हास्य काव्य

भारतीय काव्य में रसों की संख्या नौ ही मानी गई है जिनमें से हास्य रस (Hasya Ras) प्रमुख रस है जैसे जिह्वा के आस्वाद के छह रस प्रसिद्ध हैं उसी प्रकार हृदय के आस्वाद के नौ रस प्रसिद्ध हैं - श्रृंगार रस (रति भाव), हास्य रस (हास), करुण रस (शोक), रौद्र रस (क्रोध), वीर रस (उत्साह), भयानक रस (भय), वीभत्स रस (घृणा, जुगुप्सा), अद्भुत रस (आश्चर्य), शांत रस (निर्वेद)।

इस श्रेणी के अंतर्गत

प्रश्न

- शैल चतुर्वेदी | Shail Chaturwedi

प्रश्न था - " नाम ?"
हमने लिख दिया - "बदनाम"
"काम"
"बेकाम।"
"आयु ?"
"जाने राम ।"
"निवास स्थान ?"
"हिन्दुस्तान।"
"आमदनी ?" "
"आराम हराम ।"
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ढोल, गंवार...

- सुरेंद्र शर्मा

मैंने अपनी पत्नी से कहा --
"संत महात्मा कह गए हैं--
ढोल, गंवार, शुद्र, पशु और नारी
ये सब ताड़न के अधिकारी!"
[इन सभी को पीटना चाहिए!]
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अच्छे दिन आने वाले हैं

- महेंद्र शर्मा

नई बहू जैसे ही पहुंची ससुराल
तो सास ने
शुरू कर दिया
आचार संहिता का आंखों देखा हाल।
बोली- बहू सुन,
मेरी बात को ध्यान से गुन।
सुबह चार बजे उठ जाना
और नहा धोकर ही किचन में जाना।
मंदिर से आने तक मेरा करना इंतजार
फिर से सो मत जाना
वरना पड़ेगी फटकार।
बाकी रूटीन तेरे ससुर जी बताने वाले हैं,
तो बहू बोली- जी, सासू जी
लगता है अच्छे दिन आने वाले हैं।
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लेख की माँग

- ईश्वरीप्रसाद शर्मा

सम्पादकजी! नमोनमस्ते, पत्र आपका प्राप्त हुआ।
पढ़कर शोक समेत हर्षका भाव हृदय में व्याप्त हुआ॥
फूल गया यह पात देखकर, लेखक मुझे समझते आप।
किन्तु लेख लिख देना होगा, सोच यही होता सन्ताप॥
लेखक क्या हूँ, अनुवादक हूँ, गुपचुप लेख चुराता हूँ।
अदल-बदलकर इधर-उधरसे, अपने नाम छपाता हूँ॥
किन्तु आप से बहुभाषाविद लोगों से में डरता हूँ।
लेख आपके लिये लिखूँ क्या? सोच-सोचकर मरता हूँ॥
यही नहीं केवल है, कारण इसका और दिखाता हूँ।
लेख नहीं क्यों अब लिखता हूँ, वह सब सत्य बताता हूँ॥
बिना टके का लेख माँगते, आप नहीं शर्माते हैं।
लेखों के बदले में हम कुछ लेते हुए लजाते हैं॥
इससे तो है कहीं भला यह, असहयोग कर लें हम आप।
पत्र न भेजें आप मुझे फिर, देवें नहीं मुझे सन्ताप॥
नहीं चाहिये पत्र आपका, मुझे माफ कर दें चुपचाप।
राजी रहूँ इधर मैं भी औ'' खुश रहिये अपने घर आप॥
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