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गीत |
गीतों में प्राय: श्रृंगार-रस, वीर-रस व करुण-रस की प्रधानता देखने को मिलती है। इन्हीं रसों को आधारमूल रखते हुए अधिकतर गीतों ने अपनी भाव-भूमि का चयन किया है। गीत अभिव्यक्ति के लिए विशेष मायने रखते हैं जिसे समझने के लिए स्वर्गीय पं नरेन्द्र शर्मा के शब्द उचित होंगे, "गद्य जब असमर्थ हो जाता है तो कविता जन्म लेती है। कविता जब असमर्थ हो जाती है तो गीत जन्म लेता है।" आइए, विभिन्न रसों में पिरोए हुए गीतों का मिलके आनंद लें। |
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मनोदशा - कैलाश कल्पित |
वे बुनते हैं सन्नाटे को |
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चंद्रशेखर आज़ाद - रोहित कुमार 'हैप्पी' |
शत्रुओं के प्राण उन्हें देख सूख जाते थे |
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उठ बाँध कमर - मौलाना ज़फ़र अली ख़ाँ |
अल्लाह का जो दम भरता है, वो गिरने पर भी उभरता है। |
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झूठी प्रीत - एहसान दानिश |
जग की झूठी प्रीत है लोगो, जग की झूठी प्रीत! |
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मैं परदेशी... | गीत - चंद्रप्रकाश वर्मा 'चंद्र' |
ममता में सुकुमार हृदय को कस डाला था, |
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