है और तभी कुछ ऐसा होता है जो उसके जीवन की सबसे ख़ास मोड़ बन जाती है। आखिर समय कैसे पंख लगाकर उड़ जाता है, पता भी नहीं चलता। धीरे-धीरे कब उस चुलबुली लड़की के प्रौढ़ा की ओर कदम बढ़ चले अहसास ही नहीं हुआ। आज अतीत में झाँकने पर कितनी बातें परत-दर-परत खुलती चली जाती हैं। एक सीधी-सादी 19 साल की लड़की जिसके लिए किसी बात में गहराई नहीं थी। हर बात मज़ाक में उड़ा देना जिसकी फितरत रही हो। पढ़ाई-लिखाई, घर की बातें सब उसके लिए गौण हो जाती थीं। कभी किसी चीज़ को गंभीरता से नहीं लिया हो। पारिवारिक माहौल ने उसमें एक अलग ही सोच विकसित कर दी थी। उसने तो सपने में एक ऐसे राजकुमार की कल्पना कर ली थी जो फ़िल्मों के किरदारों से प्रभावित हो। बाबुजी से मज़ाक में हमेशा कहती, “मेरी शादी तो ‘आई.ए.एस.’ से करवाइएगा ताकि ऐश की ज़िन्दगी जिऊँ। और हाँ, सबसे ज़रूरी अपने शहर में बिल्कुल नहीं। कहीं दूर अंडमान निकोबार में ढूँढिएगा ताकि रोज़-रोज़ रिश्तेदार आपको तंग करने न आएँ।” उसने अपने ‘करियर’, अपनी पहचान के बारे में तो कभी सोचा ही नहीं था। उसे तो ब्याह करके बस अपना घर बसाना था पर अचानक सपनों ने एक नया मोड़ ले लिया। वह ब्याह के बाद समुन्दर पार एक छोटे से टापू पर आ गई। सपने तो अब भी वही थे जो कॉलेज के दिनों में देखे थे, पर अब इन सपनों में विदेशी भूमि से जुड़ने का नया अध्याय जुड़ गया था। मज़ाक में कही हुई कुछ बातें सच हो गईं। कभी-कभी तो क्या रिश्तेदार तो शायद ही कभी उसके बाबुजी को तंग करने जाएँ।
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वह बच्चा थोड़े ही न था
वह एक लेखक था। उसके कमरे में दिन-रात बिजली जलती थी। एक दिन क्या हुआ कि बिजली रानी रूठ गई।
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बुरा उदाहरण
“आप नयी हो?” अपनी नब्ज पर एक नया कोमल स्पर्श पाता हूँ तो आंखेँ खोल लेता हूँ।
“आप स्वस्थ हो रहे हैं,” नयी नर्स युवा है, सुन्दर है कोमल है, “नहीं तो इन विशिष्ट कमरों में किसी भी दूसरे रोगी को मेरा हाथ नया नहीं लगा....”
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चल, भाग यहाँ से
“चल, भाग यहां से...जैसे ही उसने सुना, वो अपनी जगह से थोड़ी दूर खिसक गयी। वहीं से उसने इस बात पर गौर किया कि भंडारा खत्म हो चुका था। बचा-खुचा सामान भंडार गृह में रखा जा चुका था। जूठा और छोड़ा हुआ भोजन कुत्तों और गायों को दिया जा चुका था यानी भोजन मिलने की आखिरी उम्मीद भी खत्म हो चुकी थी।
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सत्य और असत्य
मनुष्य की छाया मनुष्य से बोली, 'देखो! तुम जितने थे, उतने ही रहे, पर मैं तुमसे कितना गुना बढ़ गई हूँ।'
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गाय की रोटी | लघुकथा
कल जब शर्मा जी शाम को घूम कर लौट रहे थे तो उन्होंने देखा कि एक गाय दो बछड़ों के साथ एक घर के दरवाजे पर खड़ी थी ,घर की मालकिन ने एक रोटी लाकर बछड़े को देने की कोशिश की तो गाय ने बछड़े को धकिया कर खुद रोटी खाने लगी। शर्मा जी ने देखा कि वह गाय हर घर में जाती और खुद रोटी खाती पर बछड़ों को दूर कर देती।
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आघात
चौधरी भगवत सहाय उस इलाके के सबसे बड़े रईसों में समझे जाते थे। समीप के गाँवों में वे बड़ी आदर की दृष्टि से देखे जाते थे। अपने असामियों से वे बड़ी प्रसन्नतापूर्वक बातें करते थे। ये बड़े योग्य पुरुष। यही कारण था कि थाने में तथा कचहरियों में भी वे सम्मान के पात्र समझे जाते थे। उनके पहनावे में तथा लखनऊ के नवाबों की वेशभूषा में कोई विशेष अंतर न था । वही दुकलिया टोपी, पाँवों में चुस्त पायजामा तथा एक ढीली-ढाली अचकन से वह नवाब वाजिद अली शाह के कुटुंबी प्रतीत होते थे। किंतु थे पूर्णतया आधुनिक रोशनी के मनुष्य मित्र मंडली में बैठकर मंदिरापान से भी कुछ निषेध न था। सिनेमा के तो पूर्ण रसिक थे। सुना कि मुरादाबाद में अमुक चित्र चल रहा है, तनिक प्रशंसा सुनी उस चित्र की कि चल दिए बाल-बच्चों को लेकर पत्नी तो उनकी साक्षात् लक्ष्मी ही थी। घर में सुख-शांति का साम्राज्य था। लक्ष्मी तो उनके यहाँ जैसे घुटने तोड़कर ही आ बैठी थी। दो-चार भैंस तथा गाएँ भी दूध देती ही थीं। किसी वस्तु का अभाव न था। केवल कभी-कभी उन्हें यह चिंता सताया करती थी कि मरे वक़्त इस संपत्ति का क्या होगा?
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